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हाथरस : पत्रकार कप्पन को रिश्तेदारों से नहीं मिलने देना सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन?

हाथरस : पत्रकार कप्पन को रिश्तेदारों से नहीं मिलने देना सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन?

मथुरा जेल में बंद इस मलयाली पत्रकार को अपने रिश्तेदारों या किसी दूसरे से मिलने नहीं दिया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है? 

हाथरस गैंगरेप केस की ख़बर करने जा रहे गिरफ़्तार पत्रकार सिद्दिक़ कप्पन को उनके रिश्तेदारों या दूसरे किसी भी आदमी से नहीं मिलने देने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। मथुरा जेल में बंद इस मलयाली पत्रकार को अपने रिश्तेदारों या किसी दूसरे से मिलने नहीं दिया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है 

कप्पन केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्लूजे) से जुड़े हुए हैं। जब इस संस्था ने कप्पन से मिलने की अनुमति लेने के लिए अदालत में याचिका दायर की, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसे खारिज कर दिया। जर्नलिस्ट यूनियन के लोग कप्पन से इसलिए मिलना चाहते हैं कि ताकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की है, उसमें संशोधन किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन

केयूडब्लूजे का कहना है कि कप्पन से नहीं मिलने देना एक दूसरे मामले में पहले दिए गए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है।

याद दिला दें कि दिल्ली ब्यूरो में काम कर रहा यह पत्रकार जब हाथरस वारदात को कवर करने के लिए जा रहा था, उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसे और दूसरे तीन लोगों को रास्ते में ही रोक कर हिरासत में ले लिया। बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया और उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) लगा दिया गया। इसके अलावा धारा 153 ए, 295-ए, 124-ए और आईटी एक्ट की कई धाराओं में भी मामला दर्ज कर जेल में डाल दिया गया।

पुलिस ने यूएपीए का सब-सेक्शन 17 लगाया है, जो आतंकवाद के लिए पैसे एकत्रित करने से जुड़ा हुआ है।

केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स का दावा है कि याचिका खारिज करना सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उसके दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। इसमें डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का हवाला दिया गया है।

क्या कहा था जस्टिस बोबडे ने

यूनियन का यह भी कहना है कि कप्पन के मामले की सुनवाई करने के बाद मुख्य न्यायाधीस जस्टिस एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में बनी बेंच ने 12 अक्टूबर को कहा था कि वे लोग इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करें। इस बेंच ने यूनियन को इसकी भी अनुमति दी थी कि वह पहले से पड़ी याचिका में संशोधन कर लें। इस संशोधन के लिए ही यूनियन के लोग कप्पन से मिलना चाहते हैं, जिसकी अनुमति नहीं दी गई है।

यूनियन की पैरवी कर रहे वकील विल्स मैथ्यूज़ ने द वायर से कहा, “यदि पत्रकारों को अपना काम करन से रोका जाएगा और वकीलों को अपने मुवक्किलों से मिलने से रोका जाएगा, लोकतंत्र का अंत हो जाएगा। इसलिए मुख्य न्यायिक का आदेश ग़ैरक़ानूनी और संविधान के मूल्यों के ख़िलाफ़ है। हमें वकालतनामा तक नहीं दिया गया, आदेश की कॉपी तक हमें दी गई।”

आरोप क्या हैं

उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो एफ़आईआर दर्ज की है, उसमें यह कहा गया है कि कप्पन समेत गिरफ़्तार किए गए चारों लोग 'सीएएआरडी.कॉम' नामक वेबसाइट चला रहे थे, उससे अपारदर्शी तरीके से पैसा एकत्रित किया जा रहा था और उस वेबसाइट से दंगा भड़काने की कोशिश की जा रही थी।

पुलिस ने कहा है कि उसे यह जानकारी मिली थी कि कुछ संदिग्ध लोग दिल्ली से हाथरस जा रहे है और उसने उन्हें बीच में ही रोक लिया। ये चार लोग थे- अतीक-उर-रहमान, सिद्दिक़ कप्पन, मसूद अहमद और आलम। पुलिस ने उन्हें मथुरा के पार से हिरासत में लिया था।

पीएफ़आई कनेक्शन

एक रिपोर्ट के अनुसार, इसके पहले कप्पन पर पीएफ़आई से जुड़े होने का आरोप लगाया गया था। इसके जवाब में कप्पन ने आरोप लगाने वाले लोगों को क़ानूनी नोटिस भेजा था।

इसके पहले  योगी आदित्यनाथ सरकार ने पीएफ़आई को नागरिक क़ानून - नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ राज्य में विरोध-प्रदर्शन के लिए दोषी ठहराया था। सीएए के ख़िलाफ़ पिछले साल प्रदर्शन हुआ था। सरकार चाहती है कि इसे प्रतिबंधित कर दिया जाए।

लेकिन योगी आदित्नाथ सरकार अब तक उन मामलों में पीएफ़आई की भूमिका साबित नहीं कर सकी है। सवाल उठता है कि पत्रकार कप्पन को निशाने पर क्यों लिया जा रहा है।

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