राज्यसभा का चुनाव आचार संहिता में क्यों नहीं आता?
चुनाव आयोग ने राज्यसभा की 12 सीटों के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इनमें हरियाणा की एक राज्यसभा सीट भी शामिल है जो कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के इस्तीफे से खाली हुई थी।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों का ऐलान पहले ही हो चुका है। आचार संहिता लागू हो चुकी है और जमीन पर चुनाव की तैयारियां भी चल रही हैं। लेकिन इससे पहले कि मतदान और चुनाव नतीजों के बाद नई विधानसभा का गठन हो, राज्यसभा का चुनाव हो जाएगा। नतीजे भी घोषित हो जाएंगे। राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधि एक ऐसी विधानसभा चुनेगी जिसकी उम्र अब कुछ ही हफ्ते की बची है और उसकी उलटी गिनती भी शुरू हो चुकी है।
किसी भी राज्य में जब चुनावी आचार संहिता लागू हो जाती है तो सरकार के पास फैसले का करने का अधिकार खत्म हो जाता है। राज्य से संबंधित केंद्र सरकार के फैसलों और घोषणाओं पर भी रोक लग जाती है। ऐसे में राज्यसभा का चुनाव करवाना नियम कायदों के हिसाब से भले ही ग़लत न हो लेकिन नैतिक रूप से इसे सही नहीं ठहराया जा सकता।
अभी कुछ ही दिन पहले तक हरियाणा में लोग यह मान कर चल रहे थे कि पहले राज्यसभा का चुनाव होगा और फिर विधानसभा चुनावों की घोषणा होगी। ऐसा होता तो इस पर शायद आपत्ति की कोई गुंजाइश नहीं बचती। लेकिन पहले विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान और फिर उसके पहले ही विधानसभा चुनाव करवा लेने की बात आसानी से हजम होने वाली नहीं है।
वैसे भी हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल अभी पांच नवंबर तक था। राज्यसभा चुनाव के बाद विधानसभा के चुनाव आसानी से करवाए जा सकते थे। लेकिन चुनाव आयोग ने जिस तरह से इसका एकदम उलटा किया वह आसानी से समझ आने वाली बात नहीं है।
सिर्फ भाजपा ही इसके लिए पूरी तरह तैयार थी। राज्यसभा में भेजने के लिए किरण चौधरी का कांग्रेस से दल-बदल भी करवा लिया गया था। जब वे भाजपा में शामिल हुईं उसी समय यह कहा गया था कि उन्हें इसके बदले में राज्यसभा की सीट दी जाएगी।
जब उनके नाम की घोषणा हुई तो उन्होंने तुरंत ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। किरण चौधरी ने विधानसभा चुनाव बंसीलाल परिवार के गढ़ तोषाम से जीता था। हालांकि इस इस्तीफे का कोई खास मतलब नहीं था। विधानसभा का कार्यकाल तो वैसे भी समाप्त होने ही वाला है।
किरण चौधरी भाजपा में अकेली शामिल नहीं हुईं। उनके साथ ही उनकी बेटी श्रुति चौधरी ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है। जब यह दल-बदल हुआ तो श्रुति चौधरी के नाम का ज़िक्र खासतौर पर किया गया।
अब यह कहा जा रहा है कि भाजपा तोषाम से श्रुति को टिकट देगी। राजनीति में कुछ मौके होते हैं। जब परिवारवाद की बात नहीं सोची जाती। अगर सब कुछ पहले से तय रणनीति के हिसाब से ही हुआ तो ऐसे समय में जब हरियाणा का जाट समुदाय भाजपा से खास नाराज चल रहा है, पार्टी के पास दिखाने के लिए हरियाणा के चंद जाट सांसद और विधायक तो हो ही जाएंगे। भले ही वे दल-बदल से उसके पाले में आए हों।