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...तो इसलिए नहीं होनी चाहिए गैरसैंण उत्तराखंड की राजधानी  

...तो इसलिए नहीं होनी चाहिए गैरसैंण उत्तराखंड की राजधानी  

उत्तराखंड राज्य बने 20 वर्ष, 06 महीने से अधिक हो गए। गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग इससे भी पुरानी है; 1960 के दशक की।

उत्तराखंड राज्य बने 20 वर्ष, 06 महीने से अधिक हो गए। गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग इससे भी पुरानी है; 1960 के दशक की। गौर कीजिए कि गैरसैंण, गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित है। दोनों मंडल के लोगों को सहूलियत होगी। इसी तर्क के आधार पर गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग की जाती रही है। उत्तराखंड क्रांति दल ने तो 25 जुलाई, 1992 को ही गैरसैंण को राजधानी घोषित कर दिया था। उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक काशी सिंह ऐरी के हाथों शिलान्यास भी करा दिया था। 

वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली भी उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग की थी। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर देने वाले पेशावर काण्ड के नायक थे। अतः वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर गैरसैंण का नाम चन्द्र नगर घोषित कर दिया गया। 

उत्तर प्रदेश के हिमालयी ज़िलों को पृथक राज्य का दर्जा देने वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के नगर विकास मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की सिफारिश कर दी थी। बाबा मोहन ने इस मांग को लेकर 13 बार भूख हड़ताल की। अपनी जान गंवाई। अखिरकार फिर भी क्यों गैरसैंण, आज तक राजनीतिक बास्केटबॉल ही बनी हुई है?

मंडल बनाना भी अक़लमंदी नहीं?

वर्ष 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गैरसैंण को अधिकारिक तौर पर ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। वर्ष 2021 में गैरसैंण को चार ज़िलों वाला नया मंडल घोषित किया है; पहले से घोषित मंडल गढ़वाल और कुमाऊं के बाद तीसरा मंडल यानी तीसरी प्रशासनिक इकाई। किंतु शेखर पाठक जैसे विशेषज्ञों और कांग्रेस ने गैरसैंण को मंडल घोषित किए जाने को अनुपयोगी माना है। 

समय आ गया है कि अब हां-ना के इस खेल पर विराम लगा दिया जाए। हक़ीक़त को प्रचार दिया जाए कि जनाकांक्षाओं के बावजूद गैरसैंण को स्थाई राजधानी तो क्या, मंडल बनाना भी क्यों अक़लमंदी नहीं है ? हक़ीक़त समझने के लिए समझना होगा कि रिचार्ज और डिस्चार्ज ज़ोन क्या होता है। 

 - Satya Hindi

रिचार्ज और डिस्चार्ज जोन

जो क्षेत्र ऊपर के पानी को भूमि के अंदर खींचकर संजोने की क्षमता रखता है, उसे रिचार्ज जोन कहते हैं। वर्षाजल के जरिए भूजल स्तर ऊपर उठाने के लिए संरचनाएं बनाने के लिए सबसे अनुकूल क्षेत्र, रिचार्ज जोन ही होता है। रिचार्ज जोन में रिचार्ज हुआ पानी ही भूमि की खड़ी और पड़ी शिराओं से होता हुआ डिस्चार्ज जोन में बाहर निकलता है। 

डिस्चार्ज ज़ोन का मतलब ही है कि ऐसी भू-संरचना वाला क्षेत्र, जो पानी को भूमि के अंदर संग्रह करने की बजाय, बाहर की ओर निकाले। यही कारण है कि डिस्चार्ज जोन में बनी सतही जल संरचनाओं में पानी लंबे समय तक ऊपर टिका हुआ दिखाई देता है। झरने, डिस्चार्ज ज़ोन में ही फूटते हैं। नदियों का उद्गम भी डिस्चार्ज ज़ोन से ही होता है। नदी तट डिस्चार्ज जोन ही होता है। डिस्चार्ज ज़ोन में रिचार्ज की कोई संभावना नहीं होती।

पानी पिलाने में अक्षम गैरसैंण

कहना न होगा कि डिस्चार्ज ज़ोन, एक तरह से विरोधाभासी चरित्र की दुनिया होती है। एक तरफ तो अति नम होने के कारण डिस्चार्ज ज़ोन स्थाई निर्माण के लिए अनुकूल नहीं होता; दूसरी तरफ, रिचार्ज न होने के कारण भूजल विकास की संभावना भी नहीं होती। गैरसैंण - गंगा और रामगंगा के डिस्चार्ज ज़ोन में ही स्थित है। लिहाजा, गैरसैंण में भूजल विकास की संभावना नहीं है। 

गैरसैंण में मौजूद एक्यूफरों की क्षमताओं और चट्टानों की संरचनाओं के कारण भी गैरसैंण की भूजल भंडारण की क्षमता कम है। इस अक्षमता के कारण गैरसैंण में हैंडपंप से तो एक हद तक जल-निकासी संभव है। किंतु अधिक जनसंख्या होने पर नलकूपों से नहीं।

रामगंगा में अभी ही इतना पानी नहीं कि गैरसैंण की वर्तमान आबादी को पर्याप्त पानी पिला सके। 

