गुजरात में इलेक्टोरल बॉन्ड से ग़ज़ब खेल हो गया! द क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार एक दलित किसान परिवार की जमीन अधिग्रहित की गई और इससे मिली रक़म को कथित तौर पर बीजेपी को 10 करोड़ और शिवसेना को 1 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा दिलवा दिया गया। दलित परिवार ने आरोप लगाया है कि इनको धोखे से इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदवा दिया गया था।
यह मामला पिछले साल का है। द क्विंट ने ख़बर दी है कि 11 अक्टूबर 2023 को गुजरात के कच्छ जिले के अंजार शहर में एक दलित परिवार के छह सदस्यों के नाम पर 11 करोड़ 14 हजार रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए। इनमें से 10 करोड़ रुपये के बॉन्ड 16 अक्टूबर 2023 को बीजेपी द्वारा भुनाए गए थे और 1 करोड़ 14 हजार रुपये के बॉन्ड 18 अक्टूबर 2023 को शिव सेना द्वारा भुनाए गए थे। हालाँकि, दलित परिवार ने अब आरोप लगाया है कि एक कंपनी के एक अधिकारी ने उन्हें ये चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए 'धोखा' दिया था। ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर ने चंदे से जुड़ी जानकारियों को पोस्ट किया है।
पीड़ित हरेश सावकारा ने द क्विंट से कहा, 'वेलस्पन ने एक परियोजना के लिए अंजार में हमारी लगभग 43,000 वर्ग मीटर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया था। यह पैसा हमें कानून के अनुसार दिए गए मुआवजे का हिस्सा था। लेकिन यह पैसा जमा करते समय कंपनी के वरिष्ठ महाप्रबंधक महेंद्रसिंह सोढ़ा ने बताया कि इतनी बड़ी रकम से आयकर विभाग से जुड़ी परेशानी हो सकती है। फिर उन्होंने हमें चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में बताया। इसके बारे में उन्होंने कहा कि इससे यह होगा कि हमें कुछ वर्षों में 1.5 गुना राशि मिलेगी। हम अनपढ़ लोग, हमें नहीं पता था कि यह योजना क्या थी, लेकिन उस समय यह बहुत अच्छी लग रही थी।'
हरेश सावकारा मनवर के बेटे हैं, जो परिवार के छह सदस्यों में से एक हैं। उनका दावा है कि उन्हें बॉन्ड खरीदने के लिए धोखा दिया गया था। सावकारा ने 18 मार्च 2024 को अंजार पुलिस स्टेशन में इस संबंध में एक शिकायत सौंपी। द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार इसमें कंपनी के कई अधिकारियों के ख़िलाफ़ शिकायत दी गई है।
पुलिस ने अभी तक मामले के संबंध में एफआईआर दर्ज नहीं की है। द क्विंट से बात करते हुए मामले के जांच अधिकारी शैलेन्द्र सिसोदिया ने कहा, 'उन्होंने हमें एक आवेदन भेजा है। हम अभी भी इस पर गौर कर रहे हैं। एक बार जाँच पूरी हो जाए और अगर मामला एफआईआर के लायक हुआ तो हम एफआईआर दर्ज करेंगे।'
मनवर परिवार की भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया अक्टूबर 2022 में शुरू हुई। मनवर परिवार के वकील गोविंद दफादा के अनुसार कलेक्टर की अध्यक्षता वाली एक जिला स्तरीय भूमि अधिग्रहण समिति ने भूमि का मूल्य 17,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर तय किया।
दफाडा ने क्विंट से कहा कि कुल मुआवजा लगभग होने का अनुमान लगाया गया था 76 करोड़ रुपये, लेकिन वेलस्पन इतनी बड़ी रकम देने को तैयार नहीं था, इसलिए प्रक्रिया एक साल के लिए रुकी हुई थी।'
दाफदा ने कहा, 'यदि अधिग्रहण की प्रक्रिया समिति द्वारा अधिग्रहण दर तय करने के एक वर्ष के भीतर पूरी नहीं की जाती है, तो प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और इसे फिर से शुरू करना पड़ता है। हालांकि, इस मामले में प्रक्रिया ख़त्म होने से ठीक पहले कच्छ के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर मेहुल देसाई ने हस्तक्षेप किया और भूमि के मूल्य को 16,61,21,877 रुपये तक लाने के लिए सौदे पर फिर से बातचीत की।'
रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के सीलिंग कानूनों के अनुसार, जब भी भूमिहीनों को आवंटित अधिशेष भूमि सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा अधिग्रहित की जाती है तो सरकार के लिए 40 प्रतिशत की प्रीमियम दर निर्धारित की जाती है। इसका मतलब यह है कि अगर ज़मीन अधिग्रहण समिति द्वारा निर्धारित प्रारंभिक मूल्य पर बेची जाती, जो कि 76 करोड़ रुपये थी, तो गुजरात सरकार को 30.4 करोड़ रुपये मिलते, जबकि 45.6 करोड़ रुपये सावकारा परिवार को मिलते।
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार अंजार पुलिस स्टेशन में पुलिस निरीक्षक को संबोधित अपनी शिकायत में शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि अगस्त 2023 में, जिला प्रशासन ने उनकी कृषि भूमि कंपनी को 16,61,21,877 रुपये में बेचने की मंजूरी दे दी। शिकायत में कहा गया कि, 'इसमें से 2,80,15,000 रुपये अग्रिम भुगतान किए गए थे, जबकि बाक़ी 13,81,09,877 रुपये बाद में खाते में हस्तांतरित किए गए थे। शिकायतकर्ताओं ने आगे आरोप लगाया कि '1 अक्टूबर 2023 और 8 अक्टूबर 2023 के बीच अधिग्रहण प्रक्रिया में शामिल रहे महेंद्रसिंह सोढ़ा ने कंपनी के परिसर में वेलस्पन के गेस्ट हाउस में सावकारा और उनके बेटे हरेश के साथ चार बैठकें कीं और उन्हें पैसे निवेश करने के लिए राजी किया। चुनावी बॉन्ड योजना में आयकर की परेशानी और शानदार रिटर्न का हवाला दिया गया।' सावकारा ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि भाजपा अंजार शहर अध्यक्ष हेमंत रजनीकांत शाह इन बैठकों का हिस्सा थे। हालाँकि, द क्विंट से बात करते हुए शाह ने दावा किया कि उन्हें न तो इन बैठकों की जानकारी है और न ही मामले की। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता कि यह मामला क्या है।'
उस समय डिप्टी कलेक्टर रहे मेहुल देसाई ने द क्विंट से कहा, "मुझे आरोपों या मामले के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन मैं आपको आश्वस्त करूंगा कि कोई भी आरोप सच नहीं है क्योंकि सभी कानूनी हैं और भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों का पालन किया गया है। जिस पुरस्कार का आपने उल्लेख किया था वह 'सहमति पुरस्कार' (धारा 23) था और कानून के अनुसार सभी आवश्यक प्रक्रिया (दोनों पक्षों की सहमति) का पालन किया गया था, वह संबंधित अधिग्रहण प्रक्रिया से संबंधित नहीं है, इसलिए किसानों को कम मुआवजा देने की कोई संभावना नहीं है। मुझे यह भी याद है कि मैंने व्यक्तिगत रूप से उचित प्रक्रिया के बाद उन्हें चेक सौंपे हैं।"