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कोवैक्सीन को मंजूरी: 24 घंटे में कैसे बदली विशेषज्ञों की राय?

कोवैक्सीन को मंजूरी: 24 घंटे में कैसे बदली विशेषज्ञों की राय?

विशेषज्ञ पैनल ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को एक जनवरी को आपात इस्तेमाल की मंजूरी लायक नहीं माना था, लेकिन इसने 2 जनवरी को मंजूरी दे दी। आख़िर इन 24 घंटों में ऐसा क्या हो गया कि कोवैक्सीवन को हरी झंडी मिल गई?

विशेषज्ञों के पैनल ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को एक जनवरी को आपात इस्तेमाल की मंजूरी लायक नहीं माना था, लेकिन इसने 2 जनवरी को उसको मंजूरी दे दी। आख़िर इन 24 घंटों में ऐसा क्या हो गया कि कोवैक्सीन को विशेषज्ञों के पैनल ने हरी झंडी दे दी? इस सवाल का जवाब विशेषज्ञों के पैनल यानी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी (एसईसी) की एक और दो जनवरी की बैठकों में लिए गए फ़ैसलों से मिल सकता है। 

इस पूरे मामले को समझने के लिए पहले हाल के दिनों के घटनाक्रमों को पढ़िए। दिसंबर महीने की शुरुआत में फाइजर, सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने वैक्सीन की मंजूरी के लिए विशेषज्ञ पैनल को आवेदन किया था। आँकड़े पर्याप्त नहीं होने की बात कहकर तीनों को ही मंजूरी नहीं दी गई। फिर 30 दिसंबर को फिर से विशेषज्ञ पैनल ने बैठक की, लेकिन तब भी किसी को मंजूरी नहीं मिली। 

1 जनवरी को फिर से बैठक हुई और इसमें सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन कोविशील्ड को आपात मंजूरी दे दी गई, लेकिन भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी नहीं मिली। फिर दो जनवरी को कोवैक्सीन को भी मंजूरी दे दी गई। 

नोट में क्या कहा गया?

विशेषज्ञ पैनल यानी एसईसी ने 1 जनवरी को मंजूरी के लिए भारत बायोटेक के अनुरोध पर ग़ौर किया कि कोवैक्सीन में कोरोना वायरस के म्यूटेंट स्ट्रेन को भी लक्षित करने की क्षमता थी, लेकिन फर्म द्वारा दिया गया आँकड़ा आपातकालीन इस्तेमाल के अनुमोदन की सिफारिश करने के लिए पैनल को आश्वस्त नहीं कर सका।

एक जनवरी के नोट में कहा गया है, ‘अब तक आया आँकड़ा एक मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (एंटीबॉडी के साथ-साथ टी सेल में भी) और इन-विट्रो वायरल न्यूट्रलाइजेशन को दर्शाता है। 25,800 भारतीयों पर जारी क्लिनिकल ट्रायल एक बड़ा ट्रायल है, जिसमें 22,000 पहले ही शामिल हो चुके हैं। इसमें कई बीमारियों वाले लोग भी शामिल हैं। उनमें अब तक यह सुरक्षित पाया गया है।’

इसके साथ ही एक जनवरी को यह भी कहा गया है कि हालाँकि, एफिकेसी यानी प्रभाविकता का पता चलना बाक़ी है। एसईसी ने भारत बायोटेक को तीसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल में स्वयंसेवकों की भर्ती में तेज़ी लाने की कोशिश करने के लिए कहा। पैनल ने यह भी सिफारिश की कि कंपनी को आपातकालीन सीमित इस्तेमाल की मंजूरी के लिए अपने आवेदन पर विचार के लिए अंतरिम प्रभाविकता विश्लेषण करना चाहिए।

हालाँकि, 2 जनवरी को विशेषज्ञ पैनल ने जानवरों पर एक अध्ययन से आए प्रभाविकता के आँकड़े का हवाला देते हुए मंजूरी देने की सिफारिश कर दी।

एक जनवरी को मंजूरी नहीं मिलने पर भारत बायोटेक ने फिर से आवेदन किया था। एसईसी की 2 जनवरी की बैठक के नोट में कहा गया है कि भारत बायोटेक द्वारा कोरोना के नये स्ट्रेन यानी नये क़िस्म के कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए उसके प्रस्ताव पर विचार करने के आग्रह किए जाने के बाद एसईसी ने ‘क्लिनिकल ट्रायल मोड में’ सीमित इस्तेमाल के अनुमोदन की सिफारिश की।

 - Satya Hindi

एसईसी के नोट में कहा गया है, ‘... फर्म ने जानवरों पर अध्ययन के सुरक्षा और प्रभाविकता का आँकड़ा पेश किया है जहाँ टीका सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है।’ उस नोट में नये क़िस्म के कोरोना पर कारगर होने का ज़िक्र भी किया गया है। 

इस नोट के आख़िर में लिखा गया है, ‘उपरोक्त विचार-विमर्श के बाद समिति ने एक कड़े एहतियात के साथ जनहित में आपात स्थिति में सीमित उपयोग के लिए मंजूरी देने की सिफारिश की। इसका इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल मोड में, टीकाकरण के लिए अधिक विकल्प के रूप में करने की सिफ़ारिश की गई। विशेष रूप से नये क़िस्म के कोरोना संक्रमण की स्थिति में। इसके अलावा फर्म अपने तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल को जारी रखेगी और उपलब्ध होने पर आँकड़े पेश करेगी।’

बता दें कि विशेषज्ञ पैनल की इस सिफ़ारिश के अगले ही दिन रविवार को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दे दी। 

भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने पर हंगामा मचा था। डीसीजीआई द्वारा इसको मंजूरी दिए जाने के बाद शशि थरूर, आनंद शर्मा, जयराम रमेश जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर सवाल उठाए थे। 

इसके बाद कई वैज्ञानिकों ने भी इस पर सवाल उठाए। आरोप लगाया गया कि तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना यानी बिना प्रभाविकता की पुष्टि के ही मंजूरी दी गई।

इस विवाद के बीच ही दोनों कंपनियाँ- सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक आपस में उलझ गई थीं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोरोना के ख़िलाफ़ केवल तीन टीके प्रभावी हैं- फाइजर, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और बाक़ी सिर्फ़ 'पानी की तरह सुरक्षित' हैं। इसके बाद भारत बायोटेक के प्रमुख कृष्णा इल्ला ने सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन पर भी सवाल खड़े किए।  

आख़िर में भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ने साझा बयान जारी किया। इसमें इन्होंने कहा कि अब जब दो कोरोना वैक्सीन को भारत में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी जारी किए गए हैं तो निर्माण, आपूर्ति और वितरण पर ध्यान केंद्रित करना है।

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