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एक रात में ही उलट गई सरकार की गेहूं नीति

एक रात में ही उलट गई सरकार की गेहूं नीति

गेहूं निर्यात पर सरकार की दोगली नीति सामने आई है। एक तरफ उसने गेहूं निर्यात को बढ़ावा देने के लिए टास्क फोर्स बनाई तो दूसरी तरफ गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। 

रात गई और बात गई। 12 मई को सरकार ने गेहूं के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए टास्क फोर्स बनाने की घोषणा की थी। यह भी कहा गया था कि एक लिए एक प्रतिनिधिमंडल नौ देशों का दौरा करेगा। इसके पहले लगातार बताया जा रहा था कि यूक्रेन संकट के बाद भारतीय गेहूं की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है। लेकिन अगले ही दिन खबर आई कि कल रात तक जिस निर्यात को प्रोत्साहित किया जा रहा था, सुबह उस पर पाबंदी लगा दी गई।सरकार ने निर्यात के लिए जो टास्क फोर्स बनाया था उसमें रेल विभाग के लोग भी शामिल किए गए थे ताकि रेलवे द्वारा विभिन्न जगहों से गेंहूं को बिना किसी बाधा के बंदरगाहों तक पहुंचाया जा सके। तभी पता पड़ा कि रेलवे ने अचानक ही गेहूं के लिए भाड़ा बढ़ा दिया है। हालांकि इससे अंदाज नहीं लग सका था कि प्रोत्साहन योजना उलटी दिशा में जा रही है।

इस बार दुनिया के जो हालात हैं उनमें गेहूं निर्यात के लिए संभावनाएं बन रही हैं यह निजी क्षेत्र को काफी समय से समझ आ रहा था। उसने उंचे दामों पर बड़े पैमाने पर गेंहूं की खरीद भी कर ली थी। इस चक्कर में सरकारी खरीद काफी कम हो गई। लक्ष्य से 40-45 फीसदी तक नीचे आ गई। पहली बार ऐसा हुआ है कि फसल के मौसम में जितना सरकार का स्टाॅक है गेहूं की नई खरीदारी उससे भी कम हुई है। फिर इस साल मार्च में अचानक आई गरमी ने गेहूं का उत्पादन भी कम कर दिया। सरकार ने इस कमी का कोई आकलन पेश नहीं किया है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह कमीं 15 से 20 फीसदी तक भी हो सकती है।

हालांकि ये सब वे चीजें थीं जिनका सरकार को पहले से अंदाज था। नई चीज यह हुई कि 12 मई को जब निर्यात प्रोत्साहन की बातें हो रहीं थीं उसी दिन महंगाई के आंकड़े आए और पता चला कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर पिछले आठ साल के सबसे उंचे स्तर पर पहंुच गई है। इसी दिन कुछ अखबारों ने आटे और डबलरोटी के बढ़ते दामों की चर्चा भी शुरू कर दी थी। इस सिलसिले के बहुत आगे तक जाने की आशंकाएं भी उछलने लगी थीं। सरकार कीमतों पर काबू पाने की कोशिश कर रही है यह दिखाने के लिए अब गेहूं के निर्यात पर पाबंदी का ही अकेला रास्ता बचा था।

हालांकि सिर्फ निर्यात रोक कर ही कीमतों को बढ़ने से रोका जा सकेगा इसकी उम्मीद बहुत ज्यादा नहीं है। निर्यात के लालच में जिन कंपनियों ने गेहूं का बड़ा स्टाॅक जमा कर लिया है वे उसे बाजार में डालने के बजाए फिलहाल तो पाबंदी हटाने के लिए लाॅबींग करना ही पसंद करेंगे। यह काम शुरू भी हो गया है।

उत्पादन भी कम हुआ है और सरकारी खरीद भी इसलिए बहुत कुछ अब सरकार की उस गरीब कल्याण योजना पर निर्भर करेगा जिसके तहत देश में 80 करोड़ लोगों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। देखना होगा कि सरकार अब इस योजना को कितने समय तक चलाती है। और क्या वह इसे लंबे समय तक चलाने के लिए बफर स्टाॅक कम होने का जोखिम भी लेती है?

अगर सरकार इस योजना को चलाने के लिए खुले बाजार से खरीदारी करती है तो बाजार में भाव फिर बढ़ना शुरू हो सकते हैं। और अगर सरकार योजना को बंद करती है या उसमें कुछ बदलाव करती है तो अभी तक जिन लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है वे खुद बाजार में खरीदने पहुंचेंगे और इसका भी नतीजा वही हो सकता है। फिलहाल उम्मीद यही है कि सरकार किसी भी कीमत पर इस योजना को साल 2024 तक तो चलाना चाहेगी ही। 

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