हरियाणा में फिर खिलेगा कमल? मोदी का जादू बरक़रार!
क्या हरियाणा के मतदाता एक बार फिर राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने जा रहे हैं। एबीपी न्यूज़-सी-वोटर का सर्वे तो यही कहता है। सर्वे के मुताबिक़, 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में बीजेपी को 83 सीटें मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस को 3 और अन्य के खाते में 4 सीटें जा सकती हैं। दावा किया गया है कि सर्वे में महाराष्ट्र-हरियाणा के 29 हजार 550 लोगों से बात की गई है और यह 16 सितंबर से 16 अक्टूबर के बीच किया गया है। हरियाणा में 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को चुनाव नतीजे आयेंगे।
सर्वे के अनुमान अगर चुनाव परिणाम में बदलते हैं या इसके आसपास भी रहते हैं तो बहुत ज़्यादा चौंकने वाली बात नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। इनमें रोहतक लोकसभा सीट को छोड़कर सभी सीटों पर लोगों ने उसे झोली भरकर वोट दिये थे। लोकसभा चुनाव की जीत को अगर विधानसभा सीटों पर बढ़त के लिहाज से देखें तो बीजेपी 79 सीटों पर आगे रही थी और इसके बाद उसने राज्य में ‘मिशन 75 प्लस’ का फ़ॉर्मूला दिया था।
लोकसभा चुनाव में मिली बंपर जीत से उत्साहित बीजेपी ने उसके बाद ही विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। बीजेपी हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जीतने के लिए कितनी गंभीर है, इसका पता इस बात से चलता है कि 30 मई को देश के गृह मंत्री की कुर्सी संभालने के चंद दिनों बाद अमित शाह ने तीनों राज्यों के पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई थी और चुनावी तैयारियों में जुटने के निर्देश दिये थे।
एबीपी न्यूज़-सी-वोटर के सर्वे के मुताबिक़, बीजेपी को 48%, कांग्रेस को 21% और अन्य को 31% वोट मिल सकते हैं। बीजेपी को 48% वोट मिलने का अनुमान निश्चित रूप से बड़ी बात है क्योंकि पांच साल पहले हरियाणा में आम आदमी क्या बीजेपी के नेता भी यह कल्पना नहीं करते थे कि उनकी पार्टी कभी राज्य में सरकार बना पायेगी। क्योंकि कई सालों तक बीजेपी हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी की सहयोगी पार्टी हुआ करती थी। 2005 के विधानसभा चुनाव में उसे 2 सीटें और 2009 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ़ 4 सीटें मिली थीं।
4 से सीधे 47 सीटों पर पहुंची बीजेपी
2014 के लोकसभा चुनाव में चली प्रचंड मोदी लहर का फ़ायदा बीजेपी को उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी मिला और वह 2009 के 4 सीटों के आंकड़े से सीधे 47 सीटों के आंकड़े पर पहुंच गई। इसी तरह उसका वोट बैंक भी हैरतअंगेज ढंग से बढ़ा। 2009 के विधानसभा चुनाव में उसे 9.1% वोट हासिल हुए थे जबकि 2014 में उसका वोट बैंक तिगुने से ज़्यादा हो गया था और उसे 33.2% वोट हासिल हुए। वोट शेयर बढ़ने का यह सिलसिला रुका नहीं और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर पिछले विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले 24% तक बढ़ गया और उसे 58% वोट मिले।
नाकामियों के बावजूद खट्टर लोकप्रिय
बीजेपी जब 2014 में चुनाव जीती तो किसी को पता नहीं था कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा क्योंकि पार्टी नेताओं ने ख़ुद नहीं सोचा था कि सरकार बनाने लायक सीटें आएंगी, इसलिए मुख्यमंत्री का चेहरा तय करना बहुत दूर की बात थी। लेकिन जब स्पष्ट बहुमत मिल गया था तो नेता की तलाश शुरू हुई और कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद पर पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले मनोहर लाल खट्टर को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया।
लेकिन खट्टर के पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था और यह बात उनके पांच साल के कार्यकाल में कई बार साबित हुई। 2014 में संत रामपाल की गिरफ़्तारी के दौरान हुई हिंसा हो या 2016 में जाट आरक्षण के दौरान हुई भीषण आगजनी और लूटपाट, दोनों ही मामलों मे दंगाइयों से निपटने में खट्टर सरकार पूरी तरह विफल रही। इसके बाद 2017 में डेरा सच्चा सौदा के भक्तों ने भी बड़े पैमाने पर हिंसा की और राज्य सरकार पर सवाल उठे।
जींद में छात्रा से बलात्कार या फिर फरीदाबाद में कांग्रेस प्रवक्ता विकास चौधरी की दिन-दहाड़े गोलियां बरसाकर हत्या करने का मामला हो, खट्टर सरकार क़ानून-व्यवस्था के मोर्चे पर लगातार निशाने पर रही।
