'धर्म', धर्म स्थलों के हमलावरों का?
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के ज़िले डेरा रहीम यार ख़ान के भोंग शरीफ़ नामक इलाक़े में एक गणेश मंदिर पर स्वयं को 'गर्व से मुसलमान' कहलवाने वाले कुछ असामाजिक शरारती तत्वों ने गत 5 अगस्त को तोड़ फोड़ की और मंदिर को क्षति पहुँचाई। स्थानीय प्रशासन द्वारा इस घटना का कारण इससे पहले 23 जुलाई को इलाक़े की एक घटना बताई जा रही है जिसमें कथित तौर पर हिन्दू समुदाय के एक आठ साल के बच्चे ने स्थानीय मदरसे की एक लाइब्रेरी में पेशाब कर दिया था। इसके बाद मदरसा प्रशासन ने ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए गत 24 जुलाई को उस आठ साल के बच्चे के विरुद्ध 295ए के तहत मामला दर्ज कराया था।
पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून और इसमें सज़ा का प्रावधान अत्यंत कठोर है। इसमें 295ए के तहत 10 साल तक के दंड का प्रावधान है, जबकि 295-बी के तहत उम्र कैद की सज़ा व धारा 295-सी के अंतर्गत फांसी तक हो सकती है। भोंग शरीफ़ की स्थानीय पुलिस द्वारा 295ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के बाद उस बच्चे को गिरफ़्तार कर लिया गया था।
पुलिस ने तफ़्तीश के बाद जब यह पाया कि चूँकि आरोपी बच्चा नाबालिग़ है इसलिए उसे 295ए की धारा के अंतर्गत सख़्त सज़ा नहीं दी जा सकती लिहाज़ा इसी पुलिस रिपोर्ट के आधार पर मजिस्ट्रेट ने उस आरोपी नाबालिग़ बच्चे को 28 जुलाई को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया।
इस पूरे प्रकरण में गणेश भगवान या किसी हिन्दू मंदिर की क्या भूमिका है, उसका क्या दोष है, यह बात समझ से परे है। परन्तु जिस पुलिस प्रशासन ने उस बच्चे के नाबालिग़ होने की पुष्टि अदालत में की वे भी मुसलमान थे और जिस वकील ने उस बच्चे की अदालत में पैरवी की वह भी मुसलमान और अदालत के जिस दंडाधिकारी ने बच्चे को ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया वह भी मुसलमान। परन्तु पुलिस व अदालत के इन पढ़े लिखे मुसलमान लोगों को अपने धर्म पर न कोई ख़तरा मंडराता नज़र आया न ही 'अल्लाह' का किसी तरह का अपमान महसूस हुआ।
परन्तु आश्चर्य का विषय है कि मुट्ठी भर अशिक्षित, अतिवादी व रूढ़िवादी सोच वाले कुछ लोगों ने इस पूरे प्रकरण का ग़ुस्सा गणेश मंदिर पर हमला करके उतारा। यदि इस अतिवादी वर्ग को या इसे उकसाने वालों को बच्चे की रिहाई से तकलीफ़ थी तो वे अपना ग़ुस्सा पुलिस थाने या अदालत पर इसी तरह से तोड़ फोड़ या आक्रमण कर उतार सकते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि ये चतुर व शातिर असामाजिक तत्व जानते हैं कि इसका अन्जाम क्या हो सकता है। लिहाज़ा इन्होंने हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय के आराधना स्थल गणेश मंदिर जैसा 'सॉफ़्ट टारगेट' चुना।
तो क्या किसी अल्पसंख्य समाज के धर्मस्थल को अपवित्र व अपमानित करना तथा उसकी अस्मिता को चोट पहुँचाना किसी भी धर्म की शिक्षा या संस्कारी कृत्य कहा जा सकता है? क्या इसी तरह के बुद्धिहीन अतिवादियों ने ही 'धर्म ध्वजा' हाथों में संभाल रखी है?
