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जो शिक्षा, कृषि नीति में हुआ वही दूरसंचार नीति में भी होगा!

जो शिक्षा, कृषि नीति में हुआ वही दूरसंचार नीति में भी होगा!

अगले 10 साल के लिए देश की स्पेक्ट्रम नीति तय हो रही है, दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियाँ नाराज़ हैं कि उनकी राय नहीं ली जा रही है। 

देश की शिक्षा नीति और कृषि सुधार जिस दिशा में गए हैं अब देश की दूरसंचार नीति भी उसी दिशा में जाती दिख रही है। नई शिक्षा नीति जिस समय जारी की गई उस समय दबी जबान से ही सही, ऐसे बहुत से सुर उठे थे कि इसे बनाने में सभी हितधारकों यानी स्टेकहोल्डर्स की राय नहीं ली गई।

कृषि सुधारों के नाम पर बने तीन क़ानूनों में भी यही बात सामने आई। नतीजा यह है कि लगभग डेढ़ महीने से किसान संगठन दिल्ली को घेरे बैठे हैं। और अब जब अगले 10 साल के लिए देश की स्पेक्ट्रम नीति तय हो रही है, दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियाँ नाराज़ हैं कि उनकी राय नहीं ली जा रही है। 

स्पेक्ट्रम नीति

स्पेक्ट्रम नीति तय करने के लिए स्टेकहोल्डर्स के साथ निर्णायक विमर्श यानी की-कंसल्टेशन की जो प्रक्रिया 6 जनवरी से शुरू हुई है, उसमें गूगल, फेसबुक, इंटेल, क्वालकॉम जैसी टेक कंपनियों को बुलाया गया है। लेकिन एयरटेल, रिलायंस जियो और वोडाफ़ोन, आईडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों को आमंत्रित नहीं किया गया। 

इसके लिए सरकार ने यह तर्क दिया है कि उन्हें अलग-अलग कंपनियों को आमंत्रित करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनके प्रतिनिधि संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर ऐसोसिएशन ऑफ़ इंडिया यानी सीओएआई को इसमें आमंत्रित किया गया है। 

 - Satya Hindi

हालांकि इस मामले में दिलचस्प बात यह है कि जिन टेक कंपनियों को इसमें आमंत्रित किया गया है उनका भी एक संगठन है ब्राडबैंड इंडिया फोरम, जिसके तहत ये सारी कंपनियाँ पिछले काफी समय से स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाने की वकालत करती रही हैं। लेकिन उनके संगठन को बुलाने के बजाए उन्हें अलग-अलग बुलाया गया है। 

सरकार से बातचीत

सीओएआई ही ऐसी महत्वूपर्ण बातचीत में उनका प्रतिनिधित्व करें, यह खुद कईं दूरसंचार कंपनियाँ भी नहीं चाहतीं। कारण यह भी है कि कई अहम मुद्दों पर इन कंपनियों में ख़ासे मतभेद हैं, ख़ासकर रिलायंस और बाकी दोनों दूरसंचार कंपनियों के बीच। 

यह सारा विवाद पिछले पाँच- छह महीने से चल रहा है। टेक कंपनियाँ चाहती हैं कि स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाया जाए। वे ख़ासकर इस बात को लेकर लाबीइंग कर रही हैं कि 'ई' और 'वी' बैंड के स्पेक्ट्रम को लाइसेंस मुक्त कर दिया जाए।

इन दोनों बैंड का स्पेक्ट्रम उन जगहों पर इंटरनेट पँहुचाने में महत्वपूर्ण हो सकता है, जहाँ फ़ाइबर नेटवर्क नहीं है। 

पिछले कुछ समय में सरकार बहुत हद तक उनसे राजी होती भी दिख रही है। इस समय चल रहे विमर्श में 'ई' बैंड के स्पेक्ट्रम को उदार बनाने और 'वी' बैंड के स्पेक्ट्रम को लाईसेंसमुक्त करने का प्रस्ताव खुद दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की तरफ से ही रखा गया है। 

सरकार को नुक़सान

दूरसंचार कंपनियाँ इसका विरोध इसलिए कर रही हैं कि जिस स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए उन्होंने करोड़ों रुपये खर्च किए, और उसके लिए सरकार से रेवेन्यू शेयरिंग भी की, उसे अब मुफ़्त बाँटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 

इन दूरसंचार कंपनियों ने कहा था कि अगर ऐसा होता है तो देश को अरबों रुपये का नुक़सान होगा। उनका यह भी आरोप था कि विदेशी टेक कंपनियाँ बिना संचार का कोई लाईसेंस लिए पिछले दरवाजे से इस कारोबार में घुस रही हैं।

क्या कहना है टेक कंपनियों का?

टेक कंपनियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाने से पूरे भारत में डाटा की उपलब्धता बढ़ेगी और डाटा सेवाओं की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा। 

दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि ये टेक कंपनियाँ अगर अपने बाज़ार को बढ़ाने के लिए ज़ोर लगा रही हैं तो दूरसंचार कंपनियाँ बाज़ार पर अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए जुटी हैं। 

दूरसंचार बाज़ार में इस तरह की खींचतान हमेशा से ही चलती रही है, लेकिन इसमें एक चीज और जुड़ गई है- नीति  तय करने में सरकार का मनमाने ढंग से पेश आना। जो शिक्षा और कृषि नीति में हुआ वही दूरसंचार नीति में भी हो रहा है। 

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