गैंगरेप के दोषियों का सम्मान, टूटता सिस्टम...
बिलकीस बानो गैंगरेप केस के 11 मुजरिमों को छोड़े जाने में दो संस्थाओं की बड़ी भूमिका है। जिसमें सबसे पहले अदालत है और दूसरा अदालत के निर्देश का पालन करने वाली गुजरात सरकार है। दोनों संस्थाओं ने इस मामले के फैसले पर दूरगामी विचार नहीं किया। नतीजा सामने है, जेल से बाहर आने पर उन 11 गैंगरेप मुजरिमों का समाज ने सम्मान तक किया। यह शर्मनाक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।
2002 बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में आजीवन कारावास कि सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को आज गोधरा उप जेल से रिहा कर दिया गया… pic.twitter.com/U7uZJ5tuPs
— Ashraf Hussain (@AshrafFem) August 15, 2022
उस वीडियो में में साफ देखा जा सकता है कि कोई मुजरिमों को मिठाई खिला रहा है और कुछ महिलाओं ने उन्हें तिलक भी लगाया। किसी मामले में आरोपी या दोषी का जेल से बाहर आने के बाद हीरो की तरह वेलकम करना दक्षिणपंथी संगठनों की परंपरा बन गई है।
मुद्दा यह नहीं है कि उनका स्वागत हुआ। मुद्दा ये है कि जिस सिस्टम ने उन 11 दोषियों को छोड़ा है, उससे सवाल पूछा जाना चाहिए या नहीं।
गुजरात के मानवाधिकार वकील शमशाद पठान ने इस घटनाक्रम पर कहा कि बिलकीस गैंगरेप मामले से कम जघन्य अपराध करने वाले बड़ी संख्या में दोषी बिना किसी छूट के जेलों में बंद हैं। उनके बारे में तो सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया। जब कोई सरकार ऐसा फैसला लेती है तो सिस्टम में पीड़ित की उम्मीद कम हो जाती है।
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जब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को उनकी छूट पर विचार करने का निर्देश दिया, तो उसे अनुमति देने के बजाय छूट के खिलाफ विचार करना चाहिए था।
-शमशाद पठान, मानवाधिकार वकील, गुजरात हाईकोर्ट
एडवोकेट पठान ने कहा- कई आरोपी हैं जिनकी सजा की अवधि समाप्त हो गई है, लेकिन उन्हें इस आधार पर जेल से रिहा नहीं किया गया है कि वे किसी गिरोह का हिस्सा हैं या एक या दो हत्याओं में शामिल हैं। लेकिन इस तरह के जघन्य मामलों में, गुजरात सरकार आसानी से दोषियों को छूट की मंजूरी दे देती है। उन्हें जेल से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाती है।
यह सिर्फ हत्या और गैंगरेप का ही नहीं बल्कि जघन्य प्रकार के गैंगरेप का भी मामला था। उस पूरी कहानी को इस रिपोर्ट में दोहराना जरूरी नहीं है। इस बात को आप संकेतों में समझ सकते हैं।
सिस्टम ने ऐसे काम किया
तमाम वकील और जज जिस सिस्टम की बात करते रहे हैं, उस सिस्टम ने बिलकीस बानो गैंगरेप मामले में कैसे काम किया, इसे जानना जरूरी है।बिलकीस बानो गैंगरेप की घटना पर देशभर में काफी नाराजगी देखी गई थी, इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ। हालांकि, बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी की कि गवाहों पर दबाव बनाया जा सकता है और सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया।
सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जनवरी 2008 को बिलकीस बानो के परिवार के सात सदस्यों से गैंगरेप और हत्या के आरोप में 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अब उन्हीं 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया, उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं।
इनमें से एक, राधेश्याम शाह ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 और 433 के तहत सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी कि उनकी छूट के बारे में फैसला करने वाली "उपयुक्त सरकार" महाराष्ट्र है न कि गुजरात।
गुजरात हाईकोर्ट का यह आदेश महत्वपूर्ण था। क्योंकि ट्रायल महाराष्ट्र में चला था। उसने साफ शब्दों में कहा कि महाराष्ट्र सरकार विचार करे। उसी समय गुजरात सरकार का इरादा अगर नेक होता और वो 11 दोषियों को जेल से बाहर आने का रास्ता रोकने को तैयार होती तो वो तमाम कदम उठा सकती थी।
गुजरात सरकार चुप रही। इसके बाद मुजरिम राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह 1 अप्रैल, 2022 तक बिना किसी छूट के 15 साल 4 महीने जेल में रहा।