छोटे बच्चे या बुज़ुर्ग लोग किसी को भी मूत्र विसर्जन जैसी प्राकृतिक स्थिति का सामना कहीं भी करना पड़ सकता है। मूत्र विसर्जन का किसी धर्म या धर्मस्थल से क्या वास्ता? बच्चे को तो मुआफ़ कर देना ही सज़ा देने से भी बड़ा धर्म है। इस्लाम धर्म के जिस शरीया क़ानूनों में सख़्त से सख़्त सज़ाओं का ज़िक्र है वहाँ भी सबसे पहली मुआफ़ करने की ही हिदायत दी गयी है।
परन्तु पाकिस्तान का वह कट्टरपंथी समाज जिसे न तो धर्म का ज्ञान है और न ही उसके मर्म का, वह आए दिन इस तरह की हरकतें करता रहता है। केवल मंदिर ही नहीं, बल्कि इन कट्टरपंथियों की विचारधारा से भिन्न मत रखने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों विशेषकर शिया, हज़ारा, अहमदिया तथा ईसाई व सिख समुदाय से संबद्ध मस्जिदों, दरगाहों, इमाम बारगाहों, चर्चों तथा गुरद्वारों और इनके जुलूसों पर भी बड़े से बड़े, यहाँ तक कि आत्मघाती, हमले तक होते रहे हैं।
4 जनवरी 2011 को इसी ज़हरीली विचारधारा रखने वाले मुमताज़ क़ादरी नाम के एक कट्टरपंथी पुलिस गार्ड ने पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी थी। मुमताज़ क़ादरी की तैनाती सलमान तासीर की सुरक्षा के लिए की गयी थी। परन्तु सलमान तासीर का 'क़ुसूर' केवल यह था कि वे इसी ईश निंदा क़ानून के दुरुपयोग व इस क़ानून के चलते पूरी दुनिया में पाकिस्तान की हो रही किरकिरी से चिंतित होकर इस क़ानून की समीक्षा किये जाने के पक्षधर थे। यह बात उनके गार्ड को पसंद नहीं थी?
यह घटना इस निर्णय पर पहुँचने के लिए एक और प्रमाण है कि जब धर्मान्धता व कट्टरपंथी विचार किसी इंसान के मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लेते हैं उस समय न वह महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष का व्यक्तित्व देखता है न इंदिरा गांधी जैसी महिला प्रधानमंत्री का और न ही सलमान तासीर जैसे उदारवादी व प्रगतिशील सोच रखने वाले किसी गवर्नर का। मुमताज़ क़ादरी व इंदिरा गाँधी के हत्यारों ने तो यह भी नहीं सोचा कि उनका पहला धर्म व कर्तव्य तो अपने 'स्वामियों' की रक्षा करना है? आख़िर यह कैसी धर्मांधता है जिसने उन्हीं निहत्थे लोगों को मारने के लिये आमादा कर दिया जिनकी सुरक्षा करने के लिये उन्हें तनख़्वाह मिलती थी और उसी तनख़्वाह से उनका व उनके परिवार का पालन पोषण होता था? और इन सबसे अफ़सोसनाक, शर्मनाक और चिंताजनक यह कि आज उनके अपने समाज में ऐसे हत्यारों के समर्थक भी मौजूद हैं?
बहरहाल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने गणेश मंदिर पर हुए हमले की निंदा की और सरकार की तरफ़ से मंदिर की मरम्मत का आश्वासन भी दिया है।
इमरान ख़ान ने पंजाब के आईजी को भी निर्देशित किया है कि वे मंदिर के समस्त हमलावरों की गिरफ़्तारी सुनिश्चित करें तथा यदि पुलिस की ओर से कोई लापरवाही बरती गयी है तो पुलिस के विरुद्ध भी कार्रवाई करें। वहाँ के सुप्रीम कोर्ट ने भी जमकर फटकार लगाई है और उपद्रवियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के आदेश दिये हैं।
इमरान ख़ान के इन प्रयासों से पाकिस्तान के अल्संख्यक हिन्दू समुदाय के लोगों के आँसू अस्थायी रूप से ज़रूर पोछे जा सकेंगे परन्तु आए दिन होने वाली इस तरह की घटनाओं के चलते उनके दिलों में स्थाई रूप से बैठे भय का निवारण कैसे हो सकेगा?
ज़ाहिर है कट्टरपंथी ज़हरीली विचारधारा रखने वाले लोग मंदिर -मस्जिद -चर्च -गुरद्वारे -इमामबारगाह आदि का सम्मान करना या धर्म व कर्तव्य के मर्म को समझना क्या जानें। पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-भारत -बांग्लादेश किसी भी देश में किसी भी धर्म के किसी भी धर्मस्थल के हमलावर दरअसल धार्मिक प्रवृत्ति के नहीं बल्कि धर्मान्ध होते हैं।