हरियाणा: अब बीजेपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से कैसे पार पाएगी?

08:04 pm Jun 14, 2024 | जगदीप सिंधु

हरियाणा में भाजपा पिछली दो बार से सत्ता में है। तीसरी बार राज्य में सरकार बनाने को लेकर भाजपा को कड़ी परीक्षा से गुजरना तय है।  लोकसभा चुनावों में 10 में से 5 सीटों पर भाजपा को हार मिली है।  इसका प्रभाव राज्य की विधानसभा चुनाव में पड़ना निश्चित है। विपक्षी दल कांग्रेस को मिली सफलता से स्थानीय नेताओं में विश्वास पुख्ता हुआ है और बड़ी सफलता की उम्मीद बंधी है। क्षेत्रीय दल इनेलो, जजपा को जिस तरह से मतदाताओं ने नाकारा है उनका कोई राजनीतिक आधार कहीं बचा हुआ नहीं दिख रहा। हरियाणा में सत्ताधारी भाजपा को मुख्य चुनौती कांग्रेस से ही मिलने वाली है, यह स्पष्ट है। लेकिन कांग्रेस को अपनी चुनौतियाँ भी कम नहीं जिनसे पार पाए बिना विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल करना आसान नहीं होगा। 

संगठन की कमी के कारण कांग्रेस अपनी व्यवस्थाओं को लोकसभा क्षेत्रों में पूरी तरह मज़बूत नहीं कर सकी है, जिसके चलते पार्टी उतनी सफलता हासिल नहीं कर पायी जितना विरोध सत्ताधारी दल का जमीन पर चुनाव से पहले दिखाई दे रहा था। रणनीतिक तौर पर भी चुनाव प्रचार में कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में दर्ज बिंदुओं को आमजन तक सघनता से पहुंचाने में कमजोर ही रही। प्रदेश के बड़े नेताओं में वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा को नियंत्रित करने में प्रदेश अध्यक्ष गंभीरता से हल नहीं कर पाए। कांग्रेस द्वारा नियुक्त प्रदेश प्रभारी भी सभी गुटों में सामंजस्य बनाने में लगभग विफल रहे हैं।

कांग्रेस की आपसी गुटबाजी ने अन्य राज्यों में जिस तरह कांग्रेस की मजबूती को पलीता लगाया है उसके बाद भी कोई सख्त कार्रवाई केन्द्रीय स्तर पर होती दिखाई नहीं दी। हरियाणा में भी ऐसी ही गुटबाजी को अलग ढंग से कुछ स्थानीय नेता बढ़ाने में कोई कोताही अभी भी नहीं बरत रहे हैं। मैं और मेरा के सवाल पर निरंतर कश्मकश बनी हुयी है जिसका सीधा प्रभाव आम मतदाताओं के कांग्रेस के प्रति विश्वास पर पड़ना निश्चित है। 

प्रदेश में कांग्रेस की सफलता के लिए स्थानीय नेताओं के योगदान केवल आपसी प्रतिस्पर्धा और गुटबाजी तक ही सीमित है। सभी सामाजिक वर्गों को अपने पक्ष में एकजुट करने के कोई मजबूत, स्पष्ट संदेश देने में प्रदेश कांग्रेस इकाई की पहल अभी तक जमीन पर नहीं आई। राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा से मिले राजनीतिक संबल के आसरे कांग्रेस के प्रादेशिक नेता अपनी उपलब्धियों को तुलनात्मक रूप से बड़ा मानने के रोग से छुटकारा पाने में नाकाम हैं।

समाज के विभिन्न वर्ग, विशेषकर, ग्रामीण अंचल में सत्ताधारी भाजपा के कार्यकाल की नीतियों से स्पष्ट तौर पर असंतुष्ट हैं। सबसे बड़ा कारण रोजगार का उपलब्ध न होना, पंचायती राज के अधिकारों पर अंकुश लगाना, गरीबों व वंचित वर्गों को घर-प्लॉट नहीं मिलना, फसलों के उत्पादन की लागत खर्च में लगातार बढ़ोतरी, फसल बीमा योजना के समयानुसार लाभ नहीं मिलना, फसलों की पूरी खरीद समर्थन मूल्यों पर न होना, सही दाम न मिल पाना, कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली न करना, महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान के सवाल पर सरकार के रुख और छोटे-माध्यम व्यापारियों पर जीएसटी की मार ने आमजन को बेहतर विकल्प चुनने की दिशा में बढ़ा दिया है। 

सत्ताधारी भाजपा की प्रदेश सरकार से पिछले 10 सालों का हिसाब जनता लेना चाहती है, इसका प्रमाण लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अधिकतर क्षेत्रों में दिखाई दिया है।

वर्तमान में प्रदेश की सरकार अल्पमत में है। भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनावों स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। भाजपा के विरोध के आधार पर चुनाव में 10 सीटों पर सफल हुई स्थानीय पार्टी जजपा के जिस गठबंधन को भाजपा ने 4.5 तक अपनी सरकार चलाने के लिए प्रयोग किया, चुनाव से ऐन पहले चुनाव लाभ-हानि के परिप्रेक्ष्य में उसी गठबंधन से नाता तोड़ लिया। निर्दलीय विधायकों व असंतुष्टों के आसरे सरकार को बनाये रखने की नीति के तहत मुख्यमंत्री तक बदल दिया। लेकिन लोकसभा चुनावों में प्रदेश की दोनों आरक्षित सीट के साथ-साथ प्रदेश की अग्रणी जाति जाट के गढ़ की 3 सीट पर भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। 

अबकी बार चुनावों में एक अंतर स्पष्ट तौर पर दिखाई दिया है जिसमें सामाजिक रूप से कमजोर जाति वर्ग ने भी भाजपा को छोड़ कर कांग्रेस के पक्ष में अपना विश्वास जताया है। नए मुख़्यमंत्री नायब सिंह सैनी के प्रति लोगों में अभी विश्वास पूरा बना नहीं है। उनको प्रदेश की जनता मनोहर लाल खट्टर के विकल्प के तौर पर एक कमजोर और केंद्र आश्रित मुख्यमंत्री ही मान रही है। भाजपा अपनी 10 साल की विभिन्न असफलताओं को ढँकने के लिए शहरी हिन्दू वोट के साथ ग्रामीण समाजिक वर्गों में हिन्दू पहचान को भुनाने में लगी है।

एक धर्मनिरपेक्ष, सुदृढ़ समाजिक भाईचारे की संस्कृति वाले प्रदेश में कांग्रेस सामाजिक समीकरणों में कितना परिवर्तन कर पायेगी, किन वर्गों को फिर से अपने पक्ष में खड़ा कर पायेगी, ये चुनौती कांग्रेस के लिए हरियाणा में इंतजार कर रही है।