वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में शनिवार को सर्वे किया गया। रविवार को भी यह सर्वे जारी रहेगा। इस दौरान पुलिस की यहां भारी तैनाती रही। प्रशासन ने पूरे इलाके को सील कर दिया है।
मस्जिद के तहखानों में कुल चार कमरे हैं जिनमें से 3 मुसलिम पक्ष के पास हैं और एक हिंदू पक्ष के पास है।
बता दें कि वाराणसी की निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे होगा और 17 मई से पहले सर्वे टीम को अदालत को इसकी रिपोर्ट देनी होगी।
अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर को नहीं हटाया जाएगा। अदालत ने कहा था कि सर्वे में बाधा डालने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
बता दें कि यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। कोर्ट कमिश्नर को लेकर मुसलिम पक्ष ने सवाल खड़े किए थे और उन्हें हटाने की मांग की थी।
हुआ था विरोध
पिछले हफ्ते ज्ञानवापी मसजिद में सर्वे को लेकर हंगामा हुआ था। अदालत की ओर से नियुक्त कमिश्नर और वकीलों की टीम जब ज्ञानवापी मसजिद की पश्चिमी दीवार के पीछे स्थित श्रृंगार गौरी स्थल का सर्वे करने पहुंची थी तो वहां मौजूद लोगों ने नारेबाजी की थी।उधर, सर्वे के आदेश का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से निचली अदालत के आदेश के बाद यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की थी।
सीजेआई ने कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं जानते तो कैसे कोई आदेश दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि पहले वह कागज पढ़ेंगे और उसके बाद आदेश पास करेंगे।
क्या है मामला?
बीते साल अप्रैल महीने में राखी सिंह और 4 अन्य लोगों ने बनारस की एक अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि उन्हें श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत दी जानी चाहिए। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि मसजिद की पश्चिमी दीवार पर श्रृंगार गौरी की एक छवि थी।और मस्जिद नहीं खोना चाहते: ओवैसी
इस मामले में वाराणसी की अदालत के फैसले पर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने नाराजगी जताई है। ओवैसी ने एबीपी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा कि जिस तरह बाबरी मस्जिद को छीना गया उसी तरह से इतिहास को दोहराया जा रहा है।
ओवैसी ने कहा कि 1991 में भी जब कुछ लोग ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में हाई कोर्ट गए थे तो अदालत ने स्टे लगा दिया था।
उन्होंने एबीपी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा कि बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 के लिए कहा था कि यह अधिनियम सेक्युलरिज्म और भारत के बेसिक स्ट्रक्चर से जुड़ा है।