हरियाणा क्या पंजाब की राह पर चल पड़ा है?
जब यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि राहुल गांधी ने हरियाणा में चुनाव प्रचार से दूरी क्यों बना ली है, उन्होंने प्रदेश की एक मानवीय त्रासदी को सामने लाकर चुनाव में अलग ढंग से हस्तक्षेप किया है। अवैध तरीकों से अमेरिका में जा बसने वाले नौजवानों से मिलने के बाद राहुल गांधी जब उनके परिवार से मिलने हरियाणा पहुंचे तो कई तरह की बातें होनी लगी थीं। अब जब पूरा ब्योरा सामने आया है तो चुनाव में एक ऐसे नए मुद्दे की जमीन तैयार हो गई जिसे अभी तक सभी ने लगभग नजरंदाज कर दिया था।
हरियाणा में रोजगार न मिलने के कारण नौजवान निराश और हताश हैं, यह विपक्ष की तकरीबन हर सभा और हर पर्चे में कहा जा रहा था। यहां तक कि सरकार को भी इस पर सफाई देनी पड़ रही थी। लेकिन इस समस्या के एक दूसरे विस्तार के रूप में डंकी रूट से युवकों के विदेश भाग जाने का जो सिलसिला हरियाणा में पिछले कुछ साल से चल रहा है इस पर कोई बात नहीं हो रही थी। हालाँकि मीडिया में इसकी रिपोर्ट अक्सर दिखाई देती रही है लेकिन किसी ने इसे चुनावी विमर्श लायक नहीं समझा।
मतदान में लगभग दस दिन का समय बाकी है और इस बीच यह कितना बड़ा मुद्दा बनेगा अभी नहीं कहा जा सकता। पता नहीं बनेगा भी या नहीं।
हरियाणा में इस चलन ने अभी पांच-सात साल में ही जोर पकड़ा है, जबकि पंजाब में तो यह कई दशकों से चल रहा है। वहां कई ऐसे गाँवों का ज़िक्र भी होता है जहाँ अब नौजवान बचे ही नहीं हैं। लेकिन पंजाब में यह कभी राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका। उलटे कई जगह उम्मीदवार गांवों में जाकर यह वादा करते दिखाई देते हैं कि अगर वे जीत गए तो वे नौजवानों के विदेश जाकर बसने को आसान बनाएंगे।
जब हालत यहां तक पहुँच जाए तो ऐसी राजनीति से समाधान की उम्मीद भला कोई कैसे करेगा? हरियाणा के नौजवान बेरोजगारी से तंग आकर विदेश जाने के मामले में ही पंजाब का अनुसरण नहीं कर रहे बल्कि एक और मामले में वे पंजाब के युवकों की राह पर चलते दिखाई दे रहे हैं जो इससे कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है।
पिछले कुछ समय से हरियाणा के शहरों, कस्बों और गांवों से बड़े पैमाने पर ड्रग्स बरामद होने की ख़बरें लगातार आ रही हैं। नशीले पदार्थों की तस्करी का यह सिलसिला लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है। इसका शिकार बनने वाले युवकों की संख्या अब तक लाखों में पहुँच चुकी है।
शुरू में यह कहा गया कि पंजाब की सीमा से लगे आठ जिलों के नौजवानों को इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया लेकिन अब कई और जिलों में इसका असर दिख रहा है। पंजाब और राजस्थान की सीमा पर बसे सिरसा जिले में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बताया जाता है। उसके बाद नंबर आता है गुरुग्राम और फरीदाबाद का।
पंजाब में तो यह एक समय चुनावी मुद्दा भी बन गया था। हालाँकि अभी तक हम यह ठीक से नहीं जानते कि इसके चुनावी मुद्दा बनने के बाद इस समस्या में कोई कमी आई या नहीं। लेकिन हरियाणा के चुनाव में तो कोई इसका ज़िक्र भी नहीं कर रहा।
पंजाब जब तक आर्थिक तरक्की के सबसे ऊपरी पायदान पर था तो वह ऐसी समस्याओं से काफी हद तक बचा रहा। जब तक पंजाब प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में पूरे देश में पहले नंबर पर था तब ऐसी समस्याएँ न तो बहुत बड़ी थीं और न उनकी ओर कोई ध्यान ही देता था। फिर बहुत से कारणों से पंजाब आर्थिक ढलान की ओर बढ़ने लगा। थोड़े ही समय में प्रति व्यक्ति आय के मामले में 18 नंबर पर पहुँच गया और राज्य के हालात में नौजवानों के लिए कोई आश्वासन नहीं बचा तो ऐसी समस्याओं ने घेर लिया।
पंजाब की अर्थव्यवस्था ने बदहाल होना शुरू किया तो उस समय हरियाणा लगातार ऊपर जा रहा था। कई आर्थिक सूचकांकों के मामले में वह पंजाब को पीछे छोड़ चुका है। लेकिन अब जब पंजाब की बीमारियाँ ही उसे घेर रही हैं तो इसका क्या अर्थ लगाया जाए?