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सरकार बतायेगी खबर सच है या झूठ, मीडिया संगठनों ने की आलोचना

सरकार बतायेगी खबर सच है या झूठ, मीडिया संगठनों ने की आलोचना

जनवरी में जब यह प्रस्ताव आया था तब इसकी खूब आलोचना हुई थी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसका संदर्भ लेते हुए कहा था कि फेक न्यूज तय करने का अधिकार सरकार के हाथों में नहीं दिया जा सकता, इससे प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा पैदा होगा

तमाम आलोचनाओं और चिंताओं के बीच केंद्र सरकार ने गुरुवार को आईटी एक्ट 2021 को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही अब सरकार को फेक न्यूज तय करने का अधिकार मिल गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय एक फैक्ट चेकिंग यूनिट का गठन करेगा जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर चल रही खबरों के फेक न्यूज होने का निर्धारण करेगा। इसमें वेबसाइटों के साथ फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को भी शामिल किया गया है, जो खबरों के प्रसारण के लिए बड़े मंच हैं। 

फैक्ट चेकिंग यूनिट द्वारा फैक्ट चेक में फेक/ मिसलीडिंग ठहराई गई किसी भी सामग्री को सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाना पड़ेगा। ऐसा न करने पर उन्हें थर्ड पार्टी के खिलाफ मिला सेफ हार्बर खतरे में पड़ सकता है।  

अंतिम मसौदे से पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जनवरी में इसका ड्राफ्ट पेश किया गया था। इसमें प्रस्ताव दिया गया था कि सरकार द्वारा गठित फैक्ट चेकिंग बॉडी द्वारा किसी भी खबर को फेक बताये जाने के बाद उसे डिजिटल मीडिया के सभी प्लेटफार्म से हटाना पड़ेगा। पहले के प्रस्ताव में यह कार्य पीआईबी द्वारा किये जाने की बात कही गई थी, लेकिन अंतिम मसौदे में पीआईबी का नाम हटा दिया गया है।

जनवरी में जब यह प्रस्ताव आया था तब इसकी खूब आलोचना हुई थी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसका संदर्भ लेते हुए कहा था कि फेक न्यूज तय करने का अधिकार सरकार के हाथों में नहीं दिया जा सकता, इससे प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा पैदा होगा। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने भी जनवरी में प्रस्तावित मसौदे की आलोचना की थी और सरकार से इसे वापस लेने का आग्रह किया था। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने भी इसके पीछे प्रेस की स्वतंत्रता का हवाला दिया था।

मंत्रालय द्वारा बनाए गये अंतिम नियमों के अनुसार फैक्ट चेकिंग इकाई द्वारा फेक/भ्रामक ठहराई गई सामग्री को बेवसाइट के अलावा फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लागू होगा। सरकार ने इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों  एयरटेल, जियो और वोडाफोन-आइडिया से भी अनुरोध करेगी कि वह केंद्र सरकार के खिलाफ पोस्ट की जाने वाली सामग्री को होस्ट न करने के लिए उचित प्रयास करे।

इस मसले पर सिविल सोसायटी समूहों और पत्रकार समूहों द्वारा इस फैसले की आलोचना की जा रही है। दिल्ली स्थित इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने एक बयान में कहा, "संशोधित नियम अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार को कम करता है, जिसका असर न्यूज चैनलों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं पर गंभीर रूप से पड़ेगा।

सरकार द्वारा नए आईटी एक्ट के प्रावधानों पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तरफ से भी आलोचना की गई है। गिल्ड ने नए कानूनों के लागू किये जाने के मसले पर एक पत्र लिखकर अपनी चिंता व्यक्त की है। EGI ने अपने पत्र में लिखा कि हम इस बात से बहुत परेशान हैं कि फैक्ट चेकिंग यूनिट का गठन का सरकार खुद ही करेगी। सरकार द्वारा गठित यह इकाई तय करेगी कि क्या सही है और क्या गलत। इस निर्णय से प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा पैदा हो गया है। अपने को काम को सही और गलत ठहराने का अधिकार सरकार ने खुद ही अपने आप को दे दिया है।    

इस कथित फैक्ट चेकिंग यूनिट की कार्य पद्धति क्या होगी, इसके खिलाफ न्यायिक अधिकार क्या होंगे, तथा राइट टू अपील की क्या प्रक्रिया होगी, तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में तय की गईं गाइडलाइन का क्या होगा, इन तमाम मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया है। यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है और एक तरह की सेंसरशिप है।

फैक्ट चेक यूनिट सोशल प्लेटफॉर्म तथा इंटरनेट के दूसरे अन्य स्टेक होल्डर्स को कभी भी और किसी भी सामग्री को हचाने के आदेश जारी कर सकती हैं, जबकि आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69 ए के तहत वैधानिक रूप से निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार कर सकती है।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार समर्थित फैक्ट चेकिंग बॉडी प्रभावित समूहों की चिंताओं को दूर करने के लिए विश्वसनीय तरीके से काम करेगा। उन्होंने कहा, 'जब हम एजेंसी को अधिसूचित करेंगे तो हम बहुत स्पष्ट होंगे कि लोगों के मन में किसी भी संदेह का समाधान किया जाये और उन्हें समझा सकें कि सरकार की तरफ से सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। फैक्ट चेकिंग इकाई के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची बनाई जाएगी, जिसका उसे पालन करना होगा।

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