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हरियाणा में चुनाव नतीजे के राजनीतिक संकेत क्या?

हरियाणा में चुनाव नतीजे के राजनीतिक संकेत क्या?

2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटें जीतने वाली बीजेपी आख़िर इस बार पाँच सीटें कैसे गँवा दीं? जानिए, क्या है वजह है आगे राज्य की राजनीति पर क्या असर होगा।

हरियाणा प्रदेश ने स्पष्ट और सशक्त आवाज में अपना जनादेश देश के सामने रखा है। 2014 और 2019 में एकतरफा जीत हासिल करके जिस तरह सत्ताधारी भाजपा ने हरियाणा प्रदेश को हांकने की कोशिशें कीं, एकाधिकार स्थापित करने के प्रयास किये, सामाजिक विभाजन को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया, इन चुनावों में प्रदेश की जनता ने 10 में से 5 सीटों पर हरा कर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। उन्होंने क्षेत्रीय दल ईनेलो, जजपा द्वारा प्रदेश के हितों का राजनीतिक सौदा करने की राजनीति को पूर्णतया दफन कर दिया। इन क्षेत्रीय दलों द्वारा राजनीतिक विरासत को अपनी जागीर समझ लेने के गुमान को प्रदेश की जनता ने नकार दिया। 1.74 % वोट इनेलो को मिले जबकि 0.87% वोट जजपा को मिले। अब इन दलों के अस्तित्व का ही संकट पैदा हो गया है।

भाजपा को 5 सीटों पर हार मिली है। हरियाणा की दोनों सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। सिरसा सुरक्षित से कांग्रेस की दिग्गज नेता कुमारी शैलजा ने भाजपा के अशोक तंवर को क़रीब 2 लाख 68 हजार वोटों से हराया है। अनुसूचित जाति, ग्रामीण और किसान वर्ग का बड़ा समर्थन  साफ तौर पर इस सीट पर कांग्रेस के पक्ष में गया है। अशोक तंवर को अपने चुनाव प्रचार के दौरान गांव में घुसने नहीं दिया गया था। किसानों द्वारा जगह-जगह भारी विरोध किया गया था। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और हिंदुत्व के ध्वज वाहक योगी आदित्यनाथ की चुनावी सभाएं भी यहां भाजपा को जीत दिलाने में पूरी तरह असफल साबित हुई।

अम्बाला सुरक्षित सीट से वरुण मुलाना को जीत मिली है। कांग्रेस के वरुण मुलाना ने भाजपा के दिवंगत सांसद रत्न लाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को 49036 वोटों से शिकस्त दी। किसान आंदोलन का गढ़ माने जाने वाले अम्बाला ने भाजपा के प्रधान प्रचारक नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली में दिखाए गए सपनों को पूरी तरह से नकार दिया। प्रदेश में मुख्यमंत्री बदल कर नए लाये गए मुख्यमंत्री नायब सैनी, जो इसी क्षेत्र से हैं, भी भाजपा के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला पाए।

जाटों के गढ़ में हिसार, रोहतक, सोनीपत की सीटों पर कांग्रेस के जयप्रकश, दीपेंद्र हुड्डा, सतपाल महराज जीते हैं। हिसार की सीट पर कांग्रेस के जयप्रकाश ने 63381 वोटों से भाजपा के प्रत्याशी रणजीत सिंह चौटाला को मात दी है। 20 साल बाद ये सीट कांग्रेस ने दुबारा हासिल की है। जयप्रकाश हिसार से चौथी बार सांसद बने हैं। चुनाव से कुछ समय पहले हिसार की लोकसभा सीट से ही भाजपा के सांसद बृजेन्द्र सिंह ने लोकसभा से त्यागपत्र दे कर भाजपा पार्टी को अलविदा कहा था। हरियाणा के पूर्व में जजपा से उपमुख्यमंत्री रहे दुष्यंत चौटाला की माता नैना चौटाला की यहाँ जमानत जब्त हो गयी है। वहीं इनेलो से चौटाला परिवार की एक और बहु भी अपनी जमानत गँवा बैठी।