सुप्रीम कोर्ट में मई 2022 में इसके बाद जो हुआ, उसी से इन 11 मुजरिमों के बाहर आने का रास्ता साफ हुआ। यह तथ्य महत्वपूर्ण है। इसे गौर से पढ़ने पर ही पता चलेगा।
प्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया और दो महीने के भीतर फैसला करने को कहा। ...और गुजरात सरकार ने फैसला ले लिया। छूट नीति के तहत 11 गैंगरेप के दोषी गोधरा जेल से बाहर आ गए।
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सिस्टम चाहे तो क्या नहीं कर सकता। यह इस मामले में साबित हो गया। यह सिस्टम अदालत से लेकर सरकारों तक फैला हुआ है। इन्हीं के बीच कुछ अदालतें शानदार फैसले कर जाती हैं और कुछ फैसले ऐसे भी आते हैं, जिन पर सवाल उठ जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई के आदेश को सुनाने से पहले अगर क्षण भर के लिए गुजरात के इस महत्वपूर्ण मामले पर गौर किया होता तो वो गुजरात सरकार से याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार नहीं कहती और न गुजरात सरकार ऐसा बेतुका और शर्मनाक फैसला ले पाती कि गैंगरेप के मुजरिमों को ही छूट नीति की आड़ में छोड़ दिया जाए।
11 मुजरिमों को छोड़ा जाना एक सामान्य खबर नहीं है, जिसे आपने अखबारों में पढ़ा या टीवी पर देखा, ये खबर तय करने जा रही है कि भारतीय समाज इसे किस रूप में लेता है। जिस तरह साम्प्रदायिक दंगे, लिंचिंग सामान्य घटना की तरह लिए जाने लगे हैं तो क्या रेप के अपराधियों को छोड़े जाने को भी सामान्य घटना मान ली जाएगी।
The gangrape of Bilkis Bano , 2002 and the celebration of the release of the convicts ,2022, is a testimony of how women are used to prove male and political superiority.
— Mini Nair (@minicnair) August 16, 2022
लेखिका मिनी नायर ने इस घटनाक्रम पर अपने ट्वीट में कहा कि बिलकिस बानो का गैंगरेप, 2002 और दोषियों की रिहाई का जश्न, 2022, इस बात का प्रमाण है कि कैसे महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले राजनीतिक श्रेष्ठता साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
The speech from Red Fort said Respect women -meanwhile in Gujarat ....the perpetuators of one of the most horrendous crimes against a woman were let free ... #Respect #women #RedFort https://t.co/xKjMvl3yHD
— Yasmin Kidwai (@YasminKidwai) August 16, 2022
सोशल वर्कर यास्मीन किदवई ने लिखा - लाल किले के भाषण में कहा गया था कि महिलाओं का सम्मान करें - इस बीच गुजरात में ... एक महिला के खिलाफ सबसे जघन्य अपराधों में से एक के अपराधियों को मुक्त कर दिया गया ...।
Patriarchal, male chauvinists just don't get it, women do not need bloody respect. They just need a society where their rights are protected and any violation meets quick justice. Modi needs to stop lecturing and do his job. Start with giving justice to Bilkis Bano.
— Sanjukta Basu ✍️ (@sanjukta) August 16, 2022
पत्रकार और वकील संजुक्ता बसु ने लंबा ट्वीट किया - पितृसत्तात्मक समाज को और पुरुष अंधराष्ट्रवादियों को यह समझ नहीं आएगा कि महिलाओं को सिर्फ सम्मान की जरूरत नहीं है। उन्हें बस एक ऐसे समाज की जरूरत है जहां उनके अधिकारों की रक्षा हो और किसी भी उल्लंघन पर फौरन इंसाफ मिले। मोदी को भाषण देना बंद करना चाहिए और अपना काम करना चाहिए। बिलकीस बानो को इंसाफ दिलाने के साथ शुरुआत करें। मैं धर्म के नाम पर सड़क पर गुंडागर्दी करने वाले पुरुषों का सम्मान नहीं करती। लेकिन क्या मैं उन्हें हरा और परेशान कर सकती हूं? नहीं, क्योंकि यह उनका अधिकार है।
The civil society that welcomes PM’s assertion on gender equality is as hollow as justice for Bilkis Bano.
— Safoora Zargar (Away) (@SafooraZargar) August 16, 2022
सफूरा जरगर ने ट्वीट किया - जेंडर समानता पर पीएम के दावे का स्वागत करने वाला नागरिक समाज बिलकीस बानो को इंसाफ के नाम पर खोखला है।
गुजरात में 11 गैंगरेप दोषियों को छोड़े जाने पर ये चंद प्रतिक्रियाएं पढ़ी-लिखी महिलाओं की थीं लेकिन सोशल मीडिया पर महिलाओं और पुरुषों का गुस्सा इस मुद्दे पर साफ झलक रहा है। ज्यादातर लोगों ने इसके लिए गुजरात सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।