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रसोई गैस के बाद हरी सब्जियाँ महंगी, भिंडी 90 रुपये किलो

रसोई गैस के बाद हरी सब्जियाँ महंगी, भिंडी 90 रुपये किलो

पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़नी रुक गईं, लेकिन हरी सब्जियों के दाम अब रसोई का बजट बिगाड़ने लगा है। दिल्ली में तो भिंडी और तोरी 90 रुपये प्रति किलो पार हो गया है। 

पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़नी फ़िलहाल तो रुक गईं, लेकिन हरी सब्जियों के दाम अब रसोई का बजट बिगाड़ने लगे हैं। दिल्ली में तो भिंडी और तोरी 90 रुपये प्रति किलो पार हो गयी है। नींबू 100 रुपये किलो। और करेला 70 रुपये। क़ीमतें ऐसा एहसास दिला रही हैं जैसे 'एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा'! रसोई गैस की बढ़ी क़ीमतों से रसोई का बजट पहले ही गड़बड़ाया था अब सब्जियों के दाम ने आम लोगों की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। 

ऐसे में सवाल है कि महंगाई का बोझ आम लोगों पर कितना ज़्यादा है? यह समझने के लिए एक तरीक़ा तो मुद्रास्फ़ीति का पैमाना है जो काफ़ी पेचिदा है। एक दूसरा तरीक़ा यह है कि यह देखा जाए कि आम लोगों की जेबें कितनी ढीली हो रही हैं। इसके लिए बेहतर पैमाना है रसोई के ख़र्च को देखना। यदि इस पैमाने पर देखा जाए तो सब्जियों के दाम, रसोई गैस और खाने वाले तेल की क़ीमतें महंगाई की कहानी काफ़ी हद तक बयां कर देती हैं। 

यदि दिल्ली के स्थानीय बाज़ारों की बात करें तो परवल व टींडा 70-70 रुपये, बैंगन 40 रुपये, बीन्स 60 रुपये प्रति किलो के भाव से मिल रहे हैं। हालाँकि स्थानीय बाज़ारों की अपेक्षा मंडियों में भाव काफ़ी सस्ते हैं। दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में इन्हीं सब्जियों के दाम क़रीब आधे हैं। स्थानीय बाज़ारों में लहसुन जहाँ 100 रुपये प्रति किलो है वहीं आज़ादपुर मंडी में 55-60 रुपये किलो। घीया जहाँ आज़ादपुर मंडी में 16 रुपये किलो है वहीं स्थानीय बाज़ारों में यह 30 रुपये किलो। 

सब्जी से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि दाम बढ़ने का कारण समय से पहले गर्मी का मौसम आ जाना है। सामान्य तौर पर गर्मी के कारण हरी सब्जियाँ जल्दी ख़राब हो जाती हैं और उन्हें ज़्यादा समय तक स्टोर कर रखना मुश्किल होता है। उनका यह भी कहना है कि सब्जी की आवक सामान्य तौर पर बनी हुई है। 

सब्जियों की क़ीमतें बढ़ने से पहले रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ते रहे थे। घरेलू रसोई गैस की क़ीमत पिछले सात वर्षों में दोगुनी हो गई है।

कई सालों से धीरे-धीरे सब्सिडी को ख़त्म कर दिया गया है। 4 फ़रवरी से लेकर 10 मार्च के बीच चार बार गैस की क़ीमतों में बढ़ोतरी की गई है और इस दौरान रिफिल की क़ीमत में प्रति सिलेंडर 125 रुपये की बढ़ोतरी हुई है।

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खाने के तेल के दाम 50% महंगे

खाने के तेल की क़ीमतें पिछले एक साल में 25 फ़ीसदी से लेकर 50 फ़ीसदी तक महंगी हो गई हैं। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ के आँकड़ों से पता चलता है कि पैक किए गए मूंगफली तेल का मॉडल (आम इस्तेमाल का तेल) मूल्य 9 मार्च, 2020 को 120 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर इस साल 9 मार्च तक 170 रुपये हो गया है। इसी तरह, पिछले एक साल में पैक सरसों के तेल का मॉडल मूल्य 113 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 140 रुपये हो गया है। इस अवधि के दौरान पाम ऑयल के मॉडल की क़ीमत में भी 50% की वृद्धि हुई है, जो 85 रुपये से बढ़कर 122 रुपये प्रति लीटर हो गया है। 

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मुद्रास्फीति बढ़ी

इसी हफ़्ते जारी आँकड़ों के अनुसार, देश में खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी माह में बढ़कर 5.03 फीसदी पर पहुंच गई है। इससे पिछले महीने जनवरी में सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 4.06 फीसदी रही थी। इससे पहले नवंबर 2020 में यह 6.93 फीसदी की ऊंचाई को छू चुकी है। 

फरवरी 2021 में लगातार दूसरे माह देश की थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 4.17 फीसदी पर आ गई। पिछले साल की समान अवधि में यह 2.26 फीसदी थी। खाने-पीने और ईंधन, बिजली के दाम बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ी है। 

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