लोकसभा चुनाव में एक झलक हरियाणा के मतदाताओं की मनोदशा की ज़रूर मिली है। लेकिन पूरा फ़ैसला अब विधानसभा चुनाव में आएगा क्योंकि मतदाताओं के लिए प्रदेश के स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण होंगे। प्रदेश में सामाजिक आर्थिक परिस्थितियाँ भी प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करेंगी। 15 से 20 सितंबर के बीच कभी भी राज्य की विधानसभा के चुनावों की घोषणा हो सकती है।
हरियाणा के विधानसभा चुनाव एनडीए की गठबंधन सरकार का लोकसभा चुनाव के बाद एक बड़ा राजनीतिक परीक्षण होगा। लगभग 10 साल की सत्ता पर हरियाणा के मतदाता अपना फ़ैसला देंगे। तुलना मतदाताओं में भी होने लगी है कि भाजपा जिन मुद्दों पर पूर्व की कांग्रेस सरकार को घेरती रही है अब डबल इंजन की सरकार उनके कितने स्थाई समाधान अपने कार्यकाल में कर पायी। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश में पुलवामा की लहर के बावजूद पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था और जजपा से समर्थन के बाद ही अपनी सरकार प्रदेश में बना पाई थी। विपक्ष अब भाजपा को प्रदेश के मुद्दों पर घेरने में जोर शोर से जुट गया है।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही केंद्रित रहेगा। सरकार की ओर से डिलीवर क्या हुआ, इसको प्रदेश का मतदाता अपनी कसौटी पर नाप-तौल रहा है। प्रदेश में कई बड़े मुद्दे हैं जिन पर वर्तमान सरकार कोई ठोस समाधान करने में विफल नज़र ही रही है। चुनाव सिर पर आते ही आनन-फानन में अब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी विभिन्न वर्गों को लुभाने के लिए राहत के फ़ैसले लेने लगे हैं ताकि किसी प्रकार मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल की नाराज़गी को कम किया जा सके। असंतुष्टों को भाजपा के पक्ष में फिर से लाया जा सके।
डॉक्टर की हड़ताल ख़त्म होते ही नेशनल हेल्थ मिशन स्टाफ़ की हड़ताल का एलान हो गया। पीजीटी व एक्सटेंशन लेक्चरर पंचकूला में धरनारत हैं। क्लेरिकल वेलफेयर सोसाइटी अपनी पुराणी मांगों के लिए पूरे प्रदेश में लामबंद हो रहे हैं। रोडवेज के कर्मचारी निजीकरण की नीतियों के विरोध में हैं। नगर निगमों नगर पालिकाओं में कर्मचारी ठेका प्रथा के विरोध में कच्चे कर्मचारियों को पक्के करने की मांग पर खड़े हैं। पुरानी पेंशन योजना को लेकर कर्मचारी लगातार जिला दर जिला प्रदर्शन कर रहे हैं। पूरे प्रदेश की आशा वर्कर आंगनबाड़ी वर्कर महिलाओं ने कुछ दिन पहले ही स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता के घर पर प्रदर्शन किया था। प्रदेश के आढ़तिया वर्ग में अलग से असंतोष है। सरकारी कर्मचारियों के विभिन्न वर्ग लगभग सभी विभागों में अलग अलग प्रदर्शन कर रहे हैं। पंच-सरपंचों की मांगों पर पेंच अभी भी फँसा हुआ है।
प्रदेश के स्थानीय मुद्दों में सबसे बड़ा मुदा है बेरोजगारी जो दिनोंदिन विकराल होता जा रहा है। देश में सबसे अधिक बेरोजगारी लगभग 42% प्रदेश में है। 2 लाख नियमित पद सरकारी नौकरियों में खाली पड़े हैं। बार बार पेपर लीक और भर्तियों का कानूनी पचड़ों में फँसना सरकार के लिए एक अलग चुनौती बानी हुई है जिसका कोई ठोस जवाब भाजपा दे नहीं पा रही।
लघु और मध्यम उद्योग संकट से गुजर रहे हैं। विदेशी निवेश के बड़े बड़े दावों के बावजूद कोई बड़े उद्योग व परियोजनाएं प्रदेश में स्थापित नहीं हुए जो रोजगार की समस्या को कोई राहत दे पाते।
2014 में भाजपा की सरकार ने गुरुग्राम में एक बड़ा आयोजन विदेशी व्यापारिक संस्थानों के लिए किया था जिसमें कहा गया था कि 2 लाख करोड़ के एमओयू किये गए हैं, जिससे प्रदेश के युवाओं को नौकरियों के अवसर मिलेंगे लेकिन धरातल पर उसके कोई परिणाम देखने को नहीं मिलते। इसके विपरीत प्रदेश के युवाओं को रोजगार के लिए विदेशों की सेनाओं में भर्ती होने की विवशता हो गयी है। हरियाणा कौशल विकास निगम द्वारा भी सरकार कोई खास समाधान युवाओं के लिए नौकरी के अवसर बढ़ाने में दे नहीं पायी।
