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जीडीपी में 20% की वृद्धि, पर अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं

जीडीपी में 20% की वृद्धि, पर अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं

जीडीपी में 20 प्रतिशत की वृद्धि पर बहुत खुश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा समय अभी भी ख़त्म नहीं हुआ है और यह मंदी से बाहर नहीं निकला है। 

इस साल अप्रैल से जून के बीच भारत की जीडीपी में 20.1 प्रतिशत का उछाल आया है। यह भारत में विकास का नया रिकॉर्ड भी है और इस बात का संकेत भी कि भारत अब दुनिया में सबसे तेज़ रफ्तार से विकास की तरफ बढ़ रहा है। 

कोरोना की मार से बदहाल अर्थव्यवस्था के लिए, कोरोना से परेशान आम आदमी के लिए और देश की सरकार व शेयर बाज़ार के लिए भी यह एक बड़ी खुशखबरी है। 

यह खुशखबरी अचानक नहीं आई है। तमाम अर्थशास्त्री महीनों से बता रहे थे कि ऐसी ही खबर आनेवाली है। ज्यादातर अनुमान यही थे कि यह आँकड़ा 18 से 22 प्रतिशत के बीच आएगा। 

शेयर बाज़ार

शेयर बाज़ार को तो इस आँकड़े का ऐसा इंतजार था कि वो पिछले कई दिनों से ही ऊपर की तरफ भागने में लगा था। 

आँकड़ा आने के बाद भी तेजड़िए बेलगाम भागते रहे और सेंसेक्स पहली बार 57,550 अंक के पार पहुँच गया। निफ्टी और सेंसेक्स दोनों ही इंडेक्स रिकॉर्ड ऊँचाई पर बंद हुए हैं। 

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लेकिन बाज़ार की खुशी के बावजूद सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि अर्थव्यवस्था में या जीडीपी में इस तेज़ उछाल का मतलब सीधे सीधे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से पटरी पर आ रही है और कारोबार में तेज़ उछाल आ चुका है।

जीडीपी में तेज बढ़त के इस आँकड़े की सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले साल इसी तिमाही में देश की जीडीपी 24.4% कम हुई थी, यानी देश बहुत बड़ी मंदी की चपेट में आया था। वहाँ से 20 प्रतिशत के उछाल का भी मतलब यही है कि अभी यह पुराने स्तर से भी कुछ नीचे ही है।

ग्रोथ की असलियत 

यह चर्चा तो जीडीपी में बढ़त के आँकड़े पर चल रही है, लेकिन अगर ग्रोथ की असलियत को समझना हो तो यह देखना होगा कि भारत की जीडीपी यानी देश में होनेवाले कुल लेनदेन का आँकड़ा क्या है।

जीडीपी के आँकड़े की सरकारी विज्ञप्ति में ही बताया गया है कि पिछले साल अप्रैल से जून के बीच देश की जीडीपी 26.95 लाख करोड़ रुपए थी जो इस साल अप्रैल से जून की तिमाही में 20 प्रतिशत बढ़कर 32.38 लाख करोड़ हो गई है।

लेकिन यहां यह बात नहीं लिखी हुई है कि पिछले साल इस तिमाही की जीडीपी उसके पिछले साल के मुकाबले 24.4%कम थी। यानी 2019 में अप्रैल से जून के बीच भारत की जीडीपी थी 35.85 लाख करोड़ रुपए। 

इन तीन आँकड़ों को साथ रखकर देखें तब तसवीर साफ होती है कि अभी देश की अर्थव्यवस्था वहाँ भी नहीं पहुँच पाई है, जहाँ अब से दो साल पहले थी।

आँकड़ों का सच 

एक आँकड़ा और देखने लायक है। हालांकि सरकार की तरफ से तिमाही दर तिमाही आँकड़े भी जारी नहीं होते हैं यानी इस तिमाही में पिछली तिमाही से तुलना नहीं की जाती। 

इसमें सरकार का कोई दोष नहीं है, अर्थशास्त्र में यह हिसाब एक साल पहले के आँकड़े से तुलना करके ही लगाया जाता है। लेकिन फिर भी उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर यह जानकारी भी सामने आती है कि इसी साल जनवरी से मार्च के मुकाबले अप्रैल से जून के बीच तीन महीनों में उत्पादन में करीब 17 प्रतिशत की गिरावट आई है।यानी हालात ऐसे नहीं हैं कि ढोल नगाड़े पीटने शुरू कर दिए जाएं।  

निर्माण क्षेत्र

फिर इन आँकड़ों में खुश होनेवाली बात क्या है? तो ऐसी सबसे बड़ी खबर निर्माण क्षेत्र यानी कंस्ट्रक्शन सेक्टर में है जहां पिछले साल इसी वक्त करीब 50 प्रतिशत की गिरावट आई थी वहां इन तीन महीनों में 68.3% का उछाल आया है, यानी यहां मंदी को पूरी तरह धोने में कामयाबी मिली है।

