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यूपी में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, गोंडा में तीन बहनों पर एसिड हमला

यूपी में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, गोंडा में तीन बहनों पर एसिड हमला

उत्तर प्रदेश के गोंडा में तीन दलित बहनों पर एसिड हमला कर दिया। सवाल है कि आख़िर तमाम प्रयासों के बावजूद एसिड के हमले क्यों नहीं रुक रहे हैं? उत्तर प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध क्यों कम नहीं हो रहे हैं?

एसिड को लेकर नये सख़्त क़ानून आने के बावजूद एसिड हमले रुक नहीं रहे हैं। ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के गोंडा में तीन दलित बहनों पर एसिड हमले का है। तीनों बहनें जब सो रही थीं तब ऊपर से किसी ने एसिड फेंक दिया। दो बहनें मामूली रूप से झुलसी हैं जबकि तीसरी का चेहरा ज़्यादा झुलस गया है। आम आदमी पार्ट के नेता संजय सिंह ने इस मामले को उठाया। उन्होंने एसिड फेंके जाने की ख़बर को ट्वीट किया।

 - Satya Hindi

गोंडा में तीन बहनों पर एसिड फेंके जाने की घटना परसपुर थाना क्षेत्र के पसका परसपुर की है। एसिड किसने फेंका और क्यों फेंका इस बारे में अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। वैसे, ऐसे अनगिनत मामले हैं जिनमें एसिड फेंकने वाले का पता चला, सज़ा भी हुई। कई मामलों ने तो इतना तूल पकड़ा कि देश के क़ानून तक में बदलाव किया गया, इसकी अनाधिकृत बिक्री पर रोक लगाई गई, लेकिन एसिड फेंके जाने के मामले कम नहीं हुए। यानी नियम-क़ायदे कागजों में ही सिमटकर रह गए। 

इसी कारण एसिड फेंकने की ऐसी घटनाएँ तो क़रीब-क़रीब हर रोज़ आती रहती हैं। कभी किसी के ऊपर शादी का प्रस्ताव न मनाने पर एसिड फेंक दिया जाता है, तो कभी किसी पर आपसी रंजिश के चलते। ऐसा ही एक चर्चित मामला पिछले साल अगस्त में बिहार में आया था। 

बिहार में 16 लोगों पर तेज़ाब फेंका था

बिहार के वैशाली ज़िले में पिछले साल अगस्त में दबंगों ने एक परिवार के 16 लोगों पर इसलिए तेज़ाब फेंक दिया था क्योंकि उन्होंने अपने परिवार की एक महिला से छेड़छाड़ का विरोध किया था। घटना में 8 लोग बुरी तरह झुलस गए थे। उस घटना के बाद वैशाली जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी राघव दयाल ने कहा था कि हमलावरों की संख्या 20 थी और वे पीड़ित परिवार को सबक़ सिखाने के इरादे से आये थे। बताया जा रहा था कि गाँव के ही कुछ युवक इस परिवार की एक महिला को बीते कुछ दिनों से तंग कर रहे थे और इस पर पीड़ित परिवार ने उन्हें फटकार भी लगाई थी। 

हमला झेलने वाली लक्ष्मी ने चलाई मुहिम

साल 2005 में ख़ान मार्केट के पास लक्ष्मी अग्रवाल पर बदमाशों ने तेज़ाब फेंक दिया था। सिंगर बनने का सपना देखने वाली लक्ष्मी की ज़िंदगी में अंधेरा छा गया। घटना के बाद वह निराश ज़रूर हुईं लेकिन ज़िंदगी के आगे हार नहीं मानी। दूसरी लड़कियाँ या लोग एसिड का शिकार न हों इसके लिए उन्होंने मुहिम शुरू की। हमले के एक साल बाद लक्ष्मी ने कोर्ट में एसिड पर प्रतिबंध लगाने के लिए पीआईएल दाखिल की थी। 

एसिड हमलों को रोकने के लिए अभियान चलाने और एसिड हमले की पीड़िताओं की आवाज़ बनने के लिए लक्ष्मी अग्रवाल को ‘इंटरनेशनल वुमेन ऑफ़ करेज’ से सम्मानित भी किया गया।

जब एसिड हमले के मामले में दबाव बढ़ा तो सरकार ने अपराध क़ानून संशोधन एक्ट 2013 के ज़रिये भारतीय दंड संहिता में कुछ प्रावधानों को जोड़ा। आईपीसी की धारा 326ए के अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर नुक़सान पहुँचाने के इरादे से एसिड फेंका गया और पीड़ित जख्मी हुआ तो यह ग़ैर जमानती अपराध की श्रेणी में आयेगा। इसके दोषी को कम से कम 10 साल की सज़ा और अधिकतम उम्रकैद के साथ जुर्माने का प्रावधान है।

