ग़लत आँकड़े देने वाली सरकार की छवि दुरुस्त करने के लिए बनाई नई समिति?
क्या केंद्र सरकार ने यह मान लिया है कि अर्थव्यवस्था से जुड़े उसके आँकड़ों पर अब कोई भरोसा नहीं करता? इस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी किरकिरी तो हुई ही है, विदेशी निवेशक भी इस अविश्वसनीयता के कारण किनारा कर चुके हैं?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि केंद्र सरकार की सांख्यिकी व कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने 28 सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इसका नाम स्टैंडिंग कमिटी ऑन इकनॉमिक स्टैटिस्टिक्स रखा गया है। इसमें संयुक्त राष्ट्र, रिज़र्व बैंक, वित्त मंत्रालय, नीति आयोग, दो वाणिज्य संगठन, टाटा ट्रस्ट और नामी-गिरामी अर्थशास्त्री होंगे।
इसकी अगुआई स्टैटिस्टिशीयन प्रणव सेन करेंगे। प्रणव सेन वहीं व्यक्ति हैं, जिन्होंने आँकड़ों से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार को कड़ी चिट्ठी लिखी थी। उस पर चोटी के 100 से ज़्यादा अर्थशास्त्रियों ने दस्तख़त किए थे।
इस कमेटी में चार स्टैंडिंग कमेटियाँ होंगी। श्रमिकों, सेवा क्षेत्र, औद्योगिक डेटा असंगठित क्षेत्र के आँकड़े इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग कमेटियाँ होंगी। पहली बैठक 7 जनवरी को होगी।
ये कमेटियाँ तमाम क्षेत्रों का सालाना सर्वे करेंगी और उन नतीजों का अध्ययन करेंगी। यह भी ख्याल में रखा जाएगा कि एक कमेटी की रिपोर्ट दूसरी कमेटी की रिपोर्ट को न काटे, न ही, कहीं दुहराव हो।
इसके अलावा ये कमेटियाँ सर्वे करने सर्वे सैंपल तय करने, पायलट सर्वे, डाटा कलेक्शन का काम भी करेंगी।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह एक अच्छी शुरुआत है कि कम से कम सरकार ने यह तो माना कि इसके आँकड़ों पर लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं और सरकार लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश करती दिख रही है।
सरकार के आँकड़ों पर से विश्वास लोगों का यूं नहीं उठा है। केंद्र सरकार की सत्ता पर काबिज होने के बाद मोदी सरकार की आर्थिक मोर्चे पर आलोचना होनी शुरू हुई। उसके बाद उसने जो आँकड़े दिए, उस पर लगातार संदेह जताया गया। यह माना गया कि सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए जानबूझ कर ग़लत डेटा दे रही और लोगों को भ्रमित कर रही है।
बेरोज़गारी का आँकड़ा छुपाया
जनवरी 2019 में अंग्रेजी अख़बार बिजनेस स्टैंडर्ड ने बेरोज़गारी को लेकर एनएसएसओ की एक रिपोर्ट छापी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017-18 में बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा 6.1 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई है।रिपोर्ट के सामने आने के बाद ख़ासा हंगामा हो गया था। सरकार को घिरते देख नीति आयोग ने सफ़ाई देते हुए कहा था कि यह फ़ाइनल आँकड़े नहीं, ड्राफ़्ट रिपोर्ट है।
इस्तीफ़ा
नेशनल स्टटैस्टिक्स कमीशन के दो सदस्य पी. सी. मोहनन और जे. वी. मीनाक्षी ने सरकार के रवैए से दुखी हो कर इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि नोटबंदी के बाद बेरोज़गारी संबंधित उनकी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई थी।
यह पाया गया था कि साल 2017-18 के दौरान बेरोज़गारी में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गई थी और इसी कारण से आँकड़ा जारी नहीं किया जा रहा था।
लेबर ब्यूरो से मतभेद
