हाथरस : पत्रकार का फ़ोन टैप कर अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है सरकार ने
हाथरस में दलित युवती के साथ कथित बलात्कार और हत्या के मामले में फजीहत होने के बाद बीजेपी की सरकार इस कदर घबराई हुई है कि वह पत्रकारों को निशाना बना रही है। इस कोशिश में वह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कर रही है। इसके साथ ही वह इससे जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी उल्लंघन कर रही है।
यह मामला इसलिए उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि उसने इंडिया टुडे टीवी की एक महिला रिपोर्टर का फ़ोन टैप किया, जिसमें वह हाथरस की पीड़िता के भाई से कह रही है कि वह अपने पिता के बयान का एक वीडियो बना कर उसे भेज दे। रिपब्लिक टीवी ने इसका ऑडिये टेप चलाया और इसके ज़रिए यह बताने की कोशिश की कि किस तरह पत्रकार अपनी पसंद की बात पीड़िता के परिजनों से कहलवा रहे हैं।
क्या कहना है बीजेपी का
बीजेपी आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस पर इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में पहले तो यह कहा कि यह फोन किसी और ने टैप किया, बाद में उन्होंने कहा कि फोन टैप करने के विस्तृत प्रावधान हैं। कुल मिला कर बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख ने यह नहीं माना कि ऐसा कर ग़लत किया गया है।क्या कहता है संविधान
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संघ बनाम पीयूसीएल के एक फ़ैसले में कहा कि पूर्ण निजता के साथ टेलीफ़ोन पर बात करना अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता के हक़ के तहत आता है। इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है और राज्य ख़ास स्थितियों में ही किसी का फ़ोन टैप कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि इंडियन टेलीग्राफ़ एक्ट, 1882 की धारा 3 (2) के तहत राज्य को किसी का भी फ़ोन टैप करने का असीमित हक़ नहीं है। निश्चित स्थितियों में और निश्चित पदाधिकारियों की पूर्व अनुमति के बाद ही फ़ोन टैप किया जा सकता है।
- किसी का फ़ोन केंद्रीय गृह सचिव किसी राज्य के गृह सचिव के आदेश से ही फ़ोन टैप किया जा सकता है।
- फ़ोन टैप करने की पूर्व अनुमति दो महीने के लिए ही दी जा सकती है। इसे बढ़ाया जा सकता है, पर इसे किसी हाल में 6 महीने से अधिक नहीं किया जा सकता है।
- फ़ोन टैपिंग एक निश्चित पते पर ही किया जा सकता है। टैप की हुई सामग्री उसका इस्तेमाल हो जाने के बाद नष्ट कर दिया जाना चाहिए।
कब फ़ोन टैप हो सकता है
फ़ोन टैप ख़ास स्थितियों में ही किया जा सकता है। फ़ोन टैपिंग तभी किया जा सकता है जब देश की संप्रभुता ख़तरे में हो, राज्य की सुरक्षा ख़तरे में हो, किसी मित्र देश के साथ रिश्ते पर बुरा असर पड़ रहा हो या राज्य की क़ानून व्यवस्था ख़तरे में हो।
उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या पत्रकार के फ़ोन करने से देश की संप्रभुता ख़तरे में पड़ गई थी या इससे राज्य ख़तरे में पड़ गया था।
पर्यवेक्षकों का आरोप है कि दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पत्रकार का फ़ोन टैप कर उसके प्रतिद्वंद्वी चैनल को दे दिया और उसने इसे इस रूप में चलाया कि पीड़िता के परिजनों से मनमाफ़िक बयान लिया जा रहा है। सरकार पर सवाल करने वालों की विश्वसनीयता को ख़त्म करने की साजिश के तहत ऐसा किया गया है।
सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया
सरकार के इस काम पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतक्रिया हुई है। ट्विटर पर #HathrasHorrorShocksIndia हैशटैग शुक्रवार की शाम से ही ट्रेंड करने लगा और यह अब तक कर रहा है।पत्रकार साहिल जोशी ने ट्वीट कर कहा कि यह बहुत ही चौंकाने वाला है और यह पुरानी चाल है कि किस तरह ज़मीनी स्तर से रिपोर्ट करने वालों की छवि ख़राब की जाए।
This is absolute shocking , they have gone back to old tactics of maligning people who are reporting from ground. Why not answer questions raised out of your illegal actions ...please mind well , We are NOT scared #HathrasHorrorShocksIndia https://t.co/11R6cYemvR
— Sahil Joshi (@sahiljoshii) October 2, 2020
मशहूर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर कहा कि सम्मानपूर्वक तरीके से अंत्येष्टि भी जीवन जीने के अधिकार में शामिल है।
मशहूर पत्रकार बरखा दत्त ने ट्वीट किया कि हाथरस की पुलिस पत्रकारों को पीड़िता के घर तक नहीं जाने दे रही है, वह और उनकी टीम पैदल चल कर किसी तरह उसके आस पास पहुंची तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और हाईवे पर लेजाकर छोड़ दिया।
After Police blocked media from #Hathras village @themojo_in team and I walked several kms through vast fields and managed to reach the village on foot, only to be caught by the police, put in the police van & deposited right on the highway again. We tried. More reports soon pic.twitter.com/YNzeVusejq
— barkha dutt (@BDUTT) October 2, 2020
उमा भारती ने किया विरोध
इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि स्वयं बीजेपी में भी लोग इसका विरोध करने लगे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा ने लिखा, ‘हाथरस की घटना में जिस प्रकार से पुलिस ने गांव की एवं पीड़ित परिवार की घेरेबंदी की है, उसके कितने भी तर्क हों लेकिन इससे विभिन्न आशंकाएं जन्मती हैं। वह एक दलित परिवार की बेटी थी। बड़ी जल्दबाज़ी में पुलिस ने उसकी अंत्येष्टि की और अब पुलिस के द्वारा परिवार एवं गांव की घेरेबंदी कर दी गयी है।’अंत में उमा लिखती हैं कि अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वे पीड़ित परिवार से ज़रूर मिलेंगी। उन्होंने यह भी लिखा है कि वह बीजेपी में उनसे (योगी से) वरिष्ठ हैं, इसलिए आग्रह है कि उनके सुझाव को अमान्य न करें।
दूसरी ओर, पुलिस ने 14 सितंबर को उस दलित युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार को मानने से इनकार कर दिया है। अपनी सरकारी रिपोर्ट में उसने अभियुक्तों की पिटाई के कारण लकवाग्रस्त हो चुकी दलित युवती को लगी चोटों का जिक्र नहीं किया। रात में सफदरजंग से शव को हाथरस पहुंचा दिया, परिजनों की लाख मनुहार के बाद उनकी बेटी का चेहरा उन्हें नहीं देखने दिया और युवती का दाह संस्कार कर दिया।