हिजाबः पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी
हिजाब के मुद्दे पर मुस्लिमों की प्रमुख संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की है। उसने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने को आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं होने की बात कहते हुए शिक्षण संस्थाओं में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था।मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की याचिका में कहा गया है कि यह मुस्लिम लड़कियों के साथ सीधे तौर पर भेदभाव का मामला है। हाईकोर्ट ने बिजॉय इमैनुएल के मामले में अलग-अलग प्रासंगिक अर्थ देकर (अनुशासन आदि) तय सिद्धांतों के बीच अंतर पैदा किया है। दूसरी तरफ उसने ये समझा कि लड़कियां परंपरागत हिजाब पहनने की मांग अनिवार्य वर्दी के मामले में दखल दे रही है। हालांकि उसी अनिवार्य वर्दी के तहत सिखों की सिर ढंकने की परंपरा की तरह नियमों में मामूली बदलाव कर संविधान के दायरे में हिजाब को अनुमति दी जा सकती थी।
याचिका में तर्क दिया गया है कि एक धर्म के व्यक्ति को अपने बालों को कपड़े के टुकड़े से ढकने के लिए' वर्दी में दखलन्दाजी मानना और उसे एडजस्ट न करना खुद इंसाफ का मजाक है। यह फैसला न्याय के उन सिद्धांतों को भी नजरन्दाज करता है, जिसमें सभी परंपराओं को वाजिब जगह देने की बात कही गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि मौलिक अधिकारों के संरक्षण के मुद्दे से निपटने के लिए, हाईकोर्ट के फैसले ने पूरी तरह से गलत व्याख्या दी है। हाईकोर्ट इस बात को भूल गया कि देश के तमाम हिस्सों में यह प्रथा विभिन्न रूपों में है। जबकि उसने सभी स्टूडेंट्स के लिए एक वर्दी पर जोर दिया। इस तरह की व्याख्या न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित प्रथाओं के खिलाफ है। यह पूरी तरह से तर्कहीन है और भारत के संविधान में वर्णित विविधता को बनाए रखने के उद्देश्य के खिलाफ है।
बहरहाल, हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। 24 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए कोई विशेष तारीख देने से इनकार कर दिया। अधिवक्ता अदील अहमद और रहमतुल्लाह कोथवाल के जरिए दायर एक अन्य याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट का आदेश गैर-मुस्लिम छात्राओं और मुस्लिम छात्राओं के बीच धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का सीधा उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है: हाईकोर्ट आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 25 का भी उल्लंघन है और अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों का भी उल्लंघन है। जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हुए हैं।