रावत बाग़ी हुए तो कांग्रेस को चुनाव में कितना नुक़सान होगा?
कांग्रेस हाईकमान के भरोसेमंद नेता हरीश रावत ने अपनी नाराज़गी का खुलकर इजहार कर चुनाव से पहले बड़ा दांव चल दिया है। उत्तराखंड की सियासत के जानकारों के मुताबिक़, रावत विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में फ्री हैंड चाहते हैं। लेकिन प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस का दूसरा धड़ा इसमें मुसीबत बन रहे हैं। रावत के करीबी नेताओं ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के ख़िलाफ़ भड़ास भी निकाली है। हालांकि रावत ने कहा है कि उनका ट्वीट रोज किए जाने वाले ट्वीट जैसा ही है।
समर्थकों ने दिखाए तेवर
उत्तराखंड से आ रही ख़बरों के मुताबिक़, रावत के कट्टर समर्थक अपने नेता के साथ खड़े हैं। उनका साफ कहना है कि जिस ओर रावत जाएंगे, वे भी उसी ओर जाएंगे।
ऐसा नहीं है कि रावत ने ये ट्वीट अचानक कर दिए हैं। पिछले एक साल से उनके समर्थक हाईकमान पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि उनके नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए। लेकिन हाईकमान ने इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं लिया।
लेकिन बात जब टिकट बंटवारे की आई और इसमें भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के धड़े का दख़ल बढ़ा तो रावत की त्यौरियां चढ़ गयीं।
हरीश रावत चूंकि 45 साल से कांग्रेस में हैं। वह पांच बार सांसद रहने के साथ ही मुख्यमंत्री और लंबे वक़्त तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इस नाते उनके पास प्रदेश में कार्यकर्ताओं की एक लंबी फ़ौज़ है। उनका परिवार भी सियासत में सक्रिय है।
रावत के बग़ावती ट्वीट आते ही उनके समर्थक विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल, हरीश धामी, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा सहित राज्य कांग्रेस में बड़े पदों पर रहे कई नेता मैदान में कूद पड़े। उन्होंने साफ कहा कि वे हरीश रावत के साथ रहेंगे।
यह बात सही है कि रावत की अगुवाई में कांग्रेस उत्तराखंड में पिछला विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी थी। लेकिन उसकी एक वजह सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा, यशपाल आर्य जैसे नेताओं का बीजेपी में जाना भी था।
प्रीतम सिंह की चुनौती
लेकिन 2017 की हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, जो साढ़े चार साल तक इस कुर्सी पर रहे। इस दौरान प्रीतम सिंह की एक टीम राज्य में खड़ी हो गई और इसमें अधिकतर वे नेता हैं, जो चाहते हैं कि अब रावत को नहीं प्रीतम सिंह को राज्य में कांग्रेस का चेहरा होना चाहिए।
अंतिम मौक़ा?
कई बार लोकसभा चुनाव हार चुके रावत जब 2019 में भी चुनाव हारे तो लोगों को लगा कि यह बूढ़ा शेर अब सियासत नहीं कर पाएगा। लेकिन रावत ने पहाड़ से मैदान तक को नापना जारी रखा और चूंकि उनकी उम्र सियासत में रिटायरमेंट वाली हो गई है, इसलिए ख़ुद रावत और उनके समर्थकों ने यह अंतिम मौक़ा देख पूरा जोर लगा दिया।
लेकिन उनकी उम्मीदों का झटका दे रहे थे प्रदेश प्रभारी जो बार-बार कह रहे थे कि कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व के रूप में ही चुनाव लड़ेगी।
उत्तराखंड में पिछले चार चुनावों में कांग्रेस के टिकट वितरण में अपना बड़ा दख़ल रखने वाले रावत को शायद यह पसंद नहीं आया कि इस बार उनके समर्थकों को कम टिकट मिलें और यही कारण है कि उन्होंने नाराज़गी का खुलकर इजहार कर दिया।
रावत की उत्तराखंड के दोनों यानी कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में अच्छी पकड़ मानी जाती है। अगर वे बाग़ी हो ही गए तो निश्चित रूप से बड़ी संख्या में उनके समर्थक उनके साथ चले जाएंगे। इससे कुमाऊं मंडल में कांग्रेस की कमर टूट सकती है।
लेकिन अगर हाईकमान उन्हें मनाने में राजी रहा तो फिर इन संभावनाओं पर पानी फिर जाएगा।