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आखिर ये युद्ध किसके नाम पर है?

आखिर ये युद्ध किसके नाम पर है?

युद्ध में लोग हमेशा कमजोर के साथ खड़े होते हैं या उससे हमदर्दी जताते हैं। लेकिन हमास-इजराइल युद्ध में कोई इजराइल के साथ है तो कोई हमास के साथ है। शांति की बात करने वाले, मानवता के साथ खड़े होने वाले कम हैं। राकेश अचल के विचार भी हमास-इजराइल युद्ध पर जानिए लेकिन इसे भी याद रखिए कि फिलिस्तीन में पिछले कई दशक से निर्दोष लोगों का जिस तरह कत्ल-ए-आम, उनकी जमीनों पर कब्जे किए गए हैं, वो ऐसे अपराध हैं, जिन पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। 

दुनिया शांति के लिए जितनी एकजुटता दिखाती है युद्ध उसे उतना ही पीछे धकेल देता है। दुनिया के किसी न किसी कौन में युद्ध चलता ही रहता है। आज की दुनिया खतरनाक रूप से असंवेदनशील होती जा रही ह।  युद्ध दो पक्ष लड़ते हैं और फिर पूरी दुनिया इन दो पक्षों के साथ अपनी-अपनी सुविधा और स्वार्थों के हिसाब से खड़ी हो जाती ह।  युद्ध रोकने के लिए कोई काम नहीं करना चाहता। इस साल में रूस और यूक्रेन के बाद इजराइल और फिलिस्तीन के बीच ये दूसरा निर्मम युद्ध है। युद्ध की भेंट निर्दोष लोग चढ़ रहे हैं। लेकिन कोई नहीं बता सकता की ये युद्ध किसके नाम पर लड़े जा रहे हैं।

इस बार जंग का आगाज हमास ने बड़े ही अप्रत्याशित तरीके से किया। हमास द्वारा इजरायल पर अचानक किए गए हमले में 800 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। इनमें 40 विदेशी भी मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं। मारे गए लोगों में ज्यादातर इजराइली थे। लापता विदेशियों में से कई दक्षिणी इजराइली रेगिस्तान में संगीत समारोह में मौजूद थे जहां बड़ी संख्या में लोगों की हत्या कर दी गई।इजराइल और फिलिस्तीन का आसामन काले धुएं और जमीन विध्वंश की घ्रणित तस्वीर में बदल चुकी है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जो इस जंग को शांति में तब्दील करने के लिए अणि प्रभावी भूमिका निभा सके। इस जंग में कोई हमास के साथ है तो कोई इजराइल के साथ। मानवता के साथ कोई खड़ा नहीं है।

इजराइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद कोई आज का नहीं है लेकिन जिस मुहाने पर आज ये दोनों पक्ष पहुँच चुके हैं वो बेहद खतरनाक है। इस खतरे को समाप्त करने की तो छोड़िये , इसे कम करने की कोशिशें भी नाकाफी नजर आ रहीं हैं। युद्ध की विभीषका का आकलन और अनुमान आप घर बैठे नहीं लगा सकते ।  टीवी चैनल्स भी इस युद्ध की विभीषका का शतांश ही आप तक पहुंचा पाते हैं वो भी जान हथेली पर रखकर। लेकिन दुनिया जितना कुछ देख -सुन पा रही है वो भी कम हृदयविदारक नहीं है। युद्ध में आप मानवता को सिसकता,बिलखता देख सकते है।  आप देख सकते हैं की मनुष्य ने युद्ध के लिए कितने खौफनाक तरीके ईजाद कर लिए हैं और उनका बेरहमी से इस्तेमाल किया जा रहा है।

इजराइल और फिलस्तीन के बीच विवाद कोई नया नहीं है. दरअसल, इजराइल के पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम  हिस्से में दो अलग-अलग क्षेत्र मौजूद हैं. पूर्वी हिस्से में वेस्ट बैंक और दक्षिण-पश्चिम हिस्से में एक पट्टी है, जिसे गाजा पट्टी के तौर पर जाना जाता है। वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी को ही फिलस्तीन माना जाता है. हालांकि, वेस्ट बैंक में फिलस्तीन नेशनल अथॉरिटी सरकार चलाती है और गाजा पट्टी पर हमास का कब्जा है। जमीन के एक टुकड़े के लिए दोनों पक्ष एक -दुसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं। दोनों एक -दुसरेको नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं ,और कर रहे है।  इन दोनों के स्मार्टक देश जनग को समाप्त करने के बजाय आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।

