ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव के प्रचार में नेताओं में एक-दूसरे को गालियाँ देने, जाति, धर्म के नाम पर वोट माँगने की होड़ लगी हुई है। हैरानी और शर्म की बात यह है कि ये नेता चुनाव आयोग की कड़ी कार्रवाई से भी नहीं डर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा नेता आज़म ख़ान, केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी, बसपा सुप्रीमो मायावती, हिमाचल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष सतपाल सत्ती के बाद एक और नया नाम सामने आया है, जिसने अपने भाषण से यह जताने की कोशिश की है कि उन्हें भी क़ानून, चुनाव आयोग का किसी तरह का ख़ौफ़ नहीं है। इस फेहरिस्त में शामिल इन नये नेता का नाम है श्रीभगवान शर्मा उर्फ़ गूड्डू पंडित।
श्रीभगवान शर्मा उर्फ़ गूड्डू पंडित बीएसपी के टिकट पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पहले सुनिए गुड्डू पंडित का बयान।
वीडियो में दिख रहा है कि चुनाव प्रचार के दौरान गुड्डू पंडित कांग्रेस के उम्मीदवार राजबब्बर और उनके समर्थकों को धमका रहे हैं और बहुत ख़राब भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। गुड्डू पंडित ने कहा, ‘सुन लो राज बब्बर के कुत्तों तुमको और तुम्हारे नेता-नचनिया को दौड़ा-दौड़ाकर जूतों से मारुंगा, जो जूठ फैलाया समाज में। जहाँ मिलेगा गंगा माँ की सौगंध तुझे जूतों से मारुंगा, तुझे और तेरे दलालों को।' इसके बाद वहाँ मौजूद उनके समर्थक गुड्डू पंडित जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। गुड्डू पंडित का बयान सोशल मीडिया पर ख़ासा वायरल हो गया है।
गुड्डू पंडित की इस बदजुबानी पर कांग्रेस नेता राज बब्बर ने कहा कि अगर गुड्डू पंडित अपने माता-पिता की नसीहत को नहीं सीख पाये तो फिर मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता। फतेहपुर सीकरी के लोग मुझे बहुत सम्मान देते हैं।
फतेहपुर सीकरी सीट पर 18 अप्रैल को मतदान होना है। अब आपको बताते हैं कि आख़िर ये गुड्डू पंडित हैं कौन और इनका इतिहास क्या है
गुड्डू पंडित को दबंग नेता माना जाता है। वह चर्चा में तब आए थे जब उन्होंने डिबाई से बीजेपी के बड़े नेता और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को 2007 में डिबाई से चुनाव हरा दिया था। 2012 में एक बार फिर वह समाजवादी पार्टी (एसपी) के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर बुलंदशहर से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। गुड्डू पंडित मूल रूप से नोएडा के रहने वाले हैं। गुड्डू पंडित के भाई मुकेश शर्मा भी सपा के टिकट पर शिकारपुर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं।
2012 में थे 13 आपराधिक मामले
2012 के विधानसभा चुनाव में गुड्डू पंडित ने जो हलफ़नामा दाख़िल किया था उसके मुताबिक़ उन पर 13 आपराधिक मामले चल रहे थे। 2008 में उन पर एक लड़की ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। उस समय यह मामला काफ़ी बढ़ गया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें दिल्ली स्थित अपने बंगले पर बुलाया था। इसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था। इसके बाद कुछ समय तक गुड्डू पंडित जेल में रहे थे। 2010 में ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में गुड्डू पंडित पर बीडीसी सदस्यों के अपहरण का आरोप लगा था। बेहद दबंग और आपराधिक छवि के बावजूद गुड्डू पंडित 2012 में समाजवादी पार्टी का टिकट हासिल करने में कामयाब रहे थे।
वर्तमान में गुड्डू पंडित के ख़िलाफ़ नोएडा, बुलंदशहर में 6 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन मामलों में जबरन वसूली, जान से मारने की धमकी देना, घर में घुसकर मारपीट करना, गाली-गलौज करना, शांति भंग करना आदि शामिल हैं।
साल 2008 में गुड्डू पंडित का नाम बुलंदशहर डीएवी कॉलेज के प्रिंसिपल को धमकाने के मामले में सामने आया था। साल 2009 में बाग़पत में एक चुनावी जनसभा के दौरान गुड्डू पंडित पर मतदाताओं को धमकाने का भी आरोप लगा था। गुड्डू पंडित ने कहा था कि गाँव वालों सुन लो, यह बसपा की सरकार है और रहेगी, भगवान चाहकर भी तुम्हें नहीं बचा सकता। एक सिर्फ़ गुड्डू पंडित ही तुम्हें बचा सकता है।
2014 में नोएडा सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी गुड्डू पंडित पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को धमकाने का आरोप लगा था। इस चुनाव में गुड्डू पंडित की पत्नी कोमल शर्मा सपा की उम्मीदवार थीं।
सवाल यह है कि देश के प्रमुख राजनीतिक दल की ओर से लोकसभा का चुनाव लड़ रहा कोई उम्मीदवार दूसरी पार्टी के नेता को खुलेआम धमका रहा है, गालियाँ दे रहा है और उसे क़ानून, आदर्श आचार संहिता का कोई ख़ौफ़ नहीं है। हालाँकि चुनाव आयोग ने कुछ नेताओं पर कार्रवाई कर बाक़ी लोगों तक यह संदेश दिया है कि वे किसी भी स्थिति में आदर्श आचार संहिता को न तोड़ें लेकिन नेताओं की बदजुबानी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। ऐसे नेता अगर लोकतंत्र में हमारे प्रतिनिधि बनेंगे तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है। उम्मीद सिर्फ़ जनता से की जा सकती है कि वह आपराधिक मुक़दमे झेल रहे, भड़काऊ और अभद्र भाषा बोलने वाले नेताओं को देश की विधानसभा, संसद और अन्य निर्वाचन संस्थाओं तक क़तई न पहुँचने दे।