कोरोना: लॉकडाउन की वजह से उपकरणों की सप्लाई में आ रही मुश्किल
जिस कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन किया गया है अब उसी लॉकडाउन के कारण कोरोना से बचाव के लिए उपयोग में आने वाले उपकरणों की आपूर्ति में बाधा आती दिख रही है। ऐसे दौर में जब कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए कवरॉल, मास्क, ग्लव्स जैसे प्रोटेक्टिव गियर यानी सुरक्षा के सामान की कमी की शिकायतें आ रही हैं, अब यह संकट और बढ़ सकता है। रिपोर्ट है कि देश भर में लॉकडाउन के कारण ऐसे प्रोटेक्टिव गियर की आपूर्ति में क़रीब एक महीने की देरी हो सकती है। सरकार की ही एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर ने इस बात को स्वीकार किया है।
ये प्रोटेक्टिव गियर कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में काफ़ी अहम भूमिका निभाते हैं। यह इसलिए कि इस वायरस का इलाज करने के लिए कवरॉल, मास्क, ग्लव्स जैसे सुरक्षा के उपकरण डॉक्टर, नर्स जैसे स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। यदि इनके बिना स्वास्थ्य कर्मी कोरोना मरीजों का इलाज करने लगें तो उनके वायरस से प्रभावित होने का ख़तरा काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाता है। जब डॉक्टर वायरस से प्रभावित हो जाएँगे तो जो इनसे इलाज कराने पहुँचेंगे उनको भी ख़तरा रहेगा ही।
इसी ख़तरे के डर से कई जगहों से ऐसी ख़बरें आई हैं कि डॉक्टरों ने इसकी कमी होने की शिकायतें की हैं। उनकी शिकायतें हैं कि वायरस के इलाज़ में लगे सरकारी अस्पतालों में ज़रूरी सुरक्षा सामान की भारी कमी है जो मेडिकल स्टाफ़ को ख़तरे में डाल रहा है। उनकी ऐसी शिकायतें सोशल मीडिया पर लगातार आ रही हैं।
बहरहाल, एचएलएल लाइफ़केयर को ही इन प्रोटेक्टिव गियर को खरीदने और केंद्र और राज्य सरकारों को आपूर्ति करने के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है। एचएलएल स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाली कंपनी है। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार इसी एचएलएल लाइफ़केयर ने 28 मार्च को दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक (प्रोक्योरमेंट) को ईमेल लिखकर साफ़ किया है कि वह इतनी जल्दी इन प्रोटेक्टिव गियर की सप्लाई करने की स्थिति में नहीं है। दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे की ओर से रेलवे के हॉस्पिटलों के लिए 13 हज़ार पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट यानी पीपीई किट की माँग की गई थी। डॉक्टर, नर्स या बाक़ी स्टाफ़ द्वारा कोरोना जैसे वायरस से बचने के लिए पहने जाने वाले ग्लव्स, मास्क, चश्मे, कवरॉल यानी सूट पीपीई किट में शामिल होते हैं।
रेलवे के इस ऑर्डर के जवाब में एचएलएल ने कहा है कि पीपीई की आपूर्ति में 25-30 दिन लगेंगे। इसने बताया है कि मेडिकल रिलीफ़ मैटेरियल सप्लाई में कमी और कर्फ्यू व लॉकडाउन के कारण यह देरी होगी।
एचएलएल ने ईमेल में कहा है, 'मैटेरियल की भारी कमी और अलग-अलग सरकारी संस्थाओं की भारी माँग के कारण डेलीवरी में हमारे वेयरहाउस में मैटेरियल के बिल की तारीख़ से अधिकतम 30 दिन लगेंगे।'
सुरक्षा के इन उपकरणों की कमी की आ रही रिपोर्टों के बीच सरकार ने सोमवार को एक बयान भी जारी किया है जिसमें इसकी खरीदारी की विस्तृत जानकारी दी गई है। बयान में कहा गया है कि 60 हज़ार कवरॉल खरीदे जा चुके हैं और क़रीब 60 लाख पीपीई किट के ऑर्डर दिए जा चुके हैं। इसमें से क़रीब आधे घरेलू निर्माता पूरी करेंगे और बाक़ी सिंगापुर और दक्षिण कोरिया से आयात किए जाएँगे। हालाँकि यह साफ़ नहीं किया गया है कि विदेश से ये पीपीई कब तक देश में आ जाएँगे। बयान में यह भी कहा गया है कि पूरे देश भर में क़रीब 4 लाख पीपीई स्टॉक में हैं।
एन95 मास्क की स्थिति
बयान के अनुसार, देश के हॉस्पिटलों में क़रीब 11.95 लाख एन95 मास्क स्टॉक में हैं और दो घरेलू आपूर्तिकर्ता हर रोज़ 50 हज़ार मास्क सप्लाई करने की स्थिति में हैं। रिपोर्ट के अनुसार ये अपनी क्षमता को बढ़ा रहे हैं और एक हफ़्ते के भीतर हर रोज़ एक लाख मास्क बनाने की स्थिति में होंगे। हालाँकि इसमें यह साफ़ नहीं किया गया है कि क्या इतने मास्क काफ़ी होंगे।
यह सवाल इसलिए भी कि सिर्फ़ एक राज्य तमिलनाडु ने ही 25 लाख एन95 मास्क का ऑर्डर दे दिया है। यह संख्या देश भर में मौजूदा 11.95 लाख के स्टॉक से दोगुनी से भी ज़्यादा है।
एचएलएल की वेबसाइट पर वैश्विक और घरेलू टेंडर की रिपोर्ट मौजूद है। इसमें सरकार ने 20 लाख कवरॉल, 20 लाख प्रोटेक्टिव गोगल्स, 50 लाख एन95 मास्क, 4 करोड़ तीन स्तर वाले सर्जिकल मास्क, 40 लाख नाइट्राइल ग्लोव्स और हैंड सैनिटाइज़र की 10 लाख बोतल के ऑर्डर दिए गए हैं।
देश में बढ़ते कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या के मद्देनज़र इसकी तैयारी काफ़ी मायने रखती है। अब वायरस से पीड़ित लोगों की संख्या काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ऐसे प्रोटेक्टिव किट की भी। देश भर में पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़कर क़रीब 1100 हो गई है और मरने वालों की संख्या भी 29 हो गई है। लॉकडाउन के बावजूद इस वायरस के तेज़ी से फैलने के आसार हैं।