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कोरोना मरीज़ों को ठीक होने पर 3-9 महीने में वैक्सीन की सिफारिश क्यों?

कोरोना मरीज़ों को ठीक होने पर 3-9 महीने में वैक्सीन की सिफारिश क्यों?

कोरोना से संक्रमित मरीज़ों को ठीक होने के बाद अब तक दो हफ़्ते में वैक्सीन लगाई जा रही है, लेकिन सरकार के विशेषज्ञों के पैनल ने इसे अब 3-9 महीने में लगाए जाने की सिफ़ारिश की है। 

कोरोना से संक्रमित मरीज़ों को ठीक होने के बाद अब तक दो हफ़्ते में वैक्सीन लगाई जा रही है, लेकिन सरकार के विशेषज्ञों के पैनल ने इसे अब 3-9 महीने में लगाए जाने की सिफ़ारिश की है। यानी सिफारिश के अनुसार यदि कोई कोरोना संक्रमण से आज ठीक होता है तो उसे 3 महीने बाद और 9 महीने से पहले उसे टीके की पहली खुराक लगाई जा सकेगी। विशेषज्ञों के पैनल ने कहा है कि यह फ़ैसला पूरी तरह वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लिया गया है। 

आम तौर पर जो शोध अब तक सामने आए हैं उनमें कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों में क़रीब तीन महीने तक वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी प्रभावी होती है। शरीर में धीरे-धीरे यह एंटीबॉडी कमजोर पड़ने लगती है और वायरस के संपर्क में आने पर फिर से संक्रमित होने का ख़तरा बढ़ जाता है। इन्हीं वजहों से दुनिया के अधिकतर देशों में सलाह दी जा रही है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों को तीन महीने में वैक्सीन ले लेनी चाहिए।

भारत में टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह यानी एनटीएजीआई ने इसके लिए जो तीन से नौ महीने की सिफ़ारिश की है उसको मंजूरी के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा गया है। 'द इकोनॉमिक टाइम्स' की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि हमने एक ऐसी वैक्सीन नीति की सिफारिश की है जिसमें कोविड-19 पॉजिटिव आने वालों के लिए पहली खुराक के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी होगी। उन्होंने कहा कि लंबी अवधि होने से एंटीबॉडी प्रतिक्रिया बेहतर होती है और इसीलिए इसकी सिफ़ारिश की गई है।

देश में मौजूदा व्यवस्था यह है कि ऐसे लोगों को कोरोना से ठीक होने यानी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के दो हफ़्ते बाद कोरोना के टीके लगाए जा रहे हैं। 

इस समिति ने यह भी कहा है कि जिन लोगों ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ ली है या प्लाज़्मा लिया है, वे उसके बाद तीन महीने तक कोरोना टीका न लें। 

हाल ही में क़रीब हफ़्ते भर पहले एक रिपोर्ट आई थी कि नेशनल टेक्निकल एडवायज़री ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन ने सरकार को सलाह दी कि कोरोना संक्रमण से उबरे हुए लोग ठीक होने के छह महीने तक टीका न लगवाएँ। 

यह सलाह ऐसे समय दी गई है जब कोरोना टीके की कमी हो गई है और कई जगहों पर टीकाकरण रोक दिया गया है। यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या कोरोना टीके की कमी होने की वजह से यह कहा जा रहा है या इसका कोई वैज्ञानिक भी है।

बहरहाल, देश में कोरोना टीके की कमी की शिकायतें हैं और कई जगहों पर टीकाकरण केंद्रों को बंद करना पड़ा है। एक दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने कहा है कि उसके पास सिर्फ़ तीन दिन का स्टॉक पड़ा हुआ है और केंद्र सरकार से उसने टीके की सप्लाई की माँग की। दो दिन पहले ही ख़बर आई थी कि श्रीनगर ज़िले में तो दिन में कोई भी टीका नहीं लग पाया था और कश्मीर घाटी के 10 ज़िलों में क़रीब 500 लोगों को ही टीके लग पाए। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक जैसे सभी राज्यों में टीकाकरण की रफ़्तार धीमी पड़ गई है।

हालाँकि, द इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार इस सिफ़ारिश पर संभावित सवाल को लेकर एक अधिकारी ने कहा कि 'सिफारिशें वैज्ञानिक आँकड़ों पर आधारित हैं। हम किसी अन्य देश का आँख बंद करके अनुसरण नहीं कर रहे हैं।' 

बता दें कि हाल ही में कोविशील्ड वैक्सीन की जो खुराकें शुरुआत में 4 हफ़्ते के अंतराल में लगाई जा रही थीं उसको 12-16 हफ़्ते बढ़ाने की सिफ़ारिश सरकारी पैनल ने की है। क़रीब दो महीने में यह दूसरी बार है जब कोविशील्ड की खुराक के अंतराल को बढ़ाने की सिफ़ारिश की गई है। शुरुआत में यह अंतराल 4-6 हफ़्ते का था। मार्च के दूसरे पखवाड़े में अंतराल को बढ़ाकर 6-8 सप्ताह किया गया था। और अब मई के मध्य में इस अंतराल को बढ़ाकर 12-16 हफ़्ते करने की सिफ़ारिश की गई है। 

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