काशी विश्वनाथ मंदिर में गुजरात की कंपनी का 'प्रसाद', लोकल हलवाई मक्खी मारेंगे
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों को वितरित किए जाने वाले 'महाप्रसाद' पर गुजरात की कंपनी का नियंत्रण होने के बाद शहर विवाद खड़ा हो गया है। इस मंदिर में पहले लोकल बिजनेस के तहत स्थानी हलवाइयों का मशहूर पेड़ा या लड्डू प्रसाद के रूप में बिकता था। लेकिन अब आपको मंदिर कैंपस से गुजरात की ही कंपनी का प्रसाद खरीदना पड़ेगा। पिछले दिनों स्थानी हलवाइयों ने अपना प्रसाद बेचने की कोशिश की तो 7 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मंदिर ट्रस्ट ने सख्त निर्देश दिया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर सिर्फ गुजरात की कंपनी का ही प्रसाद बिकेगा। पुराने हलवाई की दुकान उजाड़ दी गई है और अब गुजरात की कंपनी का काउंटर वहां खुलवा दिया गया है।
गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) का हिस्सा बनास डेयरी जो अमूल ब्रांड के तहत उत्पादों की मार्केटिंग करती है, ने वाराणसी में अपने नए स्थापित बनास काशी कॉम्प्लेक्स में 'महाप्रसाद' का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है। यह कदम 'तंदुल लड्डू' की तैयारी और वितरण में बदलाव का प्रतीक है, जो अब मंदिर के प्रसाद कियोस्क पर बेचा जाता है।
पारंपरिक रूप से बनारस के स्थानीय हलवाई मशहूर बनारसी 'लाल पेड़ा' बनाते हैं, जो काशी मंदिर में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। लेकिन अब गुजरात की कंपनी बनास डेयरी यानी अमूल ने इस पर कब्जा कर लिया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा था कि बनारस में काशी मंदिर आने वालों को अब शुद्ध प्रसाद मिलेगा। लेकिन बनारसी लाल पेड़ा बनाने वाले हलवाई आहत महसूस कर रहे हैं। हजारों बनारसी हलवाइयों और उनके यहां काम करने वालों की आजीविका का साधन बनारसी लाल पेड़ा था लेकिन अमूल ने उनका बिजनेस न सिर्फ छीन लिया है, बल्कि चौपट कर दिया है। क्योंकि उनका पेड़ा अब मंदिर परिसर में बिक नहीं सकता।
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अमूल के कब्जा करने से पहले बनारस में 5 लोकल हलवाई मंदिर के लिए प्रसाद का प्रोडक्शन और आपूर्ति करते थे। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार हर हलवाई के पास 60-70 स्थानीय महिला और पुरुष कर्मचारी कार्यरत थे। इनमें से एक समूह बेला पापड़ स्वयं सहायता समूह की सुनीता जयसवाल भी हैं, जिनकी पिछले दिनों योगी-मोदी ने तारीफ भी की थी। इनके अलावा बनारस के बाकी हलवाई भी लाल पेड़ा मंदिर के आसपास बेचकर अपनी रोटी-रोजी चला रहे थे।
बनारस में गुजरात की कंपनी जब अपने पैर जमा रही थी। उसी समय तिरुपति मंदिर के प्रसाद का विवाद सामने आ गया था। उस विवाद के बाद वाराणसी और अयोध्या के मंदिरों में प्रसाद की परंपरा पर हमला हुआ। बताया जा रहा है कि तिरुपति विवाद के बाद वाराणसी औऱ अयोध्या मंदिर ट्रस्ट ने एक बैठक में प्रसाद की शुद्धता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने का फैसला किया। गुजरात की कंपनी ने दावा किया कि यह प्रसाद ''10 महीने की रिसर्च'' के बाद तैयार किया गया है। हालांकि बनास डेयरी यानी अमूल ने प्लांट लगाने के लिए मोदी के 2014 में पीएम बनने के बाद लाइसेंस के लिए आवेदन किया था।
प्रसाद हुआ महंगाः गुजरात की कंपनी ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रसाद की व्यवस्था पर जब पूरी तरह नियंत्रण कर लिया तो उसने प्रसाद के रेट भी बढ़ा दिये। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, 200 ग्राम लड्डू प्रसाद की पहले वाली दर 100/ से बढ़ाकर 120/ कर दी गई है।
On the condition of anonymity, a former vendor told to Navbharat Times that "we are forbidden to talk to the media in any way." https://t.co/f1q7gzH44N
— RAHUL (@RahulSeeker) October 20, 2024
There are hardly any reports reporting the local jobless vendors & workers. Here the Dainik Bhaskar reported the issue. 👇🏾 5/8 pic.twitter.com/ttGLR5OiEU
कर्नाटक का अमूल-नंदिनी विवादगुजरात की कंपनी अमूल ने 5 अप्रैल को अपने दूध और दही की आपूर्ति के लिए कर्नाटक के बाजार में प्रवेश करने की घोषणा की। उस समय कर्नाटक में चुनाव हो रहे थे। उस समय के विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया। कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं ने कहा कि कर्नाटक अपने दुग्ध प्रोडक्ट नंदिनी पर इसका असर पड़ेगा।
कांग्रेस और जेडीएस ने उस समय सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि 21,000 करोड़ रुपये का ब्रांड नंदिनी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) मार्केट से बाहर हो जाएगा। ये भी हो सकता है कि बाद में भाजपा सरकार नंदिनी का विलय अमूल की कंपनी में कर दे। कर्नाटक के लोगों का नंदिनी से भावनात्मक जुड़ाव है। हर घर में नंदिनी के दुग्ध उत्पाद जाते हैं। कांग्रेस के विरोध का असर पड़ा। जनता भी अमूल को कर्नाटक में लाये जाने का विरोध करने सड़कों पर उतर पड़ी।
यह आरोप लगे कि बीजेपी 49 साल पुरानी केएमसी की नंदिनी का आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड (AMUL) में विलय करना चाहती है ताकि देश में 'एक राष्ट्र, एक अमूल' हो सके। लोगों ने अमूल के दूध और नंदिनी के दूध की कीमतों के रेट की भी तुलना की। उस समय नंदिनी के एक लीटर टोंड दूध की कीमत 39 रुपये थी, वहीं अमूल की एक लीटर की कीमत 52 रुपये थी।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि अमूल जहां जहां पहुंचा, उसने उस राज्य के दुग्ध पोडक्ट को नुकसान पहुंचाया। महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन लिमिटेड, जिसे महानंद डेयरी के नाम से भी जाना जाता है, अमूल के बाजार में आने के बाद से अच्छा कारोबार नहीं कर रहा है। इसी तरह, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सहकारी दुग्ध संघों को ज्यादा लाभ नहीं मिला। हरियाणा वीटा अब अपना विस्तार नहीं कर पा रहा है, जबकि पूरे हरियाणा में अमूल ने कब्जा कर लिया है।