पहली तिमाही में जीडीपीः धीमी क्यों रही भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार
भारत की वास्तविक जीडीपी अप्रैल से जून 2024 तिमाही में 6.7% बढ़ी, जो पांच तिमाहियों में सबसे धीमी है। यह भारतीय रिज़र्व बैंक की 7.1% बढ़ोतरी की उम्मीद के साथ तो कम है ही। साथ ही पिछली तिमाही की 7.8% वृद्धि से भी काफी कम है। यह स्थिति काफी चिंताजनक है। यह आंकड़ा 30 अगस्त को जारी किया गया है।
अर्थशास्त्रियों ने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि पहली तिमाही में चुनावी गतिविधियों के कारण सरकारी खर्च में मंदी और गर्मी के प्रतिकूल प्रभाव के कारण पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था धीमी होने की संभावना है।
एक साल में पहली बार, अर्थव्यवस्था में वास्तविक सकल मूल्य वर्धित (ग्रास वैल्यू एडेड- जीवीए) में बढ़ोतरी ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की बढ़ोतरी को पीछे छोड़ दिया। 2024-25 की पहली तिमाही (Q1) में 6.8% की बढ़ोतरी को किसी भी तरह बेहतर नहीं कहा जा सकता। यह पिछली दो तिमाहियों, 2023-24 की तीसरी और चौथी तिमाही के मुकाबले एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जब वास्तविक जीवीए वृद्धि जीडीपी वृद्धि से क्रमशः 1.8 और 1.5 प्रतिशत अंक पीछे रह गई थी।
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा, "चुनाव के कारण जीडीपी में थोड़ी मंदी की आशंका थी।" ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा- “आम तौर पर, सब्सिडी के अलावा अप्रत्यक्ष करों के पॉजिटिव योगदान के कारण वास्तविक जीडीपी वृद्धि जीवीए वृद्धि से अधिक होती है। हालाँकि, केंद्र सरकार की सब्सिडी पहली तिमाही में 3.6 प्रतिशत की कम वृद्धि दर और वित्त वर्ष 2025 के पहले चार महीनों में (-) 10.9 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्शाती है। इसका मतलब यह है कि आगे भी, जीवीए और जीडीपी की वृद्धि दर एक साथ रह सकती है।”
आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि मंदी चिंता का कारण नहीं है क्योंकि इसका कारण शुद्ध अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि का सामान्य होना है। जीडीपी और जीवीए के बीच भिन्न प्रवृत्ति, जो पिछली दो तिमाहियों में औसतन 160 आधार अंक थी, के कारण उच्च जीडीपी वृद्धि और कम जीवीए वृद्धि हुई थी।
कृषि की हालत चिंताजनक
अर्थशास्त्री भले ही पॉजिटिव देखते रहें लेकिन कृषि की स्थिति चिन्ताजनक होती जा रही है। जून तिमाही के दौरान, कृषि विकास (2.7 प्रतिशत) पिछले साल के खराब मानसून और हीटवेव से प्रभावित रहा, जिसके कारण कई राज्यों में जलाशय सूख गए। इसका सीधा असर फसलों के उत्पादन पर पड़ा। हालाँकि, बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति (10.4 प्रतिशत) में वृद्धि के कारण इसकी भरपाई हो गई।मेन्यूफैक्चरिंग बुरी तरह से प्रभावित हुआ। यह चार-तिमाही के निचले स्तर 7 प्रतिशत पर आ गया, जो औद्योगिक उत्पादन डेटा और कॉर्पोरेट लाभ में देखी गई धीमी रफ्तार को दर्शाता है, जबकि सेवाओं में क्रमिक रूप से 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
जीडीपी के बढ़ने की उम्मीद कम
केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 7 प्रतिशत होगी, जो आरबीआई के 7.2 प्रतिशत के अनुमान से कम है। रजनी ने कहा- “आगामी तिमाहियों में, इसके वितरण से संबंधित चुनौतियों के बावजूद, अच्छे मानसून के कारण कृषि क्षेत्र में बेहतर वृद्धि देखने की उम्मीद है। आगामी तिमाहियों में सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि और निजी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी से विकास को समर्थन मिलेगा। इसके अलावा, कृषि क्षेत्र में सुधार और कम महंगाई से आने वाली तिमाहियों में खपत को बढ़ावा मिलेगा।''