पानी हासिल करने का दूसरा विकल्प कर्णप्रयाग स्थित अलकनंदा नदी है। गैरसैंण, कर्णप्रयाग की अलकनंदा नदी से 1600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पानी को इतनी ऊंचाई पर उठाकर ले जाने में बहुत अधिक खर्च होगा। राजधानी बनने की दशा में गैरसैंण भी दिल्ली की तरह कई बार उजडे़गा, सो अलग।

गैरसैंण के संबंध में पेश तकनीकी निष्कर्ष, नई दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एण्ड आर्किटेक्चर के हैं। स्कूल ने देहरादून और गैरसैंण के बीच राजधानी चुनने का अध्ययन करते हुए उक्त तथ्य प्रस्तुत किए थे।

भारी निर्माण के अनुकूल नहीं गैरसैंण

रिपोर्ट ने वाहन व प्रदूषण से स्थानीय नदियां क्षतिग्रस्त होने की बात कही थी। रिपोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि स्थानीय ढाल, ढीली मिट्टी और आए दिन होने वाले भू-स्खलन के कारण भी गैरसैंण भारी-भरकम निर्माण गतिविधियों के अनुकूल स्थान नहीं है। रिपोर्ट के आलोक में क्या हम भूल जाएं कि कभी आसमान से आपदा बरसी, तो क्षतिग्रस्त नदियां, गैरसैंण को क्षत-विक्षत कर देंगी? अलकनंदा पर बन रही जल-विद्युत परियोजनाओं के कारण अधिक विध्वंस का खतरा हमेशा रहेगा ही।

दीक्षित आयोग की रिपोर्ट 

गौर कीजिए कि इन्हीं तकनीकी तथ्यों के आधार पर न्यायमूर्ति वीरेन्द्र दीक्षित आयोग ने गैरसैंण के पक्ष में रिपोर्ट नहीं दी थी। हालांकि दीक्षित आयोग को मिले 268 में से 126 सुझाव गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्ष में थे। न्यायमूर्ति जानते थे कि दल और उम्मीदवार वोट से चुने जाते हैं। वोट का आधार, जनाकांक्षा होता है। प्रकृति, अपनी कृतियों का चुनाव पंचतत्वों के चाल-चरित्र के आधार पर करती है। 

अतः दीक्षित आयोग ने जनाकांक्षा से ज्यादा, 21 व्यावहारिक पहलुओं को आधार बनाया। उनमें से 04 पहलुओं को गैरसैंण के पक्ष में और 17 को विपक्ष में पाया।

विध्वंसक साबित होगी तथ्यों की अनदेखी

उक्त तथ्यों को जानने के बाद भी क्या हमें गैरसैंण के लिए स्थाई अथवा अस्थाई राजधानी की मांग करनी चाहिए? हाल का चित्र यह है कि गैरसैंण को मंडल बाद में घोषित किया गया; वहां प्रापर्टी  डीलरों और ज़मीन ख़रीदने वालों के समाचार पहले सुर्खियों में आए। प्रश्न है कि क्या गैरसैंण का भूगोल, मंडल घोषित होने का भार भी झेल पाएगा? 

गैरसैंण की महज 12,000 की छोटी सी आबादी को उसकी न्यूनतम आवश्यकता की जलापूर्ति नहीं कर पा रहे। प्रति व्यक्ति, प्रति दिन को न्यूनतम आवश्यकता पूर्ति के लिए 55 लीटर पानी ज़रूरी माना गया है। गर्मियों में गैरसैंण को जलापूर्ति मात्र 27 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन तक दर्ज की गई है। 

गैरसैंण राजधानी घोषित होने पर क्या होगा? क्या उक्त तथ्यों की अनदेखी, राजधानी के भविष्य की अनदेखी साबित नहीं होगी? नतीजा बेहद खतरनाक भी हो सकता है। 1803 में आए प्रलयंकारी भूकम्प में हुए स्थानीय विध्वंस को राजनेता भूल सकते हैं, लेकिन गैरसैंण का भूगोल नहीं।

गैरसैंण नहीं तो कौन?

गौर कीजिए कि ऐसे ही कारणों से उत्तराखंड के 92 में से 71 नगरों में आपूर्ति किए गये पानी की मात्रा, तय मानक से कम बनी हुई है। ऐसे में उत्तराखंड की स्थाई राजधानी देहरादून नहीं, तो क्या हो? यह तय करते वक्त भूलें नहीं कि मूल आंकाक्षा, गैरसैंण नहीं थी। मूल आकांक्षा थी - पहाड़ की राजधानी पहाड़ में। 

ऐसा स्थान, जहां गढ़वाल और कुमाऊं - दोनों मंडल के लोगों को आने-जाने में सहूलियत हो। क्या गैरसैंण से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित अल्मोड़ा के चौखुटिया और श्रीनगर गढ़वाल के बीच का कोई रिचार्ज ज़ोन उत्तराखंड की स्थाई राजधानी क्षेत्र हो सकता है? चौखुटिया मतलब चार पैर। 101 ग्रामसभाओं वाले चौखुटिया से चार दिशाओं में चार मार्ग खुलते हैं - रामनगर, कर्णप्रयाग, रानीखेत और तादगताल। यहां हवाई अड्डा भी है और रेललाइन का प्रस्ताव भी। अध्ययन करके देखना चाहिए।

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