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गुजरात:बीजेपी के लिए मुसीबत बनेगा पुरानी पेंशन बहाली का आंदोलन?

गुजरात:बीजेपी के लिए मुसीबत बनेगा पुरानी पेंशन बहाली का आंदोलन?

पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए गुजरात में हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारी सड़क पर हैं। लेकिन क्या राज्य की बीजेपी सरकार उनकी मांग को लेकर बेपरवाह है?

गुजरात में इन दिनों बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी सड़कों पर हैं। इन कर्मचारियों ने राजधानी गांधीनगर में बीते सोमवार को जोरदार प्रदर्शन किया। कर्मचारियों का नेतृत्व राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा और गुजरात राज्य संयुक्त मोर्चा कर रहे हैं। इन दोनों संगठनों से राज्य भर के सरकारी कर्मचारियों के 72 संगठन जुड़े हुए हैं। 

इन संगठनों में स्वास्थ्य से लेकर तमाम महकमों के कर्मचारी शामिल हैं।

कर्मचारियों की मांग है कि राज्य में ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस को लागू किया जाए ना कि न्यू पेंशन स्कीम यानी एनपीएस को। कर्मचारियों की मांग यह भी है कि सरकार के अलग-अलग कैडर के लिए बनी फिक्स्ड वेज पॉलिसी यानी निश्चित वेतन नीति को खत्म किया जाना चाहिए।

बता दें कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले ओपीएस की बहाली के लिए राज्य में बड़ा आंदोलन हो चुका है।

ओपीएस की बहाली 

कर्मचारी नेता राकेश कंठारिया कहते हैं कि उनकी प्रमुख मांग ओपीएस की बहाली ही है।

कंठारिया ने एनपीएस की खामियों के बारे में द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ओपीएस में कर्मचारी और उसके परिवार को कर्मचारी की अंतिम तनख्वाह का 50 फीसद पैसा पेंशन के रूप में मिलता था और उस पेंशन को महंगाई के हिसाब से लगातार अपग्रेड किया जा रहा था। लेकिन नई पेंशन स्कीम यानी एनपीएस में सरकार जनरल प्रोविडेंट फंड का 10 फ़ीसदी पैसा कर्मचारियों की तनख्वाह से हर महीने काटती है और उसी राशि के कॉन्ट्रिब्यूशन को एनपीएस ट्रस्ट में जमा कर देती है।

उन्होंने कहा कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को सरकार द्वारा अधिकृत की गई 3 संस्थाओं में से किसी एक से पेंशन प्रोडक्ट खरीदना होता है। 

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उन्होंने कहा कि एनपीएस में पेंशन के रूप में मिलने वाला पैसा ओपीएस की तुलना में बहुत कम होता है और महंगाई के बढ़ने का इस पर असर नहीं होता और यह फिक्स्ड बना रहता है।

कर्मचारियों का कहना है कि राज्य सरकार के सभी कर्मचारी जो 2005 के बाद नियुक्त हुए हैं उन्हें एनपीएस के अंदर डाल दिया गया है और ऐसा करके राज्य सरकार कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है।

बता दें कि इन कर्मचारी संगठनों से सात लाख से ज्यादा कर्मचारी जुड़े हुए हैं और उनके परिवार के मतों को मिलाकर यह संख्या अच्छी खासी बैठती है।

गुजरात में साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले कर्मचारियों का प्रदर्शन निश्चित रूप से बीजेपी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

कर्मचारी नेता कंठारिया कहते हैं कि पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जिसने एनपीएस को लागू नहीं किया है और हाल ही में राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी ओपीएस में वापस लौट आए हैं। 

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कर्मचारी नेता इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और वित्त मंत्री कानू देसाई से भी मिले हैं। लेकिन अभी तक इस मामले में कुछ नहीं हो सका है। 

राज्य सरकार के कर्मचारियों का कहना है कि सरकार को उन्हें सातवें वेतन आयोग के हिसाब से निर्धारित किया गया वेतन देना चाहिए। 

गुजरात राज्य संयुक्त मोर्चा और गुजरात प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह जडेजा कहते हैं कि अगर सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती है तो इससे बीजेपी को विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है।

वह कहते हैं कि एक सरकारी कर्मचारी कम से कम 500 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता है और इससे चुनाव में सरकारी कर्मचारियों के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गुजरात में 50-60 सीटें हैं जो लगभग 5,000-10,000 वोटों के अंतर से तय होती हैं।  

बीजेपी बेपरवाह 

लेकिन बीजेपी का कहना है कि इस तरह के प्रदर्शनों का कोई असर चुनाव पर नहीं होगा। पार्टी के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जब बात चुनावी राजनीति की आती है तो हमारा हिंदुत्व का एजेंडा ताकतवर होता है। उन्होंने कहा कि गुजरात के कर्मचारी भी इस बात को मानते हैं कि उन्हें बाकी राज्यों के कर्मचारियों से ज्यादा फायदा मिल रहा है।

ओपीएस का मुद्दा निश्चित रूप से काफी बड़ा मुद्दा है और कांग्रेस ने इसे लागू किए जाने की मांग को उठाया है। कांग्रेस शासित राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ओपीएस को बहाल किया जा चुका है, ऐसे में बीजेपी मुश्किल में है क्योंकि उससे भी ओपीएस को बहाल किए जाने की मांग की जा रही है। देखना होगा कि क्या गुजरात की बीजेपी सरकार चुनाव में किसी तरह के सियासी नुकसान के डर से कर्मचारियों की मांगों को मानेगी।

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