किसान वर्ग भी परेशान है। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार फसलों के मूल्य तय करने, पूरी फसल को खरीदने का कोई मजबूत प्रावधान हुआ नहीं। इसके विपरीत तीन कृषि कानूनों के कारण एक बड़े आंदोलन में किसान लगे रहे। अभी भी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर किसान आंदोलन रत हैं। फसल बीमा योजना के तहत मुआवजे में देरी, प्राकृतिक आपदाओं के समुचित मुआवजे समय पर नहीं मिलना, बीज खाद के दामों, चुनिंदा कृषि यंत्रों का जीएसटी के दायरे में आना, डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी के कारण कृषि उत्पादन की लागत के बढ़ने से किसानों की आय और आर्थिक लाभ में कमी से पूरा किसान वर्ग असंतुष्ट है। कर्ज माफ़ी के मुद्दे पर कोई गंभीर पहल नहीं हुई जबकि बड़े औद्योगिक संस्थानों के कर्ज को माफ़ करने में सरकार ने खुले दिल का परिचय दिया है। कृषि निर्भर प्रदेश में किसानों की स्थिति को बदलने के लिए कोई नीतिगत सकारात्मक परिवर्तन हुए नहीं। ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ के तहत डिजिटल पोर्टल के चक्रव्यूह में किसान उलझ कर रह गए। किसानों की समस्याओं को सुनने की बजाय दमनकारी नीति से किसानों से निपटे जाने का मुद्दा भी प्रदेश के चुनावों को गहरे से प्रभवित करने वाला है।
बेहिसाब महंगाई की मार से प्रदेश की जनता त्रस्त है। डीजल पर वैट को 8.9 % बढ़ा कर 17.6% कर दिया गया जिससे आम ज़रूरत के लिए यातायात महंगा हुआ तथा किसानों को भी गहरी चोट महंगाई की पड़ी। गैस के सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी से सामान्य नागरिकों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी दूभर हो रही है। लोग बोलने लगे हैं कि अन्य प्रदेशों में चुनावों में जब सस्ते गैस सिलेंडर देने के वायदे किये जा सकते हैं तो एक नीतिगत फ़ैसला लोगों के हित के लिए प्रदेश में क्यों नहीं किया जा रहा है।
राज्य की प्रशासनिक पद्धति पर भी आम जनता का असंतोष कम नहीं है। कार्यपालिका से लेकर कर्मचारी, पुलिस प्रशासन, पंचायती राज में अधिकारों पर अंकुश, परिवार पहचान पत्र अधिकतर काम पोर्टल से होना, कई ऐसे कारक हैं जिन से कोई लाभ आम जन जीवन स्तर के सुधार में बड़ा योगदान करता हो।
भ्रष्टाचार पर बड़े बड़े दावे करने वाली भाजपा का कार्यकाल घोटालों से भी अछूता नहीं रहा। फरीदाबाद नगर निगम घोटाला, कोरोना काल में शराब घोटाला, रजिस्ट्री घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला, गांव में बनने वाले अमृत सरोवर घोटाला, बार बार प्रतियोगी परीक्षाओं में हुई विसंगतियाँ जिसके चलते अधिकतर परिणामों का क़ानूनी पेंचों में उलझने के भी मामले आते रहे हैं।
पिछड़ा वर्ग, सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को भेदभाव का दंश झेलना पड़ा है। क़रीब 5000 स्कूलों के बंद होने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित होना पड़ा है। क्रीमी लेयर को 8 लाख से घटाकर 6 लाख करना, पेंशन के वायदे को पूरा न करना, परिवार पहचान पत्र की उलझनें भी जनता में नाराजगी के बड़े कारण हैं। महिला पहलवान खिलाड़ियों के साथ प्रदर्शन में किये गए बल प्रयोग व कार्रवाई से वर्तमान भाजपा सरकार के दृष्टिकोण के प्रति पूरे समाज में एक भारी आक्रोश व्याप्त है। उच्च शिक्षा पर नए संस्थान बनाने की कोई पहल नहीं हुई। 58% पद प्रदेश के कॉलेजों में खली पड़े हैं।
मुद्दों की फेहरिस्त काफी विस्तृत है, लेकिन मुख्य रूप से बड़े मुद्दे ही सीधे तौर पर चुनावों को प्रभावित करेंगे। भाजपा किस प्रकार अपनी हार को बचा पाती है या कितनी बड़ी हार ऐसे आक्रोश में भाजपा को मिल सकती है, यह विपक्ष की चुनावी रणनीति पर निर्भर करेगा।