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घोसी उपचुनाव में होगा ‘इंडिया’ गठबंधन बनाम एनडीए का पहला टेस्ट 

घोसी उपचुनाव में होगा ‘इंडिया’ गठबंधन बनाम एनडीए का पहला टेस्ट 

क्या उत्तर प्रदेश के घोसी में होने वाले उपचुनाव में विपक्षी गठबंधन इंडिया की मिली जुली कोशिश दिख रही है? जानिए, आखिर घोसी का उपचुनाव चर्चा में क्यों है।

घोसी में यूँ तो ये उपचुनाव बीते सालों में हुए एक दर्जन से ज्यादा उपचुनावों जैसा ही नज़र आता है पर ऐसा है नहीं। उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा उपचुनाव के बहाने पहली बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी गठबंधन इंडिया दो-दो हाथ कर रहे हैं। यह उपचुनाव कम से कम ‘इंडिया’ के लिए तो इतना महत्वपूर्ण हो चला है कि पहली बार खुद समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव न केवल घोसी में चुनावी सभा करने पहुंचे बल्कि हर रोज लखनऊ में बैठ प्रचार की निगरानी कर रहे हैं। उपचुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक में पसीने बहाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घोसी दो सितंबर को प्रचार करने जाएंगे। घोसी में भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की जीत सुनिश्चित करने के लिए यूपी में एनडीए के घटक दल निषाद पार्टी, अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के नेता दिन रात एक कर रहे हैं।

विपक्षी दलों के दर्जनों नेता डटे

प्रदेश में हाल के वर्षों में यह पहला विधानसभा उपचुनाव है जो इतना हाई प्रोफाइल बन गया है। ‘इंडिया’ के घटक दलों- राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल पल्लवी पटेल ग्रुप के बड़े नेताओं के साथ ही कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के स्थानीय नेता घोसी में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सुधाकर सिंह के लिए पसीना बहा रहे हैं। मंगलवार को जहां अखिलेश यादव ने घोसी में जनसभा की है वहीं पार्टी के बड़े नेता शिवपाल यादव बीते दस दिनों से वहीं डेरा डाले हुए हैं। तीन-चार दिनों तक लगातार सपा के महासचिव रामगोपाल यादव भी घोसी में मौजूद रहे हैं। सपा के सभी फ्रंटल संगठनों से लेकर प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का जमावड़ा घोसी में दिखाई दे रहा है।

दर्जनों मंत्री, पार्टी के बड़े नेता सहित मुख्यमंत्री भी जुटे

इस समय प्रदेश सरकार के एक दर्जन मंत्री चुनाव प्रचार के लिए घोसी में घर-घर जा रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो सितंबर को वहाँ सभा को संबोधित करेंगे तो दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक अब तक कई दिन घोसी में सभाएं व जनसंपर्क कर चुके हैं। मंत्री दयाशंकर सिंह, दानिश आजाद अंसारी, दयाशंकर मिश्रा, एके शर्मा से लेकर कई लोगों को घोसी में ही जम कर बैठने के निर्देश हैं। भाजपा के सहयोगी दलों निषाद पार्टी के डॉ. संजय निषाद, सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर और अपना दल के आशीष पटेल की दर्जनों सभाएँ घोसी में हो चुकी हैं।

मुस्लिम मतों में सेंध लगाने की कवायद

घोसी विधानसभा सीट पर कुल 4.25 लाख वोटों में 90000 मुसलमान हैं जिनमें 70 फीसदी या 63000 पसमांदा हैं। हाल के दिनों में भाजपा का पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने पर काफी जोर है। योगी कैबिनेट के एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश आजाद अंसारी खुद पसमांदा बिरादरी से आते हैं जिन्हें घोसी में ही डट जाने को कहा गया है। अंसारी अब बुनकर बहुल घोसी में जुलाहों की बस्ती में जाकर एनडीए सरकार की उनके कल्याण के लिए लायी गयी योजनाओं की जानकारी देने के साथ विपक्षी दलों में उनकी अनदेखी को उजागर कर रहे हैं। हालाँकि घोसी के स्थानीय नेताओं का कहना है कि भाजपा की कवायद बहुत तो नहीं, पर कुछ हद तक सफल भी हो सकती है।

जातीय समीकरण सपा को दे रहे हौसला

घोसी विधानसभा सीट पर मुस्लिमों के बाद सबसे ज्यादा तादाद में दलित 70000, राजभर 52000 और नोनिया चौहान 46000 हैं। सपा नेताओं का मानना है कि इस बार बसपा का प्रत्याशी न होने के चलते दलित मतों का एक बड़ा हिस्सा उसकी ओर आ रहा है। हालांकि ठीक यही दावा भाजपा का भी है जो बीएसपी प्रत्याशी न होने को अपने पक्ष में देख रही है। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में दो ध्रुवीय मुकाबले के बावजूद बसपा प्रत्याशी को यहां 52000 से ज्यादा वोट मिले थे। इसके अलावा यादव मतों पर अपनी दावेदारी सपा जता रही है और उसका कहना है कि ओमप्रकाश राजभर के एनडीए में आ जाने के बावजूद राजभरों में भाजपा को लेकर नाराजगी है जिसका उसे फायदा मिलेगा। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को सजातीय ठाकुर मतों के साथ कांग्रेस के अजय राय का समर्थन मिलने के बाद भूमिहार मत मिलने की भी आशा है। सपा नेताओं का कहना तो यहां तक है कि दारा सिंह चौहान के सजातीय नोनिया चौहान वोट भी उनके बार बार के पाला बदल से नाराज हैं।

दारा सिंह चौहान के इस्तीफे से खाली हुयी थी सीट

घोसी विधानसभा सीट से 2022 में सपा के टिकट पर दारा सिंह चौहान विधायक बने थे। इसी साल जुलाई में उन्होंने पार्टी व विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। दारा सिंह 2022 के पहले भी भाजपा में थे और पिछली योगी सरकार में वन मंत्री थे। विधानसभा चुनावों के ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ ही वो भी इस्तीफा देकर सपा में शामिल हुए थे। दारा सिंह चौहान बसपा में लंबे समय तक रहे और पूर्व में भी एक बार सपा में रह चुके हैं। हालांकि उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी।

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