एसिड हमले के प्रयास पर सज़ा

इसके साथ ही आईपीसी की धारा 326बी भी जोड़ी गई। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर घायल करने के उद्देश्य से एसिड फेंकने का प्रयास करता है तो यह भी गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में आता है, इसके तहत दोषी के लिए कम से कम 5 साल की सजा के साथ जुर्माने का भी प्रावधान है।

एसिड अटैक अपने आप में एक अलग तरह का अपराध है। लेकिन पहले तो एसिड हमले के मामले में आईपीसी की धारा में कोई अलग प्रावधान नहीं था। आईपीसी की धारा 326 यानी 'गंभीर रूप से जख्मी करना' के तहत ही केस दर्ज किया जाता था। 2013 के बाद ही आईपीसी की धारा 326 में कुछ बदलाव हुए और 326ए और 326बी अस्तित्व में आया।

अपराध क़ानून संशोधन एक्ट 2013 में उपधारा 357बी और उपधारा 357सी भी जोड़ी गयी हैं। ये उप धाराएँ एसिड हमले की पीड़िता को राज्य सरकार की तरफ़ से मुआवज़ा देने से जुड़ी हैं।

यह मुआवज़ा धारा 326ए के तहत मिलने वाली जुर्माना राशि के अतिरिक्त होगा। साथ में सरकार को पीड़िता को निशुल्क मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध करानी होगी।

लक्ष्मी अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसिड हमले से पीड़िता की निजी, सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगी पर काफ़ी असर पड़ता है और इस तरह के पीड़ित के लिए 3 लाख रुपये की मदद काफ़ी कम है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 लाख रुपये के मुआवजे को बढ़ा कर 6 लाख रुपये कर दिया था।

एसिड की बिक्री पर गाइडलाइंस

साल 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने एसिड बिक्री को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे ऐसिड की बिक्री को नियंत्रित करने के लिए क़ानून बनाएँ। लक्ष्मी अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एसिड की बिक्री के लिए गाइडलाइन जारी की थीं

  • एसिड की बिक्री उसी दशा में होगी जब विक्रेता खरीददार के संबंध में सारी जानकारी एक रिकॉर्ड में दर्ज़ करेगा। 
  • विक्रेता उसी दशा में एसिड की बिक्री करेगा जब खरीददार खुद उसके सामने हो। 
  • खरीददार को एक फोटोयुक्त आईडी कार्ड भी प्रस्तुत करना होगा। साथ ही उसे एसिड खरीदने का कारण भी स्पष्ट करना होगा।
  • विक्रेता को भी एसिड स्टॉक के संबंध में जानकारी 15 दिनों के भीतर ही एसडीएम के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी। 
  • स्टॉक की जानकारी में गड़बड़ी पाये जाने पर विक्रेता पर 50 हज़ार रुपये तक का जुर्माना भी लग सकता है। 
  • विक्रेता द्वारा किसी नाबालिग को एसिड की बिक्री करना गैर-कानूनी है।

मुंबई: मौत की सज़ा भी मिली थी

एसिड हमले के एक मामले में एक दोषी को मौत की सजा भी सुनाई गई थी। एसिड हमले का यह मामला था साल 2013 का। प्रीति राठी नाम की युवती पर एसिड से तब हमला किया गया था जब वह बांद्रा टर्मिनस के प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी थीं। राठी का चयन भारतीय नौसेना के कोलाबा स्थित आईएनएस अश्विनी अस्पताल में लेफ्टिनेंट के पद पर हुआ था। वह नौकरी के लिए मुंबई गई थीं। भीषण दर्द के बाद प्रीति ने अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी, चेहरा बुरी तरह झुलस गया था। उनका सीना, फेफड़े, उनकी साँस लेने और खाने की नली भी बुरी तरह प्रभावित हुए थे। साल 2016 में एक विशेष महिला अदालत ने दोषी अंकुर नारायणलाल पंवार को मौत की सज़ा सुनाई थी। हालाँकि बाद में हाई कोर्ट ने मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

यह पहला ऐसा मामला था, जिसमें एसिड हमले के आरोपी को दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा दी गई थी। 

हालाँकि इस सबके बावजूद एसिड हमले नहीं रुके। कारण यह बताया जाता है कि एसिड बिक्री की न तो गाइडलाइंस का सही से पालन होता है और न ही राज्य सरकारों ने इस मामले में गंभीरता दिखाई। इसी का नतीजा है कि आज भी एसिड से हमले के मामले जब तब सामने आते रहे हैं।

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