हरियाणा में सीएम खट्टर के सामने हुड्डा का अनुभव दाँव पर
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के साथ ही हरियाणा में भी चुनाव की तारीख़ों की घोषणा कर दी है। दोनों राज्यों में 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को नतीजे आएँगे। 2014 में महाराष्ट्र और हरियाणा के लिए विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा 12 सितंबर को हुई थी जबकि मतदान 15 अक्टूबर को हुआ था और चुनाव नतीजे 19 अक्टूबर को घोषित हुए थे। आइए, जानते हैं कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की क्या तैयारी है।
बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत मिली थी और उसकी इस जीत पर राजनीतिक विश्लेषकों और हरियाणा के लोगों को ख़ासी हैरानी हुई थी क्योंकि तब उसे 47 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2009 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ़ 4 सीटें मिली थीं। तब यह माना गया था कि यह मोदी लहर का ही असर है क्योंकि 2014 में मोदी लहर के चलते बीजेपी को अपने दम पर लोकसभा की 282 सीटें मिली थीं और उसके छह माह के भीतर ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे। कुछ ऐसे ही हालात इस बार भी दिखते हैं।
हरियाणा में बीजेपी को 2014 के विधानसभा चुनावों में 33 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 25 प्रतिशत और इनेलो को 21 फीसदी वोट मिले थे।
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी प्रदेश की 90 में से 79 सीटों पर आगे रही थी और इसीलिए उसने इस बार ‘मिशन 75 प्लस’ का नारा दिया है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जोरदार सफलता को देखा जाए तो उसके लिए इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल नहीं लग रहा है।
हरियाणा में चुनाव प्रचार को तेज़ करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहतक में रैली कर चुके हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से पूरे हरियाणा का दौरा कर चुके हैं।
मोदी ने रैली में चुनावी बिगुल फूंकते हुए कहा था कि आज हरियाणा का हर परिवार मनोहर बन गया है और रैली में आई भीड़ से हवा का रुख पता चल रहा है। मोदी ने कहा था कि केंद्र व राज्य सरकार के डबल इंजन का पूरा फ़ायदा हरियाणा को मिला है।
लोकसभा चुनाव 2019 में हरियाणा में बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती थीं और रोहतक सीट को छोड़कर बाक़ी सीटों पर उसे बहुत बड़े अंतर से जीत मिली थी। मुख्यमंत्री को लेकर भी उसका चेहरा स्पष्ट है और वह वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रही है। जबकि कांग्रेस हार के बाद भी सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है और पार्टी नेताओं में आपसी गुटबाज़ी थमने का नाम नहीं ले रही है।
बीजेपी को विधानसभा चुनाव 2014 में 47, कांग्रेस को 15 और इनेलो को 19 सीटें मिली थीं।
गुटबाज़ी की शिकार है कांग्रेस
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, कांग्रेस राज्य में पांच गुटों में बंटी हुई है। इनमें हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, विधानसभा में विपक्ष की नेता रहीं किरण चौधरी और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला का गुट है। जींद विधानसभा उपचुनाव में जब सुरजेवाला हारे थे तो तब भी यह माना गया था कि गुटबाज़ी के कारण ही उनकी हार हुई है।
हुड्डा कांग्रेस हाईकमान के ख़िलाफ़ लंबे समय से बग़ावती तेवर अख़्तियार किये हुए थे और हाल ही में उन्होंने रोहतक में परिवर्तन रैली कर ताक़त दिखाई थी। हुड्डा की मांग को मानते हुए कांग्रेस आलाकमान ने अशोक तंवर को कुर्सी से हटा दिया था।
हुड्डा-शैलजा की जोड़ी दिलायेगी जीत
हाल ही में कांग्रेस आलाकमान ने बड़ा फेरबदल करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था जबकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाया गया है। शैलजा पार्टी का दलित चेहरा हैं। हरियाणा में क़रीब 19 फीसदी दलित मतदाता हैं जबकि लगभग 25 फ़ीसदी जाट मतदाता हैं। सवाल यह है कि क्या हुड्डा-शैलजा की जोड़ी पार्टी को जीत दिला पायेगी। हुड्डा को हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस ख़ेमे में सबसे ज़्यादा ताक़तवर माना जाता है। हुड्डा 10 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और पार्टी की रैलियों में भीड़ जुटाने वाले नेता हैं।
इनेलो टूटी, जेजेपी बनी
कांग्रेस के अलावा हरियाणा की बड़ी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) अपने घर के झगड़ों से ही परेशान है। कुछ समय पहले इनेलो के सुप्रीमो और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने अपने बड़े बेटे अजय चौटाला को पार्टी से निकाल दिया था। जिसके बाद अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला ने अपनी नई पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया था। अब इनेलो और जेजेपी दोनों ही चुनाव में अलग-अलग खम ठोकने के लिए तैयार हैं।
हरियाणा में ग़ैर जाट मतों के ध्रुवीकरण में जुटे बीजेपी के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की कोशिश है कि वह किसी तरह एक बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बन जाएँ। सैनी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बना चुके हैं और सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं।
बहुजन समाज पार्टी हरियाणा में पाँच से छह फ़ीसदी वोट हासिल करती रही है। लेकिन वह इनेलो, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और जेजेपी से बारी-बारी से गठबंधन कर तोड़ चुकी है।
एक और राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी है जिसकी भरपूर कोशिश है कि वह भले ही हरियाणा में अपनी सरकार न बना सके लेकिन कम से कम मजबूत उपस्थिति तो दर्ज कराए। लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को हरियाणा में बुरी तरह हार मिली थी।
हरियाणा ऐसा राज्य है जहाँ से बड़ी संख्या में जवान सेना में हैं और सीमा पर देश की रक्षा में तैनात हैं। बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के मुद्दे को जिस तरह राष्ट्रवाद से जोड़ा है, उससे लगता है कि वह इस मुद्दे का सियासी लाभ उठाने की कोशिश में है। क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले जब केंद्र सरकार ने पुलवामा हमले के जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में हमला किया था, तब भी बीजेपी ने इसे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद से जोड़कर हरियाणा और देश भर में वोट बटोरे थे। हरियाणा की तो सभी 10 लोकसभा सीटों पर उसे जीत मिली थी। ऐसे हालात में बीजेपी के लिए हरियाणा फतेह करना मुश्किल नहीं माना जा रहा है। लेकिन अगर कांग्रेस एकजुट होकर लड़ी और बाक़ी विपक्षी दल भी मजबूती से लड़े तो राज्य से बीजेपी सरकार की विदाई हो सकती है।