हिमाचल: मुसलिमों पर हमला; ग्रामीण बोले- नफ़रत ने दिमाग़ में ज़हर घोल दिया

01:08 pm Apr 19, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कोरोना वायरस को लेकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत किस हद तक फैलाई गई है, इसका अंदाज़ा हिमाचल प्रदेश में जम्मू-कश्मीर के मज़दूरों पर हमले से पता चलता है। दो वक़्त की रोटी के लिए मज़दूरी करने वाले मज़दूरों को एक हफ़्ते बाद भी यह तक नहीं पता है कि उन्हें क्यों पीटा गया वे टूटे-फुटे टीन के शेड में रह रहे थे। कुछ लोग रात में गाड़ी से आए। दरवाज़ा तोड़ते हुए घर में घुसे। 'उग्रवादी' कहते हुए ताबड़तोड़ हमला कर दिया। कई मज़दूरों के हाथ तोड़ दिए, दूसरे मज़दूरों को भी गंभीर चोटें आईं। घायल मज़दूर यूँ ही घटना बयाँ करते हैं लेकिन हमले का कारण नहीं बता पाते हैं। हालाँकि सरपंच, वकील और स्थानीय लोग कहते हैं कि हमले का कारण तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम को लेकर 'नफ़रत फैलाने वाला कैंपेन' है। राज्य में आए कोरोना के कुल 36 पॉजिटिव केसों में से 23 के तब्लीग़ी जमात से जुड़े होने के बाद से ऐसी नफ़रत फैलाई जा रही है।

तब्लीग़ी जमात का मामला आने के बाद से देश भर में नफ़रत की ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं। दिल्ली में भी एक युवक को पीटा गया था। उत्तर प्रदेश से तो कई ख़बरें आ गईं कि मुसलिमों को सब्जी भी नहीं बेचने दी जा रही है। दरअसल, कुछ रिपोर्टों में तो आरोप लगाया गया है कि मीडिया का एक वर्ग ऐसी रिपोर्टिंग कर रहा है कि अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बना है। इस मामले में जमीयत उलेमा ए हिंद ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि मीडिया का कुछ हिस्सा तब्लीग़ी जमात के दिल्ली में पिछले महीने हुए कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफ़रत फैला रहा है। सोशल मीडिया पर तो नफ़रत वाले ऐसे पोस्ट अंधाधुँध डाले जा रहे हैं। 

ऐसे ही माहौल में हिमाचल प्रदेश के बड़ौत गाँव में मज़दूरों के पीटे जाने की ख़बर आई। क़रीब हफ़्ते भर पहले 11 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के नौ मज़दूरों पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया था। इसमें कई लोग घायल हुए थे। इसमें से तीन लोगों के हाथों में फ्रैक्चर हुआ था। एक मज़दूर छुप गया था और हमला करने वालों की गाड़ी एसवूयी का नंबर नोट कर लिया था। स्थानीय व्यक्ति दौलत नेगी और जॉय चौधरी ने उन्हें सहायता की और हॉस्पिटल पहुँचाया। जॉय चौधरी ने इस घटना को सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया था।

इस मामले में केस दर्ज किया गया था और तीन आरोपियों को गिरफ़्तार किया गया था। हालाँकि, कोरोना वायरस महामारी के कारण तीनों को ज़मानत दे दी गई और हर रोज़ सुबह से शाम को थाने में मौजूद रहने का आदेश दिया गया। पुलिस का कहना है कि हमले के पीछे का मक़सद साफ़ पता नहीं चल सका है।

बता दें कि जम्मू-कश्मीर के रामबन और रियासी ज़िले के ये मज़दूर नवंबर महीने में बिजली संयंत्र में काम करने आए थे। एक ठेकेदार उनको लेकर यहाँ आया था और उनको 450 रुपये प्रति दिन की मज़दूरी मिलती थी। उन्हें एक ऐसे टीन शेड में ठहराया गया था जहाँ न तो बिजली थी और न ही भोजन, पानी या टायलेट की पर्याप्त व्यवस्था थी। लॉकडाउन के कारण काम बंद होने के कारण उनके पास पैसे नहीं थे।

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, हमले में घायल एक मज़दूर बहर अहमद ने कहा कि हमले से दो दिन पहले ही पड़ोस के गाँव से एक आदमी आया था जो उनके लिए कुछ रुपये लाया था जिससे कि लॉकडाउन में वे गुज़ारा चला सकें। वह कहते हैं कि तभी से दिक्कत होने लगी थी, लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि उन्हें क्यों पीटा गया। चूँकि वे छह माह से वहाँ रह रहे थे इसलिए सभी ग्रामीण उन्हें जानते थे। 

'द क्विंट' की रिपोर्ट के अनुसार, गाँव की सरपंच रंजना देवी कहती हैं, 'कुछ दिनों पहले पास के गाँव हरबाग गाँव से एक मज़दूर बड़ौत आया था। वह भी जम्मू-कश्मीर से है। गाँव के अन्य लोगों ने इसे देखा और इससे वे चिंतित हो गए। तहसीलदार को बुलाया गया और हमने उस आदमी से पूछा कि वह कौन था और क्यों आया। जब उसने बताया कि वह पास के गाँव से है तो उसे गाँव से चले जाने के लिए कहा गया था। लेकिन इस घटना से पहले ही लोगों में दहशत फैल गई थी।' सरपंच के पति रमेश ठाकुर कहते हैं, 'तब्लीग़ी जमात के मामले के बाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ बहुत ग़ुस्सा और डर है। यह हर जगह है। व्हाट्सएप पर, फेसबुक पर, हर जगह। इस ग़ुस्से ने लोगों के दिमाग़ में ज़हर घोल दिया है।' 

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, जॉय चौधरी कहते हैं, 'यह भले, शांतिप्रिय और मेहमाननवाज लोगों का गाँव है। उन्हें (हमलावरों को) स्पष्ट रूप से हमारे देश में अल्पसंख्यक-विरोधी नफ़रत और घृणा फैलाने वाले लोगों द्वारा बरगलाया गया है।' सुप्रीम कोर्ट में राज्य के एक वकील विक्टर ढिस्सा ने कहा कि सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक नैरेटिव के चलते आम नागरिकों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ होते हुए देखकर उन्हें पीड़ा होती है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एबीवीपी कार्यकर्ता अंकित चंदेल कहते हैं कि दुर्भाग्य से तब्लीग़ी जमात के बड़ी संख्या में सदस्यों में कोरोना वायरस की पुष्टि होने के बाद से लोगों में अल्पसंख्यक-विरोधी डर फैल गया है।

राज्य के डीजीपी सीता राम मरडी ने शुक्रवार को कहा था, 'कुछ दुकानों और अस्पतालों में सांप्रदायिक भेदभाव हो रहा है और हमें रिपोर्टें मिली हैं कि सांप्रदायिक विद्वेष के कारण किराएदारों को कमरा खाली कर देने के लिए कहा गया है। यह सही नहीं है और हम ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करेंगे। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में हमने शांति समितियों का गठन किया है, जिन्हें बैठकें आयोजित करने और अपने क्षेत्रों में सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।'