गैंगरेप में दोषी करार दिए गए मुजरिमों को आपने कहीं छूटते देखा है? ऐसा गुजरात की बीजेपी सरकार ने कर दिखाया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक 2002 बिलकीस बानो गैंगरेप में सभी 11 आजीवन कारावास के दोषियों को गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत गोधरा उप जेल से बाहर आ गए हैं।
खबर के मुताबिक पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायात्रा ने कहा, कुछ महीने पहले गठित एक समिति ने मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में आमराय से फैसला लिया। राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी, और 14 अगस्त रविवार को हमें उनकी रिहाई के आदेश मिले।
21 जनवरी 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकीस बानो के परिवार के सात सदस्यों से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के आरोप में 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा सुनाने में देरी की थी।
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
पंचमहल की कलेक्टर सुजल मायात्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को उनकी सजा में छूट के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद सरकार ने एक समिति बनाई थी। उसी सरकारी समिति ने इन लोगों को छोड़ने की सिफारिश की थी।
क्या है बिलकीस बानो केस?
गोधरा में साबरमती ट्रेन को जलाने और कारसेवकों के मारे जाने के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई थी। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गोधरा कांड के बाद हिंसा के दौरान भागते समय 3 मार्च, 2002 को अहमदाबाद के पास रंधिकपुर गाँव में बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पाँच महीने की गर्भवती थीं। उनके तीन बच्चे भी मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान मारे गए थे। उनके साथ गैंगरेप की यह घटना हुई थी।बिलकीस बानो के मामले की सुनवाई शुरुआत में अहमदाबाद में शुरू हुई थी। जब बानो ने गवाहों को नुकसान पहुंचाने की आशंका व्यक्त की, तो सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
21 जनवरी, 2008 को, एक विशेष अदालत ने इस घटना के लिए 11 लोगों को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, इसने पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों सहित सात लोगों को बरी कर दिया, जिन पर सबूतों से छेड़छाड़ करने का आरोप था।
सरकार की छूट नीति का फायदा उठाकर 11 गैंगरेपी दोषी बाहर तो आ गए लेकिन उसी गुजरात में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट तीन वर्षों से जेल में बंद हैं। हर बार हर कोर्ट से उनकी जमानत अर्जी खारिज हो जाती है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस बीआर श्रीकुमार को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।