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गोगोई का पलटवार, कहा- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लॉबी से ख़तरा

गोगोई का पलटवार, कहा- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लॉबी से ख़तरा

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राज्यसभा के अपने मनोनयन के विरोधियों पर पलटवार करते हुए ज़बरदस्त हमला बोला है।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राज्यसभा के अपने मनोनयन के विरोधियों पर पलटवार करते हुए ज़बरदस्त हमला बोला है। 

उन्होंने विरोधियों की तरह ही न्यायपालिका की आज़ादी को मुद्दा बनाया है। गोगोई ने कहा है कि न्यायपालिका की आज़ादी को ख़तरा उस लॉबी से है, जो अपनी मनमर्जी का फ़ैसला नहीं आने पर न्यायपालिका को बदनाम करने लगता है। 

पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा, 'न्यायपालिका की आज़ादी का मतलब है आधा दर्जन लोगों की लॉबी की पकड़ को तोड़ना। इस लॉबी की जकड़न को तोड़े बिना न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो सकती। वे जजों को बंधक बनाए हुए हैं।'

गोगोई ने कहा : 'यदि किसी मामले का फ़ैसला उनके मुताबिक़ नहीं हो तो वे न्यायपालिका को हर मुमकिन तरीक़े से बदनाम करते हैं। मुझे डर स्थिति जस का तस बनाए रखने वाले जजों से है, जो इस लॉबी से टकराना नहीं चाहते और चुपचाप रिटायर हो जाना चाहते हैं।'

जस की तस बनाए रखने की स्थिति

पूर्व न्यायाधीश ने इस आलोचना को खारिज कर दिया कि अयोध्या और रफ़ाल पर उनके फ़ैसलों को 'इस हाथ दे उस हाथ ले' के सिद्धान्त से जोड़ कर देखा जाता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें बदनाम इसलिए किया जा रहा कि उन्होंने इन मुद्दों पर फ़ैसले इस लॉबी की इच्छा के ख़िलाफ़ दिए थे। 

गोगोई ने यह भी कहा कि 

'यदि कोई जज किसी लॉबी से प्रभावित होकर फ़ैसला देता है तो वह लिए हुए शपथ के प्रति सच्चा नहीं है। मैं इस पर फ़ैसला करता हूँ कि मेरी अंतरात्मा मुझे क्या कहती है, वर्ना मैं ख़ुद के लिए शपथ के प्रति सच्चा नहीं हूँ।'


रंजन गोगोई, राज्यसभा सदस्य

पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपने विरोधियों पर तीखा हमला करते हुए 2018 की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की भी चर्चा की, जिसमें दूसरे तीन जजों के साथ वह भी मौजूद थे।

उन्होंने कहा, 'जब मैं जनवरी 2018 में प्रेस कॉन्फ्रेंस में गया, मैं इस लॉबी का चहेता बन गया। पर वे लोग चाहते थे कि जज किसी मामले पर फ़ैसला उनकी इच्छा के अनुसार करें, ऐसा करने पर ही वे उस जज को निष्पक्ष होने का सर्टिफ़िकेट देंगे।'

गोगोई ने कहा कि किसी और के विचारों की परवाह न उन्होंने पहले कभी की और न ही अब करते हैं। यदि वे आलोचना की परवाह करते तो जज के रूप में काम नहीं कर पाते। उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या और रफ़ाल के मामलों के फ़ैसले बेंच की आम सहमति से लिए गए थे। 

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