केंद्रीय कमेटी बनी नहीं तो हज की तैयारियाँ शुरू कैसे हुईं?
हज यात्रा इस साल जून-जुलाई में प्रस्तावित है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय हज 2021 की तैयारियों में जुटा है। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने सोमवार को मुबंई स्थित केंद्रीय हज समिति के मुख्यालय में हज की तैयारियों का जायज़ा लिया। लेकिन केंद्रीय हज कमेटी का गठन किए बग़ैर ही हज की तैयारियां शुरू करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
निशाने पर नक़वी
हज कमेटी के पूर्व सदस्य और हज कार्यकर्ता हाफिज़ नौशाद आज़मी ने मुख़्तार अब्बास नक़वी को चिट्ठी लिख कर उन पर हज क़ानून 2002 का उल्लघंन करके कमेटी को पूरी तरह निष्क्रिय करने का आरोप लगाया है। चिट्ठी में कहा गया है कि सारे क़ायदे-क़ानूनों को ताक़ पर रख कर मंत्री अपनी मर्ज़ी से हज से जुड़े फ़ैसले कर रहे हैं।
यह भी आरोप है कि पिछले छह महीनों से हज कमेटी के गठन का मामला लटका पड़ा है। हज की तैयारियां शुरू करने से पहले हज कमेटी का गठन किया जाना चाहिए था। लेकिन अब जबकि हज के फॉर्म भरने की आख़िरी तारीख़ आ पहुंची है तब भी हज कमेटी के गठन को लेकर कोई पहल नहीं की गई है।
संयुक्त सचिवों को भी भेजी चिट्ठी
मुख़्तार अब्बास नक़वी को लिखी गई इस चिट्ठी की कॉपी हज कमेटी ऑफ इंडिया के सीईओ के साथ ही हज मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिवों को भी भेज दी गई है। चिट्ठी में आरोप लगाए गए हैं कि नक़वी ने पहले भी हज कमेटी के गठन में शिया-सुन्नियों के बीच भेदभाव वाला रवैया अपनाया था।
चिट्ठी में दावा किया गया है कि हज क़ानून 2002 के मुताबिक़ हज कमेटी में इसलामी जानकारों की श्रेणी में 2 सुन्नी उलेमा और एक शिया उलेमा को नामित करने का प्रावधान है। पिछली हज कमेटी में शिया उलेमा को तो नामित किया गया लेकिन सुन्नी उलेमा को नामित नहीं किया गया।
बग़ैर कमेटी के जारी है हज प्रक्रिया
बता दें कि पिछले साल नवंबर में हज 2021 के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब फॉर्म भरने की आख़िरी तारीख़ 10 दिसंबर रखी गई थी। बाद में इसे 10 जनवरी तक बढ़ा दिया गया। इस संबंध में 11 दिसंबर को नक़वी के कार्यालय की तरफ़ से जारी बयान में बताया गया था कि हज यात्रियों के लिए उनके रवानगी केन्द्रों के अनुसार अनुमानित खर्च भी बता दिया गया है।
बयान में यह भी कहा गया था कि हज जून-जुलाई 2021 में होना प्रस्तावित है। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सऊदी अरब और भारत सरकार की तरफ़ से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार पूरी प्रक्रिया चल रही है।
कैसे गठित होती है हज कमेटी
केंद्रीय हज कमेटी में 23 सदस्य होते हैं। इसके तीन सदस्य संसद से आते हैं। लोकसभा से दो सदस्यों को लोकसभा अध्यक्ष मनोनीत करते हैं जबकि राज्यसभा से एक सदस्य को राज्यसभा के सभापति यानि उपराष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। देश के छह ज़ोन से नौ सदस्य चुनाव के ज़रिए चुनकर कमेटी में आते हैं। चार सदस्य पदेन होते हैं। ये गृह, विदेश, वित्त और विमानन मंत्रालय के संयुक्त सचिव होते हैं।
तीन अलग-अलग श्रेणियों में सात सदस्यों को केंद्र सरकार मनोनीत करती है। इनमें दो सदस्य प्रशासनिक और वित्तीय मामलों की जानकारी रखने वाले होते है। इनमें एक शिया होना ज़रूरी है। दो महिला सदस्यों में से एक शिया होना ज़रूरी होता है। तीन धार्मिक मामलों के जानकार यानी उलेमा होते है। इनमें से एक शिया होना ज़रूरी होता है। हज कमेटी का कार्यकाल तीन साल का होता है।
क्या है कमेटी की मौजूदा स्थिति?
आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद सिर्फ़ एक बार 24 जून 2016 को हज कमेटी का गठन किया गया। लोक जनशक्ति पार्टी के लोकसभा सदस्य महबूब अली क़ैसर इसके चेयरमैन चुने गए। कमेटी का कार्यकाल 24 मई, 2019 को पूरा हो गया। उसके अगले ही दिन हज कमेटी के वाइस चेयरमैन रहे शेख जिना नबी को कमेटी का कार्यवाहक चेयरमैन बनाया गया। बता दें कि नबी हज कमेटी के इतिहास में एकमात्र कार्यवाहक चेयरमैन हैं।
हज कानून 2002 के तहत विशेष परिस्थितियो में सिर्फ दो बार ही कमेटी का कार्यकाल छह महीनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। लिहाज़ा 24 जून, 2020 को नबी का कर्यकाल ख़त्म हो गया। उसके बाद से हज कमेटी निष्क्रिय पड़ी है।
क्यों नहीं हो रहा गठन?
नई केंद्रीय हज कमेटी के गठन के बारे में न तो मुख़्तार अब्बास नक़वी कुछ बताने को तैयार हैं और न ही उनके मंत्रालय के अफ़सर इस बारे में मुंह खोल रहे हैं। नक़वी और हज से जुड़े विभिन्न मंत्रालयों के संयुक्त सचिवों को लिखी चिट्ठी में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र समेत ज़्यादातर राज्यों में हज कमेटी है ही नहीं। गुजरात और दिल्ली में भी राज्य हज कमेटियों का गठन नहीं किया गया है। जबकि केरल में हज कमेटी है। पश्चिम बंगाल में हज कमेटियां हाल ही में गठित हुई है।
चिट्ठी लिखने वाले हाफ़िज़ नौशाद आज़मी का कहना है कि राज्यों में हज कमेटी के गठन की ज़िम्मेदारी भी केंद्र सरकार यानि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की है। मंत्रालय की तरफ से राज्यों के मुख्य सचिवों को हज कमेटी गठित करके केंद्रीय हज कमेटी के लिए नाम भेजने के लिए निर्देश जारी करने होते हैं। लेकिन इस बार केंद्रीय हज कमेटी का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद राज्यों को इस संबंध में दिशा निर्देश जारी नहीं हुए हैं।
आरोप है कि नक़वी जानबूझ कर हज कमेटियों का गठन नहीं कर रहे हैं क्योंकि वो हज कमेटियों को ख़त्म करके हज की पूरी कमान मंत्रालय के हाथ में रखना चाहते हैं।
क्या कहना है नक़वी और मंत्रालय का?
इन आरोपों पर मुख़्तार अब्बास नक़वी ने चिट्ठी से अनभिज्ञता ज़ाहिर करते हुए कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। लेकिन उनके मंत्रालय के एक अधिकारी ने इन तमाम आरोपों को बेबुनियाद क़रार दिया। उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मंत्रालय हज कानूनों में बदलाव करके इसे नया रूप देना चाहता है। इसके ज़रिए हज कमेटी को हज के साथ उमरा और शिया मुसलमानों के पवित्र तीर्थ स्थल कर्बला की यात्रा करने के लिए भी विशेष प्रावधान किए जाएंगे। इसीलिए हज कमेटी के गठन का मामला रुका हुआ है। नया क़ानून बनने के बाद लोगों को कम खर्च में उमरा और कर्बला की यात्रा करने को मिलेगी। इससे प्राइवेट टूर ऑपरेटरों की लूट पर भी लगाम लगेगी।
पिछले साल रद्द हो गई थी हज यात्रा
बता दें कि हर साल देश भर से लगभग दो लाख हज यात्री जाते हैं। इनमे से क़रीब डेढ़ लाख हज कमेटी के ज़रिए जाते हैं। बाकी प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स के ज़रिए जाते हैं। हर राज्य का कोटा तय होता है। कोटे से ज़्यादा आवेदन आने की स्थिति में लॉटरी या ड्रा से फ़ैसला किया जाता है कि कौन हज यात्रा पर जाएगा और कौन नहीं।
पिछले साल कोरोना महामारी के चलते सऊदी अरब ने सीमित संख्या में सिर्फ़ सऊदी में रहने वालो को ही हज करने की अनुमति दी थी। लिहाज़ा दुनिया भर से कोई हज यात्री नहीं गया था। इस बार भी हज यात्रा हालात पर निर्भर करेगी।
जो भी हो सच्चाई ये है कि पहली बार हज कमेटी के बग़ैर हज की तैयारियां शुरू की गई हैं। हज क़ानून के मुताबिक़ हज का सारा कामकाज केंद्रीय हज कमेटी और राज्य हज कमेटियों की देख रेख में होता है। हज यात्रियों की ट्रेनिंग से लेकर उन्हें फ्लाइट से भेजे जाने तक का सारा इंतज़ाम हज कमेटी की देखरेख में होता है। अब जबकि हज कमेटी का कोई वजूद ही नहीं है तो फिर उसका कामकाज कौन देखेगा? ये सवाल उठना तो लाज़िमी है।