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टीके के बाद ख़ून का थक्का जमने के केस मामूली: सरकारी रिपोर्ट

टीके के बाद ख़ून का थक्का जमने के केस मामूली: सरकारी रिपोर्ट

यूरोपीय देशों के बाद अब भारत में भी कुछ ऐसे मामले आए हैं जिसमें कोरोना टीके लगाने के बाद ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने की शिकायतें हैं। यह बात सरकारी पैनल ने ही कही है।

यूरोपीय देशों के बाद अब भारत में भी कुछ ऐसे मामले आए हैं जिसमें कोरोना टीके लगाने के बाद ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने की शिकायतें हैं। यह बात सरकारी पैनल ने ही कही है और ख़ुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ही इसकी जानकारी दी है। टीकाकरण के बाद विपरीत प्रभावों पर नज़र रखने वाले पैनल ने कहा है कि कोविड वैक्सीन के बाद रक्तस्राव और थक्के जमने के मामले मामूली हैं और ये उपचार किए जाने के अपेक्षा के अनुरूप हैं। 

पैनल ने कहा है कि उसने 700 में से 498 'गंभीर मामलों' का अध्ययन किया और पाया कि केवल 26 मामले थ्रोम्बोम्बोलिक मामले के रूप में रिपोर्ट किए गए थे। इसको आम भाषा में कह सकते हैं कि ख़ून के थक्के जमने के इतने घातक मामले आए थे। 

पैनल ने आगे कहा कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन कोविशील्ड के कुछ केसों से ख़ून का थक्का जमने का मामला जुड़ा हुआ है। इसने कहा कि प्रति मिलियन खुराक में ख़ून के थक्के जमने के 0.61 से भी कम मामले आए हैं।  पैनल ने यह साफ़ किया है कि भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन में कोई भी ऐसा मामला अभी तक सामने नहीं आया है। 

पैनल ने यह गौर किया है कि यह आँकड़ा इंग्लैंड के स्वास्थ्य नियामक द्वारा रिपोर्ट किए गए प्रति मिलियन खुराक के चार मामलों और जर्मनी द्वारा रिपोर्ट किए गए प्रति मिलियन खुराक में आए 10 मामलों से काफी कम है।

बता दें कि इसी साल मार्च में एक समय ऐसा था जब एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन लगाने के बाद ख़ून के थक्के जमने को लेकर यूरोप के कई देशों ने वैक्सीन पर रोक लगा दी थी। स्वास्थ्य संगठन और यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी यूएमए द्वारा बार-बार एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को सुरक्षित बताए जाने के बाद भी जर्मनी, इटली, फ्रांस, डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लातविया जैसे देशों ने तात्कालिक तौर पर रोक लगाई थी। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है और इसे पूरी तरह सुरक्षित और कोरोना के ख़िलाफ़ प्रभावी बताया है।

डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा था, 'हम नहीं चाहते हैं कि लोग घबराएँ और हम फ़िलहाल यह सलाह देते हैं कि देश एस्ट्राजेनेका के साथ टीकाकरण जारी रखें।'

 - Satya Hindi

हालाँकि जब यूरोप कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर का सामना कर रहा था तो कई प्रमुख देशों ने एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को फिर से शुरू करने की बात कही थी। इन देशों का यह फ़ैसला तब आया था जब यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी ईएमए ने जोर देकर कहा था कि एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित व प्रभावी है और इससे ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून जमने का कोई ख़तरा नहीं है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बार-बार दोहराया कि वैक्सीन नहीं लेने से बेहतर है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन ली जाए। 

भारत में टीकाकरण के बाद विपरीत प्रभावों पर नज़र रखने वाले पैनल ने कहा है कि ख़ून के थक्के जमने की ऐसी दिक्कतें यूरोप से 70 फ़ीसदी कम दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में आ रही हैं।

फिर भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को संदिग्ध थ्रोम्बोम्बोलिक मामलों के बारे में जागरूक करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए टीकाकरण अधिकारियों को सलाह जारी की है। इसमें कहा गया है कि ध्यान देने योग्य लक्षणों में साँस फूलना, छाती या अंगों में दर्द, कई छोटे आकार के लाल धब्बे या इंजेक्शन की जगह के अलावा दूसरी जगहों पर त्वचा पर चोट जैसे निशान और लगातार पेट दर्द (उल्टी के साथ या बिना) शामिल हैं।

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