छवि ख़राब करने के लिए बेबुनियाद आरोप लगा रहा है ईडी : कपिल सिब्बल
क्या प्रवर्तन निदेशालय ग़लत तरीके से मशहूर वकील कपिल सिब्बल, इंदिरा जयसिंह और दुष्यंत दवे को फँसा रही है और पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया से उनके तार जोड़ रही है? वह भी तब ये तीनों लोग नागरिकता संशोधन क़ानून या एनसीआर के विरुद्ध चल रहे आन्दोलन से किसी रूप में जुड़े हुए नहीं हैं। क्या ऐसा कर ईडी इन वकीलों को बदनाम करने के साथ ही आन्दोलन की भी छवि खराब करने की कोशिश में है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि प्रवर्तन निदेशालय ने कहा है कि रीहैब फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने 120 करोड़ रुपए इस आन्दोलन में लगाए हैं।
ईडी के दावे
ईडी ने कहा है, ‘हमने पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया पर निगरानी रखी थी, हमने 73 बैंक खातों की पहचान की। इससे होने वाले लेन-देन की पड़ताल करने पर हमने पाया कि इसने सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलनों को 120 करोड़ रुपए दिए गए।’ईडी ने यह भी कहा कि पीएफआई के 27, आरएफ़आई के 9 और अलग-अलग लोगों के निजी 37 खातों की पड़ताल की। ये 17 बैंकों के खाते थे। प्रवर्तन निदेशालय ने इसके आगे कहा, पैसों के ये लेन-देन एईएफ़टी, आरटीजीएस, आईएमपीएस और नकद से हुए। जमा करने के एक- दो दिनों में ही ये पैसा निकाल लिए गए।
ईडी ने कहा है कि दिल्ली के नेहरू प्लेस के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामली, हापुड़, ग़ाज़ियाबाद, बहराइच, बिजनौर, डासना स्थित सिंडीकेट बैंक की शाखाओं से 41.50 करोड़ रुपए निकाल लिए गए। इन खातों में 27 करोड़ रुपए नकद जमा कराए गए थे।
कपिल सिब्बल का जवाब
ईडी का कहना है कि कपिल सिब्बल को 77 लाख, इंदिरा जयसिंह को 4 लाख और दुष्यंत दवे को 11 लाख रुपए मिले। कपिल सिब्बल ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है :
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'मैं कभी किसी मुवक्किल से नकद पैसे नहीं लेता, फ़ीस में जो पैसे लेता हूं, वह चेक के रूप में लेता हूं। यदि किसी ने पैसे ट्रांसफर किया हो तो उसकी रसीद उसे ज़रूर देता हूं।'
कपिल सिब्बल, मशहूर वकील
सिब्बल ने यह भी कहा है कि उन्होंने पीएफ़आई की ओर से कभी पैरवी नहीं की है, लिहाज़ा उससे पैसे लेने का कोई सवाल ही नहीं है।
इंदिरा जयसिंह का पलटवार
वकील इंदिरा जयसिंह ने पीएफ़आई से पैसे लेने से साफ़ इनकार कर दिया है। उन्होंने एक चिट्ठी ट्वीट कर कहा है, ‘मैंने कभी भी पीएएफ़आई से कोई पैसा नहीं लिया है। मैं पीएफआई या सीएए-एनआरसी के किसी आदमी से पैसे लेने से पूरी तरह इनकार करती हूं।’जयसिंह ने मानहानि का मामला दायर करने की चेतावनी भी दी है। उन्होंने कहा है :
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‘मेरी प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाने की किसी भी कोशिश पर मैं सिविल और आपराधिक मुक़दमा दायर कर सकती हूं। मुझे अफ़सोस है कि मीडिया के एक वर्ग ने मेरा पक्ष जाने बग़ैर और इसकी सत्यता की पड़ताल किए बग़ैर यह ख़बर चलाई है।’
इंदिरा जयसिेंह, मशहूर वकील
My statement denying receipt of money from PFI in relation to anti CAA protests or for any other reason or purpose whatsoever. @PTI_News @ZeeNews @ndtv @CNNnews18 @LiveLawIndia @barandbench @AltNews @scroll_in @thewire_in @the_hindu pic.twitter.com/HM1ECWDmxI
— Indira Jaising (@IJaising) January 27, 2020
पीएफ़आई ने इस पूरे मामले पर ईडी को ग़लत क़रार दिया है। उसने कहा है कि ईडी वित्तीय काग़ज़ात को ग़लत रूप से पेश कर रही है। उसने जो कुछ कभी पैसे दिए, वे हादिया केस में फ़ीस के रूप में दिए गए थे।
उठते हैं कई सवाल
सरसरी निगाह से देखने से ही साफ़ हो जाता है कि इस पूरे मामले में प्रवर्तन निदेशालय की मंशा तो ग़लत है ही, इस ख़बर पर भी भरोसा करना मुश्किल है। एआईएनएस ने कहा है कि उसे ईडी के सूत्रों ने बताया। लेकिन इतने बडे़ मामले की जानकारी ईडी गुपचुप किसी एक समाचार एजेन्सी को क्यों देगी, वह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सार्वजनिक तौर पर यह बात क्यों नहीं कहेगी, यह सवाल उठना लाजिमी है।ईडी यह नहीं बता रहा है कि ये पैसे खातों से कैसे निकाले गए। वह यह भी नहीं बता रहा है कि इस पैसे का सीएए विरोधी आन्दोलन से क्या रिश्ता है। इस आन्दोलन का कौन आदमी पैसे निकालता रहा और वह कैसे इस आन्दोलन पर वे पैसे खर्च करता रहा, इसकी कोई जानकारी नहीं है।
इसके अलावा यह भी साफ़ नहीं है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को यह कैसे पता चला कि 120 करोड़ रुपए सीएए-विरोधी आन्दोलन में लगाए गए हैं।
ईडी के कामकाज की खबर करने वाले या उस पर नज़र रखने वाले जानते हैं कि यह एजेंसी किसी आन्दोलन पर नज़र नहीं रखती है, क़ानून-व्यवस्था से जुड़े मामले गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं। सीएए पर नज़र रखना न तो ईडी के अधिकार क्षेत्र में है, न उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह इस पर नज़र रखे और न ही ऐसा करने के अनुभव या लोग उसके पास होते हैं। वह वित्तीय लेन-देन वगैरह पर नज़र रखती है, वह विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर नज़र रखती है।
पर ईडी ने यह तो बताया ही नहीं है कि इस आन्दोलन में पैसे विदेशी मुद्रा के रूप में लगाए गए हैं। ईडी कैसे इस निष्कर्ष पर पहुँची की 120 करोड़ रुपए सीएए-विरोधी आन्दोलन पर खर्च किए गए?
दूसरी अहम बात यह है कि पीएफआई का कार्य क्षेत्र दक्षिण भारत, ख़ास कर केरल है। उत्तर प्रदेश में भी उसके कार्यकर्ता फैले हुए हैं, इसकी जानकारी गृह मंत्रालय ने अब तक किसी को नहीं दी है। क्या गृह मंत्रालय ने कभी यह दावा किया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामली, हापुड़, ग़ाज़ियाबाद, बहराइच, बिजनौर, डासना में पीएफ़आई के लोग फैले हुए हैं।
क्या गृह मंत्रालय को यह पता है कि ये लोग बाकायदा बैंक खाते खुलवा कर पैसे डाल रहे हैं और पैसे निकाल रहे हैं और उसे इसकी भनक तक नहीं लगी?