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गुजरात: गंदा सैनेटरी पैड मिलने पर कॉलेज ने उतरवाये 68 छात्राओं के कपड़े

गुजरात: गंदा सैनेटरी पैड मिलने पर कॉलेज ने उतरवाये 68 छात्राओं के कपड़े

एक कॉलेज में गंदा सैनेटरी पैड मिलने पर सिर्फ नियमों की ख़ातिर कॉलेज की छात्राओं के कपड़े उताकर यह पता किया जाना कि उन्हें पीरियड्स हो रहे हैं या नहीं, अव्वल दर्जे की बेहूदगी है।

अगर किसी कॉलेज में कोई सैनेटरी पैड मिल जाये तो क्या सिर्फ़ वहां के नियमों की ख़ातिर संस्थान की छात्राओं को इस बात के लिये मजबूर किया जाएगा कि वे कपड़े उतारकर इस बात का सबूत दें कि उन्हें पीरियड्स हो रहे हैं या नहीं। 21वीं सदी के आधुनिक समय में भी ऐसी घटना हुई है और यह घटना गुजरात के भुज में स्थित एक कॉलेज में हुई है। कॉलेज की हॉस्टल की छात्राओं से उनके पीरियड्स की स्थिति के बारे में जानने के लिये कपड़े उतरवाये गये। यह घटना सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट में हुई है। 

कॉलेज की एक पीड़ित छात्रा ने अंग्रेजी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ (टीओआई) को बताया कि यह कठोर मानसिक यातना की तरह थी और उसके पास इसे बताने के लिये शब्द नहीं हैं। पीड़ित छात्रा ने बताया कि इंस्टीट्यूट की कुल 68 छात्राओं को इस यातना से गुजरना पड़ा। कॉलेज की प्रिंसिपल और टीचर्स ने छात्राओं को कपड़े उतारने के लिये मजबूर किया। घटना के सामने आने के बाद इसे लेकर कॉलेज की प्रिंसिपल और टीचर्स की जमकर आलोचना हो रही है। 

कैसे शुरू हुआ विवाद 

पीड़ित छात्राओं के मुताबिक़, यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब सोमवार को हॉस्टल के गार्डन में एक गंदा सैनेटरी पैड पड़ा मिला। पहले यह शक हुआ कि हॉस्टल की ही किसी छात्रा ने इसे वॉशरूम की खिड़की से बाहर फेंक दिया होगा लेकिन हॉस्टल का प्रबंधन जानना चाहता था कि किसने यह पैड फेंका है। प्रबंधन का कहना था कि ऐसा करके कॉलेज के नियमों का उल्लंघन किया गया है। 

टीओआई के मुताबिक़, हॉस्टल की वार्डन ने इस बारे में प्रिंसिपल रीता रानीगा को बताया और प्रिंसिपल ने सभी लड़कियों को कॉमन एरिया में बुलाया। इसके बाद उन्होंने हॉस्टल और स्वामीनारायण संप्रदाय के नियमों को लेकर छात्राओं को खूब सुनाया और कहा कि वे ख़ुद ही इस बात को बता दें कि यह सैनेटरी पैड किसने फेंका है। दो छात्राएं आगे आईं और उन्होंने इसे स्वीकार किया। लेकिन प्रिंसिपल रानीगा और कुछ टीचर्स को यह लगा कि लड़कियां बेईमानी कर रही हैं और वे लड़कियों को एक के बाद एक वॉशरूम में ले गईं और उनसे सारे कपड़े उतारने के लिये कहा, इस दौरान वहां चार महिला टीचर्स और प्रिंसिपल ख़ुद मौजूद रहीं। 

टीओआई के मुताबिक़, एक छात्रा के पिता ने कहा, ‘मैं भी स्वामीनारायण संप्रदाय के नियमों को मानता हूं लेकिन उन्हें मेरी बेटी को प्रताड़ित करने का कोई हक़ नहीं है। जब मुझे यह पता चला तो वह रो रही थी। मैंने उससे संपर्क किया तो उसने मुझसे कहा कि मैं उसे वहां से ले जाऊं।’

छात्राओं के माता-पिता अब कॉलेज और प्रिंसिपल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की तैयारी में हैं। गुरुवार को हॉस्टल की छात्राओं ने मीडिया के सामने इस बात को रखा और आरोप लगाया कि कॉलेज के ट्रस्टी प्रवीण पिंडोरिया उनकी बातों को नहीं सुन रहे हैं। छात्राओं ने कहा कि पिंडोरिया ने उनसे कहा कि वे इस घटना को भूल जाएं।  

टीओआई के मुताबिक़, जब पिंडोरिया से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, ‘संप्रदाय के नियमों को मानना होता है। हम छात्राओं को इंस्टीट्यूट में दाख़िला लेने से पहले ही नियमों के बारे में बता देते हैं। हो सकता है कि कुछ टीचर्स ने नियमों का सख़्ती से पालन करवाया होगा। मैंने कॉलेज की प्रशासन कमेटी की बैठक बुलाई है और कमेटी घटना के लिये जिम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी।’ छात्राओं का आरोप है कि कॉलेज की ओर से ग्रेजुएट छात्राओं को हॉस्टल में रहना अनिवार्य किया गया है जबकि कॉलेज के ट्रस्टी ने इससे इनकार किया है। 

ये हैं कॉलेज के नियम 

कॉलेज के नियम हैं कि अगर किसी छात्रा को पीरियड्स हो रहे हैं तो वह हॉस्टल के कमरों में नहीं रह सकतीं बल्कि उसे बेसमेंट में रहना होगा। ऐसी छात्राएं पीरियड्स के दौरान दूसरों के साथ घुल-मिल नहीं सकतीं, रसोई और मंदिर में नहीं जा सकतीं। नियमों के मुताबिक़, इस दौरान छात्राओं को अपने बर्तन भी अलग रखने होंगे और पीरियड्स ख़त्म होने के बाद इन्हें धोकर रखना होगा। इसके अलावा इस दौरान छात्राओं को क्लासरूम में सबसे लास्ट वाली पंक्ति में बैठना होगा। 

यहां पर कुछ साल पहले अभिनेता अक्षय कुमार की फ़िल्म पैडमैन का जिक्र करना ज़रूरी होगा। यह फ़िल्म महिलाओं को होने वाले पीरियड्स पर आधारित थी। फ़िल्म में यह बताने की कोशिश की गई थी पीरियड्स नेचुरल प्रक्रिया है लेकिन आज भी मध्यम वर्गीय घरों में और गांवों में लोग इस पर खुलकर बात नहीं करते।

पीरियड्स को लेकर बेहद संकोच के साथ बात की जाती है। इससे पहले मोदी सरकार की ओर से 1 रुपये में सैनिटेरी पैड भी बंटवाये जा चुके हैं। लेकिन इस कॉलेज की यह घटना निश्चित रूप से इस बात को बताती है कि लोगों के सोचने का तरीक़ा आज भी वही बेहूदा है। इस बात को क़तई जायज नहीं ठहराया जा सकता कि कॉलेज किसी संस्थान के नियमों को मनवाने के लिये छात्राओं को कपड़े उतारने पर मजबूर कर दे। ऐसे में सवाल यह है कि एक ओर तो इसकी मुहिम चल रही है कि पीरियड्स को टैबू न बनाकर रखा जाये, दूसरी ओर इस तरह की घटनाएं इंसानी सभ्यता को शर्मसार कर रही हैं।

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