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रिटायरमेंट के बाद भी मोदी सरकार के निशाने पर क्यों हैं रजनीश राय?

रिटायरमेंट के बाद भी मोदी सरकार के निशाने पर क्यों हैं रजनीश राय?

गुजरात हाई कोर्ट ने रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर रजनीश राय को नौकरी दिए जाने को लेकर सवाल उठाये जाने पर आपत्ति जताई है।

गुजरात हाई कोर्ट ने रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी रजनीश राय को नौकरी दिए जाने को लेकर सवाल उठाये जाने पर आपत्ति जताई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से राय को भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद में नौकरी क्यों दी गई, इसे लेकर सवाल उठाया गया था। राय ने 2007 में हुए सोहराबुद्दीन शेख़, कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति के एनकाउंटर केस की जाँच की थी। उन्होंने नवंबर 2018 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और इस साल 6 मई से आईआईएम अहमदाबाद में बतौर एसोसिएट प्रोफ़ेसर नौकरी कर रहे थे। 

राय के वकील एडवोकेट राहुल शर्मा ने अदालत को बताया कि पिछले ही सप्ताह एचआरडी मंत्रालय ने आईआईएम अहमदाबाद को पत्र लिखकर पूछा है कि संस्थान ने राय की नियुक्ति क्यों की, क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक़, सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले में राय शक के घेरे में हैं। बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एसआर ब्रहमभट्ट ने कहा कि आईआईएम एक स्वतंत्र संस्थान है, ऐसे में भारत सरकार इस तरह का पत्र कैसे लिख सकती है। बेंच ने इस संबंध में सरकार से जवाब माँगा है। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए गए देवांग व्यास कोर्ट से अनुपस्थित रहे। 

सूत्रों ने अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एचआरडी मंत्रालय को रजनीश राय की नौकरी के बारे में और उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बारे में जानकारी दी थी। इसमें केंद्र की ओर से दिसंबर 2018 में राय के निलंबन आदेश के बारे में और 14 जनवरी को उनके ख़िलाफ़ दयर 14 पन्नों की चार्जशीट के बारे में भी जानकारी दी गई थी। 

राज्य सरकार ने राय की ओर से दायर की गई याचिका को हाई कोर्ट में चुनौती दी है और इसे ग़लत बताया है। हालाँकि राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में कोई आधिकारिक पक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में दिशा-निर्देश मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए बजाय इसके कि वह हस्तक्षेप करने वाले पत्र लिखे। 

रजनीश राय आईपीएस अधिकारी रहते हुए विवादों में रहे थे। वह सबसे पहले विवादों में तब आए थे जब उन्होंने सोहराबुद्दीन शेख़ के एनकाउंटर मामले में गुजरात के ही आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा और दूसरे पुलिसकर्मियों को गिरफ़्तार किया था। उस दौरान गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे और तब यह मामला ख़ासा चर्चा में रहा था। 

राय के वकील की ओर से दायर की गई याचिका में यह निर्देश देने की माँग की गई थी कि दूसरे पक्ष को उनकी नौकरी या व्यवसाय को लेकर किसी तरह के हस्तक्षेप करने की इजाजत न दी जाए। राय के वकील शर्मा ने कहा कि इस मामले में हो रही देरी पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 

शर्मा ने कहा, पिछले चार महीनों से मामले की सुनवाई में लगातार देरी हो रही है। इससे पहले एक महीने तक अदालत की छुट्टी थी। इसके अलावा प्रतिवादी पक्ष और समय की माँग कर रहा है। अंत में राज्य सरकार और साथ ही राय ने इस बात पर सहमति जताई कि इस मामले पर बहस हो और 30 जुलाई को इसका निपटारा कर दिया जाए।

पिछले साल 18 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रजनीश राय के निलंबन का आदेश जारी करते वक्त कहा था कि राय को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। गुजरात में रजनीश राय, राहुल शर्मा और सतीश वर्मा, ये तीनों ऐसे आईपीएस अधिकारी थे जिन्होंने मोदी सरकार के काम करने के तरीकों का जोरदार विरोध किया था। राहुल शर्मा ने गुजरात में 2002 में हुए दंगों के दौरान बेहद सख़्ती से काम किया था। उन्होंने दंगों के आरोपी राजनेताओं और दंगाइयों के बीच संबंधों को भी उजागर किया था। 

सतीश वर्मा ने जून 2004 में हुए इशरत जहाँ एनकाउंटर को फर्जी बताया था। गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने 4 लोगों को इस एनकाउंटर में मार गिराया था। मरने वालों में इशरत जहाँ भी थी, जिसका ताल्लुक आतंकवादी संगठ लश्कर-ए-तैयबा से बताया गया था। इसके अलावा प्रनेश पिल्लै उर्फ़ जावेद गुलाम शेख़, अमजद अली राना और जीशान जौहर को भी पुलिस ने मार गिराया था। डीआईजी डीजी वंजारा की अगुवाई में पुलिस ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया था। यह एनकाउंटर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नासूर बन गया था।

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