
हरियाणा: विधानसभा हारने के बाद नगर निकाय चुनाव में क्या करेगी कांग्रेस?
हरियाणा में विधानसभा चुनावों में मात खाने के बाद कांग्रेस के लिए नगर निकाय चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन को बनाये रखने के लिए एक बड़ी चुनौती होने वाली है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने हालाँकि प्रदेश प्रभारी को बदल दिया है लेकिन विधानसभा चुनावों में रही कमियों को दूर करने के लिए कोई बड़े परिवर्तन नहीं किये हैं। प्रदेश अध्यक्ष उदय भान विधानसभा चुनावों की तरह ही प्रदेश में अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। लोकसभा चुनावों में जीती हुई 5 सीटों पर कांग्रेस को साबित करना है कि उनका आधार शहरी क्षेत्रों में बी उतना ही मजबूत है जितना ग्रामीण क्षेत्रों में। अपने-अपने लोकसभा में कांग्रेस दिग्गजों को अपने समर्थकों को जिताने की कड़ी परीक्षा से गुजरना है।
हरियाणा की 35 % जनसंख्या अब शहरी क्षेत्रों में बस रही है। तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण के कारण स्थानीय प्रसाशन और व्यवस्थाएँ बनाये रखना महत्वपूर्ण हो जाता है। नगर निकाय चुनाव 2 मार्च को होने हैं और नतीजे 12 मार्च को आएंगे। नामांकन दाखिल करने की आख़िरी तारीख़ 17 फ़रवरी है। शहरी निकाय चुनाव की वजह से चंडीगढ़ में हुई हरियाणा मंत्रिमंडल बैठक में सरकार अभी बजट सत्र की तारीख़ की घोषणा भी नहीं कर पायी है। राज्य का 2025-26 का बजट अब चुनाव के बाद ही पेश किया जाएगा। इस बार क़रीब 2 लाख करोड़ का बजट प्रदेश के लिए पेश होने की सम्भावना है।
राजनीतिक दल ये चुनाव पार्टी के सिंबल पर लड़ रहे हैं। बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत के बाद अब प्रदेश में ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने के लिए अति उत्साहित है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी एक बार फिर से खुद को साबित करने के लिए अपने मेयर और पार्षद बनाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नगर निकायों के चुनाव में मिली बड़ी सफलता को हरियाणा में दोहराने के लिए बीजेपी अपनी रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी को शहरी लोगों की पार्टी भी कहा जाता है। अपनी पैठ को बड़े शहरों के साथ नगरों में मज़बूत करने के लिए बीजेपी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती।
हरियाणा के 8 नगर निगमों में मेयर और पार्षद पद के लिए चुनाव होना है। इसके अलावा 2 नगर निगमों में केवल मेयर का चुनाव होना है क्योंकि पहले के मेयर विधानसभा चुनाव जीत कर विधायक बन चुके हैं। 7 नगर परिषद 21 नगर पालिका के अध्यक्ष और पार्षदों के चुनाव भी होंगे। फरीदाबाद, गुरुग्राम, मानेसर, पानीपत, हिसार, रोहतक, करनाल व यमुनानगर में मेयर निर्वाचित होने। पटौदी, थानेसर, सिरसा, अंबाला, छावनी में नगर परिषद के चुनाव होंगे।
इसके साथ-साथ बराड़ा, बवानी खेड़ा, लोहारू, भिवानी, जाखल मंडी, फारुख नगर, अटेली, नारनौल, बेरी, जुलना, कलायत, पुण्डरी, सीवन, इंद्री, नीलोखेड़ी, कनीना, हथीन, तावडू, खरखौदा, रादौर नगर पालिकाओं के चुनाव होंगे। अम्बाला और सोनीपत के मेयर के विधानसभा में चले जाने के बाद मेयर के लिए उपचुनाव होंगे।
बीजेपी ने अपनी नयी रणनीति के तहत 9 में से 6 महिला प्रत्याशियों को मेयर चुनाव के मैदान में उतारा है। बीजेपी विकास को ही अपने प्रचार में केंद्रित कर रही है, जबकि विपक्षी राजनीतिक दल निगमों और पालिकाओं में चल रहे भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं।
पिछले दस सालों से प्रदेश में चल रही शहरी विकास योजनाओं की असफलता को कांग्रेस मुख्य मुद्दा बना रही है। बीजेपी को कई स्थानों पर अपने नाराज़ नेताओं को मनाने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है। करनाल की पूर्व मेयर रेणुबाला पहले टिक कटाने की वजह से नाराज़ हो गयी थी, लेकिन नयी लिस्ट में दबाव में रेणुबाला को टिकट दिया गया। सोनीपत में मुख्यमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार राजीव जैन और उनकी पत्नी पूर्व मंत्री कविता जैन नाराज़ हो गईं। गुरुग्राम में मेयर पद के लिए पूर्व सांसद सुधा यादव के क़रीबी को टिकट दिया गया लेकिन राव इंद्रजीत नाराज थे इसलिए दूसरी सूची में प्रदेश की महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य को टिकट दिया गया। मानेसर के प्रत्याशी की घोषणा भी स्थानीय गुटबाजी के कारण देर से हुई।
आम आदमी पार्टी ने कई स्थानों पर मेयर के प्रत्याशियों का एलान किया है। प्रदेश अध्यक्ष सुशील गुप्ता ने नगर निकाय चुनावों में पार्टी की बड़ी जीत का दावा किया है। आम आदमी पार्टी ने 8 लिस्ट जारी करके अधिकतर वार्डों के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है। जेजेपी ने भी कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारा है। पार्षद के चुनाव जेजेपी पार्टी चिन्ह पर नहीं लड़ेगी।
प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस निकाय चुनावों में बीजेपी को घेरने के लिए कोई ठोस रणनीति पर काम कर रही हो, यह अभी तक दिखाई देता नहीं। प्रदेश सरकार की शहरी विकास की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में खामियों पर कांग्रेस के स्थानीय प्रतिनिधियों ने मुखर विरोध में कोई बड़े आंदोलन कहीं किये नहीं। ऐसे में कांग्रेस किस तरह अपने विश्वास को शहरी मतदाताओं में बनाये रखती है, यह परिणामों के बाद ही साफ़ होगा।