दुनिया में इस समय एक -दो नहीं बल्कि तीन -चार युद्ध हो रहे हैं ,लेकिन किसी के पास इतनी ताकत नहीं जो इन जंगों को रोक सके ।  रूस और यूक्रेन की जंग के अलावा अजरबेजान और आर्मीनिया आपस में भिड़े हुए है। इजराइल और हमास की जंग सबसे ज्यादा भयावह और विद्रूप ह।  इस जंग के चलते पूरा फिलस्तीन बेचिराग होने को है। लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है।जो हैं वे सब मौत के मुहाने पर  खड़े हैं। लेकिन इन त्मा युद्धों का नतीजा ठन-ठन गोपाल है। विश्व गुरु भारत की भूमिका इन तमाम युद्दों में तमाशबीनों से ज्यादा नहीं है और इसका कारण है भारत का अपनी पारम्परिक विदेश नीति से हट जाना।

भारत इस समय अपनी आंतरिक समस्याओं में उलझा हुआ है। रूस और यूक्रेन की जंग के दौरान भारत ने अपने नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने का पुरषार्थ अवश्य दिखाया था ,जिसके लिए भारतीय नेताओं ने निकाले गए लोगों से अपनी आरती भी लगे हाथ उतरवा ली थी ।  आर्मीनिया   और अजरबैजान के जंग में भारत की कोई रूचि नहीं है ।  हमास और इजराइल की जंग में भारत घोषित रूप से इजराइल के साथ खड़ा है ,हालाँकि भारत के रिश्ते अतीत में इजराइल से आज की तरह प्रगाढ़ नहीं थे । भारत की मजबूत दोस्ती फिलस्तीन के साथ थी। भारत आखिर हमास के आतंकी पहल का समर्थन कर भी कैसे सकता है ? उसके तमाम मित्र देश भी तो फिलस्तीन के साथ नहीं हैं।दोस्त अब दोस्त नहीं दुश्मन बन चुके हैं। भारत के पड़ौस में रहने वाले-छोटे-छोटे देश तक भारत के समर्थक नहीं।

आज का भारत कल के भारत से सर्वथा भिन्न भारत है ।  आज के भारत में कल के  तमाम मित्र भारत के शत्रु बन चुके हैं या शत्रुभाव रखते हैं  ।  यहां तक कि मालदीव भी अब हमारा दोस्त नहीं रहा। भारत के तमाम मित्र या तो चीन के साथ हैं या अमरीका के साथ। भारत किसी अनजान ऊंचे पहाड़ पर अपनी गुरुता के साथ खड़ा है। भारत को अपनी विदेशनीति की परवाह है और न विदेशों से संबंधों क।  अभी भारत की परवाह अपनी कुर्सी बचाये रखने की है। भारत ने अपने कानों में रुई ठूंस ली है ।  आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लिया है। ' मूँदहु आँख,कतहु कछु नाँहीं ' की तर्ज पर।

हमारे  यहां कहावत है कि -' जिसका मरता है ,वो ही रोता है ' आज हम इसी कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। हमारे कल के मित्र फिलिस्तीन के लोग मर रहे हैं ,हमारे आज के मित्र इजराइल के लोग मर रहे हैं ,लेकिन हमारे पास ऐसा कोई फार्मूला नहीं है कि जो हम अपने कल  के और आज के मित्र देशों की जनता को जंग की बारूद में जलने से बचाने के लिए इस्तेमाल कर सकें। बहरहाल  हमें जंग की बलि चढ़ती  जा रही दुनिया से एकदम बेखबर नहीं रहना चाहिए। हमारे यहां चुनाव बेशक हैं लेकिन हमें ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए की जिससे हमारे मित्रों की संख्या कम हो और शत्रुओं की बढ़े। शत्रुओं की बढ़ती संख्या से नुक्सान ही होता है। हम आतंकवाद का समर्थन नहीं कर सकते। हम गांधीवादी लोग है।

हमारा गांधीवाद हमेशा जंग के खिलाफ खड़ा होना सिखाता है। जंग और बारूद हमेशा से मानवता के खिलाफ मानी जाती है। अगर कहीं कोई ईश्वर है तो उसे इजराइल और हमास के बीएच की जंग को फौरन स्थगित कराना चाहिए। मनुष्यों के बूते की ये बात नहीं है ,क्योंकि मनुष्य तो इस समय बौराया हुआ है।

(राकेश अचल के फेसबुक वॉल से)

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