गुजरात में गोधरा के बीजेपी विधायक सीके राउलजी ने कहा है कि बिलकिस बानो के बलात्कार के लिए दोषी ठहराए गए और 15 साल की जेल के बाद रिहा किए गए लोग ब्राह्मण हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि उनके 'अच्छा संस्कार' हैं। राउलजी ने उन दोषियों का समर्थन किया है।
उन्होंने मोजो स्टोरी से एक इंटरव्यू में कहा है, 'मुझे नहीं पता कि उन्होंने कोई अपराध किया है या नहीं। लेकिन क्राइम के बारे में कोई इंटेशन भी हो सकता है न।' सोशल मीडिया पर उनके इस बयान को ख़ूब साझा किया गया है।
विधायक ने साक्षात्कार में कहा, '... ब्राह्मण लोग थे और वैसे भी ब्राह्मण के जो कुछ है उसके संस्कार भी बड़े अच्छे थे।' वह आगे कहते हैं कि '...इसलिए उनको... किसी का गलत इरादा भी हो सकता है।' उन्होंने यह भी कहा है कि जेल में रहने के दौरान दोषियों का आचरण अच्छा था।
दो दिन पहले ही 2002 बिलकीस बानो गैंगरेप में सभी 11 आजीवन कारावास के दोषी गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत जेल से बाहर आ गए हैं। उन्हें उनकी रिहाई के बाद माला पहनाई गई थी और मिठाई खिलाई गई थी।
इस रिहाई पर पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायात्रा ने कहा, कुछ महीने पहले गठित एक समिति ने मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में आमराय से फैसला लिया। राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी और 14 अगस्त को हमें उनकी रिहाई के आदेश मिले।'
बता दें कि सीके राउलजी उन दो बीजेपी नेताओं में से एक थे, जो गुजरात सरकार के पैनल का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से बलात्कारियों को रिहा करने का फैसला किया था। यह फैसला तब लिया गया जब एक दोषी ने छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और मामला राज्य सरकार को सौंप दिया गया था।
इस फ़ैसले पर आलोचनाएँ झेल रही गुजरात सरकार ने कहा है कि उसने 1992 की नीति के अनुसार रिहाई की याचिका पर विचार किया जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था।
बता दें कि उम्रक़ैद की सज़ा पाए लोगों को छूट देने के बारे में जो नीति गुजरात में 1992 से चल रही थी, उसमें बलात्कारियों और हत्यारों तक को 14 साल के बाद रिहा करने का प्रावधान था लेकिन 2014 के बाद जो नीति बनी, उसमें ऐसे क़ैदियों की सज़ा में छूट देने का प्रावधान हटा दिया गया। बिलकीस बानो मामले के दोषियों की तरफ़ से कहा गया था कि उनको सज़ा में छूट का फ़ैसला 2014 से पहले लागू नीति (यानी 1992 की नीति) के अनुसार हो क्योंकि जिस साल (2008) उन्हें सज़ा दी गई, उस समय 1992 की ही नीति लागू थी। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में उनकी बात मान ली और राज्य सरकार से कहा कि इनको छूट देने के बारे में फ़ैसला 1992 की नीति के अनुसार हो क्योंकि इनकी सज़ा की घोषणा 2008 में हुई थी जब 1992 की ही नीति लागू थी।
बलात्कार और हत्या के दोषियों के लिए रिहाई के इस क़दम ने कई लोगों को चौंका दिया। विपक्षी दल इसके खिलाफ मुखर रहे हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि रिहाई महिलाओं के प्रति बीजेपी की मानसिकता को दिखाती है।
उन्होंने कहा था, 'उन्नाव - भाजपा विधायक को बचाने के लिए काम किया गया। कठुआ - बलात्कारियों के पक्ष में रैली। हाथरस - बलात्कारियों के पक्ष में सरकार। गुजरात - बलात्कारियों की रिहाई और सम्मान। अपराधियों का समर्थन महिलाओं के प्रति भाजपा की ओछी मानसिकता को दिखाता है। आपको ऐसी राजनीति पर शर्म नहीं आती, प्रधानमंत्री जी।'
तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने भी बीजेपी की आलोचना की थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट किया कि सीके राउलजी और सुमन चौहान के साथ एक अन्य सदस्य मुरली मूलचंदानी रिहाई की अपील की समीक्षा करने वाले पैनल में थे जो गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह थे!'
2002 के गुजरात दंगों के दौरान जब बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था तब वह 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं। उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इनमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। उसका सिर पत्थरों से कुचला गया था। सात अन्य रिश्तेदारों को लापता घोषित कर दिया गया था।