यह बड़ी खुशखबरी इसलिए भी है क्योंकि इस कारोबार में बहुत से लोगों को रोजगार मिलता है और कंस्ट्रक्शन का काम तेज़ होने से लोहे, सीमेंट जैसी चीजों की खपत बढ़ने के साथ ही माल ढुलाई का काम बढ़ता है और उससे तमाम तरह के छोटे बड़े धंधों को सीधे या परोक्ष रूप से फायदा पहुंचता है।

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मैन्युफैक्चरिंग

इसी तरह का दूसरा तगड़ा उछाल है मैन्युफैक्चरिंग में जो पिछले साल अप्रैल से जून के बीच 36 प्रतिशत की गिरावट के मुकाबले इस साल की इसी तिमाही में 49.6% बढ़ी है। 

मैन्युफैक्चरिेंग यानी औद्योगिक उत्पादन भी रोजगार बढ़ाने में मदद करता है और साथ ही उसमें बढ़त इस बात का भी संकेत है कि देश में ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है यानी अर्थतंत्र का चक्का चल रहा है।  

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सिकुड़ी अर्थव्यवस्था

और भी बहुत से सेक्टरों के आँकड़े कुछ कुछ बढ़े हैं, लेकिन वो उतना उत्साह नहीं जगाते। बल्कि यह चिंता ही बढ़ाते हैं कि जितनी तेजी से पिछले साल इकोनॉमी सिकुड़ी थी, उसमें उसी रफ्तार से बढ़त नहीं हो रही है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने जीडीपी के ताजा आँकड़ों के सहारे यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पिछले साल उन्होंने अर्थव्यवस्था में 'वी शेप रिकवरी' का जो दावा किया था, वह सही साबित हो रहा है। 

लेकिन यह रिकवरी कितनी सच और कितनी कागजी है, ऊपर देखा ही जा चुका है। और इसके साथ ही जिन अर्थशास्त्रियों ने के शेप रिकवरी यानी कहीं खुशी कहीं गम की आशंका जताई थी, उनकी चेतावनी भी सच होती दिख रही है। 

जहाँ मैन्युफैक्चरिंग में तेज़ उछाल दिख रहा है, वहीं सर्विसेज़ में बहुत हल्का सुधार है। यह भी चिंता की बात है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था अब बड़े पैमाने पर सेवा क्षेत्र या सर्विसेज़ पर टिकी हुई है।

शेप्ड रिकवरी 

जीडीपी में सर्विस क्षेत्र का हिस्सा 50 प्रतिशत से ऊपर है जबकि मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और साथ में बिजली, पानी, गैस और बाकी ज़रूरी सेवाओं को भी जोड़ दें तो उनका हिस्सा 26 प्रतिशत के आसपास ही पहुंचता है।

यहीं के शेप्ड रिकवरी का एक दूसरा पहलू भी आता है। इस सरकार के राज में भारत में गरीब अमीर की खाई बहुत तेज़ी से बढ़ी है। कोरोना संकट के बावजूद अमीरों की संपत्ति जिस तेज़ी से बढ़ी वह अपने आप में एक पहेली है।

पिछले साल मार्च के बाद से ही देश के सौ अरबपतियों की संपत्ति में 12 लाख 97 हज़ार 822 करोड़ का इजाफा हो चुका है। अगर देश के 13 करोड़ 80 लाख सबसे गरीब लोगों में यही रकम बांटी जाती तो उनमें से हरेक को 94 हज़ार रुपए मिल सकते थे। यह आँकड़ा ऑक्सफैम की इनइक्वलिटी वायरस रिपोर्ट में सामने आया है।  

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हाउसहोल्ड कंजंप्शन

लेकिन जीडीपी में बढ़ोतरी यह भरोसा क्यों नहीं जगाते कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी उसी तेज़ी से हो रही है जिस तेज़ी से उसमें पिछले साल गिरावट आई थी। इसे समझने के लिए इन आँकड़ों में सबसे सटीक उदाहरण है हमारे आपके घरों का खर्च यानी हाउसहोल्ड कंजंप्शन का आँकड़ा। 

इस तिमाही में यह जीडीपी का 55.1% हिस्सा रहा है, जबकि पिछले साल जिस वक्त पूरा देश लॉकडाउन की चपेट में था और देश मंदी झेल रहा था तब भी भारत की जीडीपी में घरेलू खर्च का हिस्सा 55.4% था। यानी इस मामले में हालात करीब करीब वहीं हैं जहां थे।

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हां, पिछले साल इस तिमाही  में सरकार का खर्च जीडीपी का 16.4% हिस्सा था जबकि इस बार जीडीपी में उसका हिस्सा 13 प्रतिशत ही रह गया है। यह दिखाता है कि सरकार के अलावा दूसरे लोगों का लेनदेन ज्यादा बढ़ा है जिसकी वजह से सरकारी खर्च की हिस्सेदारी कम हो गई है। 

यह मानना चाहिए कि जीडीपी ग्रोथ का आँकड़ा शायद इससे कहीं बेहतर होता अगर कोरोना की दूसरी लहर न आई होती। और अब सबसे बड़ी फिक्र यह है कि कहीं तीसरी लहर आ गई तो रिकवरी का क्या होगा। और इस वक्त शायद उसी मोर्चे पर सावधानी सबसे ज़रूरी है।

(बीबीसी हिन्दी से साभार)

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