गुजरात में भाजपा नेतृत्व को भितरघात की आशंका

05:01 pm Nov 29, 2022 | अनिल जैन

भारतीय जनता पार्टी गुजरात में अपने यहाँ हिमाचल प्रदेश जैसी व्यापक पैमाने पर बगावत रोकने में सफल रही है लेकिन पार्टी नेतृत्व भितरघात की आशंका से मुक्त नहीं है। बगावत थामने के लिए खुद गृह मंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाला और भरोसेमंद नेताओं की टीम बना कर उन्हें असंतुष्टों और बागी उम्मीदवारों को मनाने के काम में लगाया, जिससे बागी उम्मीदवारों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ पाई।

बीजेपी ने क़रीब 35 विधायकों के टिकट काटे लेकिन छह-सात विधायकों और पूर्व विधायकों के अलावा कोई बड़ा नेता बागी होकर चुनाव नहीं लड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में तो 68 ही सीटें हैं लेकिन वहाँ 21 नेता बागी होकर चुनाव लड़े। इसके मुक़ाबले 182 सीटों वाले गुजरात में यह संख्या बहुत कम रही।

असल में गुजरात में बीजेपी के ख़िलाफ़ खुली बग़ावत कम है पर पार्टी को भितरघात का अंदेशा है। यह अंदेशा खासकर उन बड़े नेताओं की ओर से है, जिन्हें इस बार उम्मीदवार नहीं बनाया है या पहले भी जिन्हें चुनाव लड़ने से रोका गया था। बगावत और नाराज़गी एक बड़ी वजह यह भी है कि पार्टी ने पिछले पांच साल के दौरान कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आए 20 से अधिक विधायकों को भी उम्मीदवार बनाया है।

असल में बीजेपी हर चुनाव मे कुछ विधायकों के टिकट काटती है और कुछ बड़े नेताओं को चुनाव लड़ने से रोक देती है। ये बड़े नेता खुद ऐलान करते हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। जैसे इस बार पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी, पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल, सौरभ पटेल, आरसी फाल्दू, भूपेंद्र चूड़ासमा आदि ने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।

पार्टी जिन बड़े नेताओ को जब चुनाव लड़ने से रोकती है तो उन्हें पार्टी में कोई बड़ा पद देने या राज्यपाल बनाने, राज्यसभा में भेजने या लोकसभा की टिकट देने आदि का वादा किया जाता है। लेकिन ऐसे पदों की संख्या सीमित है इसलिए ज़्यादातर लोगों से किया गया वादा पूरा नहीं होता है।

ऐसे नेताओं की तादाद अब काफ़ी बड़ी हो गई है। अभी जिन लोगों को चुनाव लड़ने से रोका गया है वे पहले के नेताओं के हस्र से परिचित हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि कई नेता ज़्यादा सक्रिय नहीं हैं या अंदरखाने पार्टी उम्मीदवार के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं। हालाँकि पार्टी नेतृत्व की ओर से ऐसे नेताओं पर नज़र रखने का प्रयास भी किया जा रहा है, लेकिन फिर ऐसे नेताओं की ओर से कुछ न कुछ नुक़सान की आशंका तो बनी हुई ही है।