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जनरल रावत का जाना: भारतीय सेना के सामने अभूतपूर्व नेतृत्व संकट

जनरल रावत का जाना: भारतीय सेना के सामने अभूतपूर्व नेतृत्व संकट

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत का जाना निश्चित रूप से भारतीय सेना की चुनौतियों में इजाफा करेगा। 

अपने कार्यकाल में अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जा कर राजनीतिक, सैन्य और राजनयिक मसलों पर टिप्पणी करने के लिये ख्याति अर्जित करने वाले भारत के पहले प्रधान सेनापति नियुक्त किये गए जनरल बिपिन रावत का हेलीकाप्टर दुर्घटना में असामयिक निधन ऐसे वक्त हुआ है जब भारत पर चीन के बीच सैनिक टकराव का खतरा बना हुआ है। 

प्रधान सेनापति की हैसियत से जनरल रावत चीन और पाकिस्तान की ओर से पैदा किये जा रहे सुरक्षा खतरों से प्रभावी तरीके से निबटने के लिये  तीनों सेनाओं का असाधारण दायित्व सम्भाल रहे थे।

जनरल रावत अपनी कुशल सैन्य कूटनीति के अलावा राजनीतिक मसलों पर टिप्पणी करने के लिये भी याद किये जाएंगे।  

जनरल रावत की कमान के तहत ही भारत की तीनों सेनाएं एकीकृत रणनीति के तहत चीन की ओर से पैदा खतरों का सक्षमता पूर्वक सामना कर रही थीं। अब भारतीय सेनाओं के सामने अचानक सैन्य नेतृत्व का अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया है।

भारतीय थलसेना के प्रमुख (चीफ ऑफ आर्मी  स्टाफ) का दायित्व सम्भालने के तुरंत बाद उन्होंने भारत के पहले प्रधान सेनापति (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) का दायित्व एक जनवरी, 2020 से सम्भाला। इसके पहले 31 दिसम्बर, 2016 को वह थलसेना प्रमुख नियुक्त किये गए थे।

थलसेना मुख्यालय में वाइस चीफ का  दायित्व सम्भालने के दौरान भारत ने शांतिकाल में पहली बार दुश्मन के इलाके में सीमा पार कर किये गए सर्जिकल स्ट्राइक(पाक अधिकृत कश्मीर के अंदर जाकर सैन्य कार्रवाई) करवाने की अहम कामयाब भूमिका निभाई।

इसके पहले भूटान के डोकलाम इलाके से चीनी सैनिकों को 73 दिनों तक चले सैन्य तनाव का सामना करते हुए चीनी सेना को पीछे जाने के लिये मजबूर करने का दायित्व भी उन्होंने सम्भाला।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजन 2000 में करगिल युद्ध समीक्षा समिति ने करने की सिफारिश की थी लेकिन 20 सालों के गहन राजनीतिक विचार विमर्श के बाद जनरल रावत को देश के पहले प्रधान सेनापति होने का दायित्व सम्भालने के दौरान वह तीनों सेनाओं में गहन एकीकरण की प्रक्रिया पूरी करने की मुश्किल जिम्मेदारी  सम्भाल रहे थे। इसके लिये उन्हें तीनों सेना मुख्यालयों को साथ ले कर चलने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसके लिये वह तीनों सेनाओं के साझा पांच थियेटर कमांड के गठन पर गहन काम कर रहे थे।

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थियेटर कमांड पर कर रहे थे काम

थियेटर कमांड के गठन के प्रस्ताव पर सेना मुख्यालयों में खींचतान चल रही है। गौरतलब है कि इस तरह के थियेटर कमांड अमेरिका व चीन के सैन्य बलों में पहले ही गठित किये गए हैं ताकि उनके देश की तीनों सेनाएं किसी युद्ध कार्रवाई के दौरान तालमेल व सामंजस्य से समाघात कार्रवाई करने के लिये किसी साझा सैन्य नेतृत्व के तहत कमांड निर्देश ग्रहण करें।

संयुक्त थियेटर कमांड के गठन की प्रक्रिया में तेजी लाने की वजह से वह एक बार यह कह कर विवाद में आ गए थे कि वायुसेना की किसी युद्ध में सेकेंडरी भूमिका ही होगी। यानी वायुसेना को थलसेना की सहायक भूमिका में पेश होना होगा जिस पर वायुसेना के हलकों में तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की गई थी।

इसके पहले जनरल रावत अपने कार्यकाल में कई बार राजनीतिक मसलों पर बयान देने या टिप्पणी करने के लिये विवादों में घिरे थे।

विवादित बयान 

उन्होंने 26 दिसम्बर, 2020 को नागरिकता कानून (सीएए) पर यह टिप्पणी कर विवाद खड़ा किया था कि आन्दोलन चला रहे छात्रों को गलत दिशा में मोड़ा जा रहा है। एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि नेता वे नहीं हैं जो लोगों को गलत दिशा में मोड़ते हैं जैसा कि हम विश्वविद्यालयों और कालेजों में भारी संख्या में छात्रों को देख रहे हैं। जिस तरह वे भीड़ को दंगा और हिंसा करने को उकसा रहे हैं वे नेता के गुण नहीं हैं।

इसके पहले अक्टूबर, 2019 में वह यह टिप्पणी कर विवादों में उलझे थे कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) आतंकवादियों के कब्जे में है। सितम्बर, 2019 में उन्होंने यह कह कर विवाद खडा किया था कि जम्मू कश्मीर में सेना कोई फौजी कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्होंने कहा था कि कश्मीर में आतंकवादी तत्व देश भर में यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि सेना कश्मीर में दमनात्मक कार्रवाई कर लोगों को चुप करने की कोशिश कर रही है। उनकी इस टिप्पणी पर सीपीआई नेता ए राजा ने कड़ी टिप्पणी की थी।

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फरवरी, 2018 में जनरल रावत ने यह विवादास्पद बयान दिया था कि उत्तरपूर्वी राज्यों में आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का बीजेपी से अधिक तेजी से विकास मुसलिम समर्थन की वजह से हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि अब इस इलाके का जनसंख्या समीकरण बदला जा सकता है।

जनवरी, 2018 में उन्होंने यह विवादास्पद बयान दे कर सामरिक हलकों में खलबली पैदा की थी कि डोकलाम का इलाका चीन और भूटान के बीच विवादास्पद इलाका है। 

गौरतलब है कि डोकलाम भूटान का प्रादेशिक इलाका माना जाता है।

ज़ाहिर है अब जबकि जनरल रावत नहीं हैं तो एक बड़ा सवाल यह है कि उनकी जगह कौन लेगा? 

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