रोहतक से अबकी बार दीपेंद्र हुडा ने बाज़ी मार ली। 272380 मतों से भाजपा के डॉ. अरविन्द शर्मा की हार हुई है। अबकी बार दीपेंद्र को इस लोकसभा क्षेत्र में 62.8 % वोट मिले हैं। भाजपा की करारी हार यहां हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ को बचाने में दीपेंद्र  कामयाब रहे। पिछली बार दीपेंद्र हुड्डा को क़रीब 6 हजार मतों से हर  झेलनी पड़ी थी।

सोनीपत की सीट पर हुड्डा गुट के ही कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महराज को कड़े मुक़ाबले में जीत मिली है। भाजपा के मोहन लाल बड़ोली भाजपा के भरपूर समर्थन के बाद भी यहाँ जीत नहीं सके।

किसानों के आंदोलन का गढ़ कहे जानेवाली इस सीट पर भाजपा को हार मिलना प्रदेश की सियासत के मिजाज को साफ तौर पर दर्शाता है।

कुरुक्षेत्र से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार सुशील गुप्ता भाजपा के नवीन जिंदल से 29201 मतों से  हार गए। यहाँ इनेलो के प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला ने भी चुनाव लड़ा और मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था। नवीन जिंदल को 542175 (45%),  सुशील गुप्ता को 513154 (42.6%) और इनेलो के अभय सिंह चौटाला को 78708 (6.5%) वोट मिले। नवीन जिंदल तीसरी बार यहां से सांसद चुने गए हैं। पहले दो बार कांग्रेस के टिकट पर नवीन जिंदल यहाँ से सांसद रह चुके हैं।

करनाल की लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर चुनाव जीतने में सफल तो हुए लेकिन भाजपा के पिछले चुनावों में जीत के अंतर के क़रीब नहीं पहुँच सके। गुरुग्राम सीट पर अपेक्षा के अनुरूप ही भाजपा को जीत मिली है। गुरुग्राम में कांग्रेस के प्रत्याशी  फिल्म अभिनेता राज बब्बर भाजपा से तीसरी बार सांसद का चुनाव लड़ रहे राव इंद्रजीत से हार गए हैं।

सत्ताधारी भाजपा प्रदेश में फिर से 10 सीटों को अपने कब्जे में लेने की योजना पर काम कर रही थी। प्रदेश में चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्री बदल कर प्रदेश सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी से ध्यान हटाने के किये गए प्रयास पूरी तरह विफल हो गए। सरकारी नौकरियों में खाली पड़े 2 लाख से अधिक पदों पर भर्ती न किये जाने, बार बार पेपर लीक और भर्तियों का कानूनी दायरों में उलझना, बेरोजगार युवाओं के लिए कोई ठोस योजना प्रदेश में स्थापित न कर पाना, किसानों की मांगों की उपेक्षा और बलपूर्वक उनके आंदोलन को कुचलना, किसानों की फसलों के बीमा मुआवजा, प्राकृतिक आपदाओं से फसलों के नुकसान की भरपाई में कोताही, आशा कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां, मनरेगा के तहत काम व मानदेय के घपलों का समाधान नहीं करना, महिला खिलाड़ियों और पहलवान बेटियों की आबरू से खिलवाड़ के आंदोलन के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं करना, भ्रष्टाचार का व्यापक होना, मंहगाई जैसे मुद्दों को गंभीरता से न ले कर केवल विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के खोखले सपनों और छद्म विकास के मरीचिका को ही वास्तिवकता बनाने स्वीकार करवाने में जुटी भाजपा सरकार के विरोध में ये जनदेश है। अग्निवीर योजना का दंश भी प्रदेश में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।

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