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यूपी: बेटे की मौत के मामले में महीने भर बाद भी FIR नहीं लिखा सके बीजेपी विधायक

यूपी: बेटे की मौत के मामले में महीने भर बाद भी FIR नहीं लिखा सके बीजेपी विधायक

उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी के विधायकों की दारूण दशा कोरोना महामारी के इस दौर में रिस-रिस कर लोगों के सामने आ रही है।

उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी के विधायकों की दारूण दशा कोरोना महामारी के इस दौर में रिस-रिस कर लोगों के सामने आ रही है। हालात इतने ख़राब हैं कि हरदोई की संडीला विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक राजकुमार अग्रवाल के बेटे की एक महीना पहले कोरोना से मौत हुई थी लेकिन अब तक वह इस मामले में एफ़आईआर तक दर्ज नहीं करा सके हैं। 

बीजेपी के विधायक के साथ ये हो रहा है तो महामारी के प्रचंड वेग के दौरान जनता की क्या दुर्दशा इस उत्तर प्रदेश में हुई होगी, उसका अंदाजा लगाने के लिए आपको ज़्यादा माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। 

विधायक राजकुमार अग्रवाल के पुत्र आशीष अग्रवाल की उम्र 30 साल थी। आशीष स्थानीय अथर्व अस्पताल में भर्ती थे, जहां बताया जाता है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। परिवार के लोग ऑक्सीजन का भरा हुआ सिलेंडर लेकर अस्पताल के बाहर बैठे रहे थे लेकिन काफी देर तक निवेदन करने के बाद भी अस्पताल वालों ने ऑक्सीजन नहीं ली और आशीष की मौत हो गई। यह घटना 25 अप्रैल की है। आशीष अग्रवाल ख़ुद भी बीजेपी के नेता थे और सरकारी संस्था पैक्स पैड के निदेशक थे। 

देखिए, यूपी के राजनीतिक हालात पर चर्चा- 

अस्पताल पर लापरवाही का आरोप

विधायक अग्रवाल ने अथर्व अस्पताल के प्रबंधन को अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार ठहराया था और स्थानीय काकोरी थाने में तहरीर भी दी थी। तहरीर में बेटे के इलाज में लापरवाही करने और षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया था। 

तब से अब तक एक महीना पूरा हो चुका है और बीजेपी विधायक राजकुमार अग्रवाल अस्पताल प्रबंधन के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा चुके हैं लेकिन कार्रवाई तो छोड़िए एफ़आईआर तक दर्ज नहीं हो पाई है। विधायक इस बारे में मुख्यमंत्री, चिकित्सा मंत्री, डीएम लखनऊ से भी कई बार गुहार लगा चुके हैं। लेकिन नतीजा सिफ़र है। 

आम आदमी का क्या होगा?

अग्रवाल की हालत को समझा जा सकता है क्योंकि कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर में बीजेपी के कई सांसदों, विधायकों, केंद्रीय मंत्रियों तक ने शिकायत की कि प्रदेश में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है और वे पूरी तरह बेबस हैं। इस वजह से योगी सरकार के कामकाज पर सवाल तो उठे ही, पार्टी नेताओं की शिकायत को बीजेपी में उनके ख़िलाफ़ बढ़ती नाराज़गी के रूप में लिया गया। 

अब समझिए कि एकदम जवान लड़के के दुनिया छोड़कर जाने का दुख और सत्तारूढ़ दल का विधायक होने के बाद भी बेटे की मौत के आरोपियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर तक दर्ज न कराने से अग्रवाल पर क्या बीत रही होगी। लेकिन उत्तर प्रदेश में ‘सब चंगा सी’ वाला मामला है, इसलिए बाक़ी लोगों को समझ जाना चाहिए कि उनकी क्या हैसियत है और यहां उनकी कितनी सुनवाई होगी। 

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