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हिंदी को अनिवार्य बनाने की ख़बर को जावड़ेकर ने किया खारिज

हिंदी को अनिवार्य बनाने की ख़बर को जावड़ेकर ने किया खारिज

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस ख़बर को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार देश भर में कक्षा 8 तक हिन्दी को अनिवार्य बनाने जा रही है। 

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उस मीडिया रिपोर्ट का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा 8 तक हिन्दी की पढ़ाई को अनिवार्य करने जा रही है। उन्होंने इसे 'भ्रामक' और 'मीडिया के एक हिस्से का दुष्प्रचार' क़रार दिया है। उन्होंने कहा है कि नई शिक्षा नीति की मसौदा रिपोर्ट में किसी भाषा को अनिवार्य करने की सिफ़ारिश नहीं की है। 

दरअसल, 'इंडियन एक्सप्रेस' अख़बार ने गुरुवार को एक ख़बर छापी, जिसमें कहा गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार अनिवार्य रूप से हिंदी पढ़ाए जाने के संबंध में जल्द नीति बन सकती है। यह भी कहा गया है कि नई शिक्षा नीति पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए 9 सदस्यों वाली कस्तूरीरंगन कमेटी ने कुछ सिफ़ारिशें की हैं। इसमें हिंदी को आठवीं कक्षा तक अनिवार्य बनाने की भी सिफ़ारिश भी शामिल है। कमिटी ने 

रिपोर्ट दिसंबर में ही तैयार कर ली थी, जिसे उसके अध्यक्ष स्वयं मंत्री जावड़ेकर को सौंपना चाहते थे। पर मानव संसाधन विकास मंत्री ने उन्हें अब तक मिलने का समय नहीं दिया है।  

सवाल यह उठता है कि जब जावड़ेकर को यह रिपोर्ट सौंपी ही नहीं गई है, उन्होंने देखा ही नहीं है तो उन्होंने यह कैसे तय कर लिया कि इसमें क्या सिफ़ारिश की गई है। दूसरी बात यह है कि उन्होंने रिपोर्ट देखे बग़ैर अख़बार की ख़बर को कैसे भ्रामक और दुष्प्रचार क़रार दिया। 

कस्तूरीरंगन समिति ने रिपोर्ट में मुख्य रूप से दो बातें कहीं हैं-तीन भाषा फ़ार्मूला के तहत हिन्दी की पढ़ाई को कक्षा 8 तक अनिवार्य करना और गणित और विज्ञान का एक ही पाठ्यक्रम पूुरे देश में लाागू करना। समिति ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि मैथिली, भोजपुरी और अवधी भाषाओं में स्थानीय स्तर पर कक्षा 5 तक का पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन आदिवासी भाषाओं और बोलियों की अपनी लिपि प्रचलन में नहीं हैं और उन्हें रोमन लिपि में लिखा जा रहा है, उनके लिए देवनागरी लिपि में सामग्री तैयार की जाए। यह सामग्री उनकी भाषा में लेकिन देवनागरी लिपि में हो। 

क्या है तीन भाषा फ़ार्मूला

केंद्र सरकार ने 1968 में त्रि-भाषा फ़ार्मूला लागू किया। इस फ़ार्मूले में यह सिफ़ारिश की गई थी कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी, अंग्रेज़ी और एक आधुनिक भाषा (दक्षिण भारत की एक भाषा को प्राथमिकता मिले) स्कूलों में पढ़ाई जाएं और ग़ैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में स्कूलों में हिन्दी, अंग्रेज़ी और एक स्थानीय भाषा पढ़ाई जाएँ।

क्यों हुआ विरोध

सरकार की इस भाषा नीति का ज़बरदस्त विरोध हुआ। दक्षिण भारत समेत तमाम विरोधियों का कहना था कि यह उन पर हिन्दी थोपने की एक चाल है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में धरना, विरोध प्रदर्शन, बंद और हिंसक वारदात तक हुईं। तमिलनाडु के बड़े नेता अन्नादुरई ने इसे तमिल अस्मिता से जोड़ कर देखा और वहां भयानक विरोध हुआ। तमिलनाडु में आज भी त्रि-भाषा फ़ार्मूला लागू नहीं है। पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में इसके ख़िलाफ़ आवाज़ें उठीं। पश्चिम बंगाल में भी अब तक हिन्दी को स्कूलों में अनिवार्य नहीं बनाया गया है। इसलिए समझा जाता है कि इन जगहों पर इसका विरोध एक बार फिर हो सकता है। 

अगर स्कूलों में हिन्दी भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य बनाया गया तो इसै 'हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान' के नारे से भी जोड़ कर देखा जा सकता है। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रिय विषय रहा है और वह इसे सीधे राष्ट्रवाद से जोड़ कर देखता आया है। इस आधार पर भी इसका विरोध हो सकता है। चुनाव के ठीक पहले सरकार यह फ़ैसला लेकर शायद बैठे बिठाए कोई नई मुसीबत मोल लेना न चाहे, संभव है इसे देखते हुए प्रकाश जावड़ेकर ने ख़बर का ही खंडन कर दिया हो। 

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