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माओवादियों से संबंध का मामला: पूर्व प्रोफेसर साईबाबा दोषमुक्त

माओवादियों से संबंध का मामला: पूर्व प्रोफेसर साईबाबा दोषमुक्त

साईबाबा को साल 2014 में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें किस मामले में दोषी ठहराया गया था। 

मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने शुक्रवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को कथित तौर पर माओवादियों से संबंध होने के मामले में दोषमुक्त कर दिया है। जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। 

अदालत ने उन्हें इस बात की भी इजाजत दी है कि वह इस मामले में निचली अदालत के द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ अपील कर सकते हैं। साईबाबा और चार अन्य लोगों को साल 2017 के मार्च महीने में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। 

एक और शख्स को भी 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। इन सभी लोगों को यूएपीए कानून के तहत भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी ठहराया गया था। साईबाबा वर्तमान में नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद हैं। 

नागपुर बेंच ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अगर अभियुक्त किसी अन्य मामले में आरोपी ना हों तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाए। 

क्या है मामला?

साईबाबा को साल 2014 में माओवादियों के साथ संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी से पहले वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। साईबाबा की गिरफ्तारी से पहले जेएनयू के छात्र हेमंत मिश्रा को भी गिरफ्तार किया गया था। हेमंत मिश्रा ने जांच एजेंसियों के सामने दावा किया था कि वह प्रोफेसर और जंगलों में छिपे माओवादियों के बीच में एक कड़ी के रूप में काम कर रहा था। 

महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने साईबाबा पर आरोप लगाया था कि वह एक प्रतिबंधित संगठन के लिए अंडर ग्राउंड वर्कर के रूप में काम कर रहे थे। पुलिस ने कहा था कि साईबाबा एक संगठन चलाते थे और यह सीपीआई माओवादी गुट से संबंधित था। हालांकि साईबाबा ने इस तरह के आरोपों से पूरी तरह इनकार किया था। 

इंडिया टुडे के मुताबिक, साल 2017 में अदालत में सुनवाई के दौरान पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने कहा था कि साईबाबा ने एक भाषण के दौरान कहा था कि नक्सलवाद एकमात्र रास्ता है और वह लोकतांत्रिक व्यवस्था की निंदा करते हैं। 

प्रॉसिक्यूटर ने अदालत से कहा था कि साईंबाबा नेपाल, श्रीलंका के माओवादियों के भी संपर्क में है। 

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