22 फ़रवरी को इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर छापी थी कि बेरोज़गारी पर नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस (एनएसएसओ) के आँकड़ों को छुपाने के बाद केंद्र सरकार श्रम ब्यूरो के सर्वे के आँकड़ों को इस्तेमाल करने की योजना बना रही है।अख़बार के मुताबिक़, एक्सपर्ट कमेटी ने श्रम कार्यालय से कहा कि इस रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ियाँ हैं, वह इन्हें दुरुस्त कर ले। एक्सपर्ट कमेटी की ओर से रखे गए विचार को केंद्रीय श्रम मंत्री की ओर से स्वीकृति नहीं मिली है। लेकिन फिर आचार संहिता लागू हो गई और औपचारिक तौर पर यह फ़ैसला लिया गया है कि चुनाव के दौरान इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न किया जाए।
एनएसएसओ के बयान पर बवाल
एक और विवाद तब हुआ था जब राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफ़िस यानी एनएसएसओ के इस बयान से हुई कि सरकार ने जीडीपी की गणना करने के लिए आँकड़े जुटाने के लिए जो सर्वेक्षण किया, उनमें से 39 प्रतिशत कंपनियाँ फ़र्जी और बेनामी हैं, जिनका कोई वजूद ही नहीं है, वे सिर्फ़ काग़ज़ पर ही हैं। इस वजह से जीडीपी का आकलन ग़लत है।वित्त मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इससे इनकार किया है कि ग़लत आँकड़ों के इस्तेमाल कर जीडीपी का आकलन किया गया है। सरकार ने कहा है कि जिन कंपनियों के बारे में कहा गया है कि वे कवरेज एरिया से बाहर हैं, वे भी काम तो कर ही रही हैं।
सरकार ने कहा है कि जो बेनामी कंपनियाँ हैं, वे वजूद में हैं। यानी उनका योगदान अर्थव्यवस्था में है। पर अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि बेनामी यानी शेल कंपनियाँ सिर्फ़ काग़ज़ पर होती हैं, वे कोई काम नहीं करती हैं।
कुछ दिन पहले तक भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमणियन ने जीडीपी के ताज़ा सरकारी आँकड़ों पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था, ‘जीडीपी वृद्धि के नए आँकड़ों से मैं हैरत में हूँ। इसके मुताबिक, 2012-13 के 4.7-5.1% से 2013-14 में 5-6.9% हो गया। इसका मतलब यह है कि 2013-14 में जीडीपी बढ़ने की रफ़्तार 1.9 प्रतिशत रही।’
अमेरिकी कंपनी मॉर्गन स्टेनली इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट के वरिष्ठ अधिकारी रुचिर शर्मा ने 22 फरवरी, 2015, को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक ब्लॉग लिख कर भारत सरकार के आँकड़ों की विश्वसनीयता पर संदेह जताया था। उन्होंने लिखा था:
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जीडीपी वृद्धि दर में नाटकीय बढ़ोतरी बुरा मजाक है, इससे भारत की विश्वसनीयता ख़त्म हो गई और अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकी जगत में भारत का सांख्यिकी विभाग मजाक का पात्र बन कर रह गया।
रुचिर शर्मा, मॉर्गन स्टेनली इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट
उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा, ‘कॉरपोरेट करों में मामूली बढ़त से लेकर आयात, कर्ज़, रेल माल भाड़ा और ऑटो बिक्री में बढ़ोतरी के दावों से लगता है कि वास्तव में इससे काफी कम विकास हुआ है और वह पहले की तरह 5 प्रतिशत के आसपास ही है।’
मशहूर अर्थशास्त्री धीरज नय्यर ने एक लेख में इस पर चिंता जताते हुए कहा था, यदि भारत आर्थिक सुपरपावर बनने के लिए गंभीर है तो उसे विश्व स्तरीय सांख्यिकी प्रणाली विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। अच्छे आँकड़ों का स्वागत है। पर सही डाटा अनिवार्य है।
तो सवाल यह उठता है कि क्या सरकार अपनी इमेज मेकओवर की कोशिश में है?