सरकार सुप्रीम कोर्ट से बोली, हमने ऐसा तो नहीं कहा था
केद्र सरकार ने रफ़ाल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में हुई 'टाइपिंग की एक ग़लती' की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा है। सरकार ने कोर्ट से आग्रह किया है कि फ़ैसले में छपी इस ग़लती को सुधार लिया जाए क्योंकि टाइपिंग की इस ग़लती के कारण यह ग़लत संदेश निकल रहा है कि सीएजी ने रफ़ाल मामले पर अपनी रिपोर्ट दे दी है और लोक लेखा समिति यानी पीएसी ने इस रिपोर्ट की जाँच कर ली है जबकि सच इसके विपरीत है।
फ़ैसले में छपी इस ग़लत सूचना के कारण ही विपक्ष फ़ैसला आने के बाद से ही आक्रामक हो गया था और उसने सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने कोर्ट को भ्रामक सूचना दी। अब सरकार ने एक हलफ़नामे के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि फ़ैसले में जो छपा है, वैसी जानकारी तो उसने दी ही नहीं। उसने कभी नहीं कहा कि सीएजी की रिपोर्ट आ गई है और पीएसी ने उसकी जाँच कर ली है। हलफ़नामे के अनुसार सारी गड़बड़ी is यानी ‘है’ को has been यानी ‘गई है’ लिखने और समझने के कारण हुई।
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सरकार का कहना है कि हमने कोर्ट को जो नोट प्रस्तुत किया था, उसमें लिखा था, ‘सरकार ने सौदे की क़ीमत संबंधी जानकारियाँ सीएजी के साथ शेयर की हैं। सीएजी की रिपोर्ट की जाँच पीएसी द्वारा की जाती है (The Government has already shared the pricing details with the CAG. The report of the CAG is examined by the PAC)। लेकिन कोर्ट के फ़ैसले में जाँच की जाती है के बदले जाँच की गई है (the report of the CAG has been examined by the PAC) छप गया है।सरकार ने कहा है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की जाती है कि फ़ैसले के पैराग्राफ़ 25 में निम्नलिखित सुधार कर लिया जाए ताकि अदालत के फ़ैसले से किसी तरह का संदेह या ग़लतफ़हमी पैदा न हो।
कांग्रेस हुई थी आक्रामक
आपको याद होगा कि अदालती फ़ैसले के इस हिस्से के कारण कांग्रेस ने शुक्रवार से ही काफ़ी आक्रामक रुख अपनाया हुआ था। उसका कहना था कि सीएजी की रिपोर्ट तो जनवरी में आनी है तो फिर पीएसी ने कौनसी रिपोर्ट है, जिसकी जाँच कर ली। चूँकि पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ख़ुद ही कांग्रेसी है सो उनका सवाल था कि जब मैं पीएसी का अध्यक्ष हूँ तो मेरी जानकारी के बिना सीएजी की रिपोर्ट किसके पास आई और कैसे जाँच ली गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार ने कोर्ट को ग़लत जानकारी दी है ताकि कोर्ट यह समझ ले कि जब सीएजी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और पीएसी ने उसे जाँच भी लिया है, तब फिर क़ीमत सही ही होगी। लेकिन जैसा कि अब पता चला है, सरकार ने ऐसी कोई सूचना नहीं दी थी और शायद कोर्ट ने ही सरकारी नोट का ग़लत अर्थ निकाल लिया।फ़ैसले की बुनियाद ही ख़त्म
लेकिन अब एक नया पेच फँसता है। अदालत ने सरकार को ‘क्लीन चिट’ देने का अपना फ़ैसला इस आलोक में दिया था कि सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी ने जाँच-परख लिया है। अदालत को लगता है कि जब संसद की एक समिति ने ख़ुद मामले की जाँच कर ली है तो इस मामले में अदालत के पड़ने का कोई कारण नहीं बनता है। लेकिन अब अगर सरकार ही यह बात कह रही है कि रफ़ाल जहाज़ की क़ीमत से जुड़ी जानकारी सीएजी को दी गई तो यह बात साफ़ हो जाती है कि न सीएजी और न ही लोक लेखा समिति ने इस मामले की कोई जाँच-पड़ताल की है।अब यह अदालत को तय करना है कि जिस मामले की जाँच न सीएजी ने की, न ही सीएजी की रिपोर्ट की पड़ताल पीएसी ने की तो फिर क्या क़ीमत के मामले में सरकार को क्लीन चिट देने वाले अदालती फ़ैसले की बुनियाद ही ख़त्म नहीं हो जाती!
अदालत को यह भी तय करना है कि क्या वह अपने दिए फ़ैसले पर कायम रहेगी या उस पर नए सिरे से विचार करेगी, क्योंकि सरकार के शपथ पत्र में भले ही व्याकरण दुरुस्त करने का आग्रह किया गया हो, दरअसल सारा मामला ही अब उलटा-पुलटा हो गया है।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा था कि सरकार ने रफ़ाल लड़ाकू विमान की क़ीमत का ब्योरा कंप्ट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) को दिया था और उसकी जाँच लोक लेखा समिति (पीएसी) द्वारा की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर शुक्रवार को उस याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसमें माँग की गई थी कि रफ़ाल सौदे की जाँच सीबीआई या स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम से अदालत की निगरानी में कराई जाए। इसके बाद सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लोग राहुल गाँधी पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए उनसे माफ़ी माँगने को कहने लगे।
लेकिन राहुल गाँधी ने पलटवार करते हुए सरकार पर ही झूठ बोलने और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के आरोप जड़ दिए। उन्होंने कहा कि सीएजी ने कोई रिपोर्ट पीएसी को नहीं सौपी है। पीएसी के प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पीएसी में ऐसी कोई रिपोर्ट दाख़िल नहीं की गई है। उन्होंने दावा किया कि इस मुद्दे पर उन्होंने डिप्टी सीएजी को तलब किया था। डिप्टी सीएजी ने ऐसी किसी रिपोर्ट से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता संजय सिंह ने शनिवार को ही एलान कर दिया कि वे सोमवार को लोकसभा में इस मुद्दे पर विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाए्ँगे।
अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार के स्पष्टीकरण से तय हो गया कि क़ीमत के मामले में अभी कोई जाँच नहीं हुई तो क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करेगा और अपने ही फ़ैसले को ही उलट देगा या सीएजी की रिपोर्ट का इंतज़ार करेगा? आने वाले दिनों में यह बात साफ़ हो जाएगी।