लेकिन बावजूद इसके एबीपी न्यूज़-सी-वोटर का सर्वे कहता है कि राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ज़्यादा पसंदीदा चेहरा खट्टर ही हैं। खट्टर को राज्य के 40% लोग मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं जबकि 10 साल मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सिर्फ़ 20% लोग। तीसरे नंबर पर चौटाला परिवार में बग़ावत के बाद बनी जननायक जनता पार्टी के मुखिया और एकदम युवा नेता दुष्यंत चौटाला हैं और उन्हें 14% लोग मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं। क़ानून व्यवस्था के मोर्चे पर लगातार फ़ेल होने के बावजूद खट्टर की लोकप्रियता बढ़ना राजनीतिक विश्लेषकों को हैरत में डालता है।
सर्वे के कुछ आंकड़े पूरी तरह सरकार और मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ हैं लेकिन फिर भी बीजेपी को बड़ी जीत मिलने का अनुमान जताया गया है। जैसे, यह कहा गया है कि राज्य में 58% लोग सरकार को, 53% लोग मुख्यमंत्री को और 64% लोग वर्तमान विधायकों को बदलना चाहते हैं।
इनेलो लगभग ख़त्म, दुष्यंत बने नेता
2014 के विधानसभा चुनाव में इनेलो दूसरे नंबर पर रही थी और उसे 19 सीटें मिली थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ओमप्रकाश चौटाला ने अपने बेटे अजय चौटाला और उनके दो बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर कर दिया था। दुष्यंत और दिग्विजय का अपने चाचा अभय सिंह चौटाला से सियासी टकराव बढ़ गया था। दुष्यंत और दिग्विजय ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बना ली।
जेजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर ताल ठोकी। इस चुनाव में जेजेपी ने अपने दम पर 4.9% वोट हासिल किये जबकि इनेलो को कुल 1.9% वोट मिले। इनेलो परिवार में हुई इस टूट का जबरदस्त फायदा बीजेपी को मिला। लेकिन जींद के उपचुनाव में इनेलो और कांग्रेस की जहां बुरी गत हुई थी, वहीं जेजेपी ने पहले ही चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था और वह दूसरे नंबर पर रही थी। विधानसभा चुनाव से पहले ही इनेलो के अधिकांश विधायकों ने उसका साथ छोड़ दिया था।
सर्वे में जो अन्य को 4 सीटें मिलती बताई गई हैं, उनमें जेजेपी, इनेलो के अलावा बहुजन समाज पार्टी, हरियाणा में ग़ैर जाट वोटों के दम पर मुख्यमंत्री बनने का सपना पाले बैठे बीजेपी के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, आम आदमी पार्टी के बीच जंग होगी।
हुड्डा का सियासी करियर ख़त्म!
सर्वे के आंकड़े कहते हैं कि हरियाणा की राजनीति के दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जादू अब ख़त्म हो चुका है। हुड्डा लोकसभा चुनाव में अपने गढ़ सोनीपत से तो हारे ही, उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी अपनी रोहतक सीट गंवा बैठे। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस आलाकमान ने उनकी मंशा मानते हुए अशोक तंवर की विदाई कर दी और टिकट बंटवारे में उन्हें फ़्री हैंड दिया। अगर अब भी पार्टी 3-4 सीटों पर सिमटी तो निश्चित रूप से यह हुड्डा के सियासी करियर का समापन माना जायेगा।
मोदी का करिश्मा, 370 का सियासी फायदा
एबीपी न्यूज़-सी-वोटर के सर्वे के मुताबिक़, राज्य में 72% लोग नरेंद्र मोदी को जबकि सिर्फ़ 8% लोग कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को। यह आंकड़ा बताता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के दम पर मिली सफलता के पांच साल बाद भी राज्य के लोगों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हुई है बल्कि बढ़ी ही है जबकि राहुल गाँधी की सियासी हालत खस्ता है।
इसके अलावा बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने को देश की एकता, अखंडता के लिए बेहद ज़रूरी क़दम के रूप में जनता के सामने रखा है जबकि कांग्रेस के नेताओं का इस मुद्दे पर स्टैंड अलग-अलग रहा है। मोदी और अमित शाह ने अपनी लगभग हर रैली में इस मुद्दे का जिक्र कर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए उसे पाकिस्तान का मित्र बताने की कोशिश की है और बीजेपी को इसका सियासी लाभ मिलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में सर्वे के आंकड़े अगर हक़ीक़त में बदलते हैं तो बहुत ज़्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए।