गुड्डू जमाली ने भी छोड़ी बीएसपी, चुनाव से पहले मायावती को एक और झटका
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीएसपी प्रमुख मायावती को एक और बड़ा झटका लगा है। विधायक दल के नेता गुड्डू जमाली ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। एक और विधायक वंदना सिंह ने भी बीजेपी का हाथ थाम लिया है। कुछ साल पहले तक उत्तर प्रदेश में बड़ी सियासी ताक़त मानी जाने वाली बीएसपी के पास आज उंगलियों में गिनने लायक ही विधायक बचे हैं।
जमाली को तीन महीने पहले ही विधायक दल का नेता बनाया गया था और उन्हें मायावती का क़रीबी भी माना जाता था। लेकिन उनके भी पार्टी छोड़ देने से सवाल यह उठ रहा है कि आख़िर क्यों एक के बाद एक नेता बीएसपी को छोड़कर जा रहे हैं।
कई बड़े नेता गए
बीते कुछ महीनों में लालजी वर्मा, राम अचल राजभर जैसे बड़े नेताओं ने भी पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया। ये दोनों ही मायावती के क़रीबी नेताओं में शुमार थे। दोनों नेता अखिलेश यादव के साथ चले गए हैं। वर्मा कुर्मियों के बड़े नेता हैं और उनके आने से सपा को इस वर्ग के जबकि रामअचल राजभर के आने से पार्टी को राजभर समुदाय के वोट मिल सकते हैं।
इसके अलावा विधायक आरपी कुशवाहा, पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम, सहारनपुर के पूर्व सांसद कादिर राणा और उत्तर प्रदेश में बीएसपी के अध्यक्ष रहे आरएस कुशवाहा सहित बीएसपी के टिकट पर जीते छह विधायक भी अखिलेश यादव के साथ चले गए हैं।
साफ है कि अखिलेश अपने सियासी कुनबे को मजबूत करते जा रहे हैं जबकि मायावती पूरी तरह अकेली पड़ती जा रही हैं।
इसके अलावा कभी कांशीराम के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश में बीएसपी को खड़ा करने और सत्ता में पहुंचाने वाले राज बहादुर, आरके चौधरी, दीनानाथ भास्कर, मसूद अहमद, बरखूराम वर्मा, जंगबहादुर पटेल, बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और सोनेलाल पटेल जैसे बड़े नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं या बाहर किए जा चुके हैं।
हालांकि बीएसपी मुखिया मायावती ने कहा है कि गुड्डू जमाली का नाम एक महिला को तंग करने के विवाद में सामने आया था और पार्टी ने उनसे कहा था कि वे इस मामले में अदालत जाएं और ख़ुद को पाक साफ साबित करें।
गठबंधन बनाने में जुटे हैं अखिलेश
दूसरी ओर अखिलेश यादव तमाम छोटे दलों को जोड़कर एक मजबूत गठबंधन बनाने में जुटे हैं। बता दें कि अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और महान दल के साथ गठबंधन फ़ाइनल कर लिया है और अब ये दल मिलकर 2022 का चुनाव लड़ेंगे। बताया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के साथ भी उनका गठबंधन फ़ाइनल होने वाला है।
निश्चित रूप से मायावती के लिए हालात मुश्किल होते दिख रहे हैं। मायावती ने बीते दिनों उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के जरिये चुनाव मैदान में जाने के संकेत दिए हैं। पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने प्रदेश के कई जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन किए हैं। लेकिन मायावती की चिंता पिछड़े और मुसलिम नेताओं के लगातार पार्टी को छोड़ने और उनके समाजवादी पार्टी के साथ जाने को लेकर है।