ग्लोबल वार्मिंग: 2030 तक दुनिया भर में ख़त्म होंगी करोड़ों नौकरियाँ
क्या आपने कभी सोचा है कि ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों की नौकरियाँ ख़त्म हो सकती हैं। इससे भारत में भी बड़े पैमाने पर नौकरियाँ जाने और कई और नुक़सान हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है। इस रिपोर्ट का नाम - ‘वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लैनेट-द इंपैक्ट ऑफ़ हीट स्ट्रेस लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क’ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी से 2030 तक वैश्विक स्तर पर काम के घंटों में हर साल 2.2 फ़ीसदी की गिरावट होगी जो कि आठ करोड़ नौकरियों के ख़त्म होने के बराबर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बढ़ती गर्मी के कारण लोग काफ़ी धीरे-धीरे काम करने को मजबूर होंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2400 बिलियन डॉलर का नुक़सान होगा।रिपोर्ट कहती है कि अगर जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ठोस क़दम नहीं उठाए गए तो तो दुनिया भर का तापमान बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा और यह इस शताब्दी के अंत तक बढ़ता ही चला जाएगा। दक्षिण एशिया के देश इस गर्मी के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण 2030 तक भारत को 5.8 फ़ीसदी काम के घंटों का नुक़सान होगा जो 3.4 करोड़ नौकरियाँ ख़त्म होने के बराबर होगा। यह भी कहा गया है कि बढ़ते तापमान के कारण भारत सबसे ज़्यादा प्रभावित होगा और इस वजह से 1995 में भी उसे 4.3 फ़ीसदी काम के घंटों का नुक़सान हुआ था। बताया गया है कि इसका असर कृषि और निर्माण क्षेत्र, दोनों पर होगा। इसके लिए भारत की बढ़ती आबादी को भी ज़िम्मेदार बताया गया है।
तेज़ी से बढ़ती गर्मी के कारण 2030 में कई देशों की जीडीपी भी प्रभावित होने की बात रिपोर्ट में कही गई है। कहा गया है कि थाईलैंड, कंबोडिया, भारत और पाकिस्तान की जीडीपी को पाँच फ़ीसदी से अधिक का नुक़सान होगा। इसके अलावा बढ़ती गर्मी के कारण स्वास्थ्य को भी कई ख़तरे हो सकते हैं, इससे लू भी लग सकती है और यह बेहद घातक साबित हो सकती है।
आईओएल की रिसर्च टीम के प्रमुख कैथरीन सैगेट ने कहा कि बढ़ते तापमान के कारण काम के घंटों का कम होना बेहद ख़तरनाक है। उन्होंने कहा, निम्न और उच्च आय वाले देशों के बीच असमानता के और अधिक बढ़ने और स्थितियों के और ख़राब होने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, दुनिया भर में 94 करोड़ लोग कृषि के कामों में लगे हुए हैं और उन्हें बढ़ते तापमान के कारण सबसे ज़्यादा परेशानी होगी। कृषि क्षेत्र में 2030 तक 60 फ़ीसदी काम के घंटे ख़त्म हो जाएँगे। रिपोर्ट कहती है कि 39 डिग्री से ज़्यादा तापमान से लोगों की मौत हो सकती है। ऐसा हो सकता है लगातार बढ़ते तापमान के कारण कई लोग काम करने लायक भी न रहें या कम काम करने लायक बचें।
क्या है ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर के लिए एक बड़े ख़तरे के रूप में सामने आ रही है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। सीधे शब्दों में ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है पृथ्वी का तापमान बढ़ जाना और तापमान बढ़ने के लिए ग्रीन हाउस गैसें ज़िम्मेदार हैं।
रिपोर्ट यही बताती है कि अगर हमने इसे रोकने के लिए सही क़दम नहीं उठाए तो भविष्य में दिक्कतें कई गुना बढ़ सकती हैं। साल 2016 में भी विश्व का औसत तापमान एक डिग्री से ज़्यादा बढ़ गया था।
ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम
ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारी बारिश होने के मामले बढ़ रहे हैं। जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। दुनिया भर में तूफ़ान, बाढ़ और सूखे के कारण मौसम का संतुलन बिगड़ गया है। इससे समुद्र के स्तर में वृद्धि हो गई है और इस कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का ख़तरा बढ़ गया है। हवा में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ गया है। इसने कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म दिया है।ग्लोबल वार्मिंग गंभीर चिंता का कारण है। इसे रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना बेहद ज़रूरी है और दुनिया भर की सरकारें इसके लिए काम कर रही हैं। यदि ग्रीन हाउस गैसें इसी तेज़ी से बढ़ती रहीं तो आने वाले सालों में दुनिया का तापमान बहुत ज़्यादा बढ़ सकता है।